दरअसल, पंजाब के अमृतसर जिले में सन 1993 में हुए एक फेक एनकाउंटर केस में मोहाली की CBI कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने पूर्व एसपी परमजीत सिंह को दोषी ठहराते हुए 10 साल की कैद और 50 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है. हालांकि, पीड़ित परिवार इस फैसले से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है. उनका कहना है कि इस फर्जी मुठभेड़ में शामिल बाकी तीन पुलिसकर्मियों को भी सजा मिलनी चाहिए.
18 अप्रैल 1993 को किया गया था एनकाउंटर
पीड़ित परिवार के अनुसार, सरमुख सिंह, जो खुद पंजाब पुलिस में कांस्टेबल थे, उनको 18 अप्रैल 1993 को एसपी परमजीत सिंह और अन्य पुलिस अधिकारियों ने घर से उठाया था. इसके बाद 22 अप्रैल को एक फर्जी एनकाउंटर में उन्हें आतंकवादी घोषित कर मार दिया गया. CBI कोर्ट का फैसला आने के बाद सरमुख सिंह के बेटे चरणजीत सिंह ने कहा कि मैंने तो अपने पिता को देखा तक नहीं. हां ये जरूर है कि 33 साल लग गए मेरे पिता के सिर से आतंकवादी होने का दाग मिटाने में.
परिवार का कहना है कि इस मामले में सिर्फ पूर्व एसपी परमजीत सिंह पर कार्रवाई करना अधूरा इंसाफ है. उस एनकाउंटर में चार पुलिसकर्मी शामिल थे. कोर्ट ने सिर्फ एक को सजा दी है, बाकी तीन दोषी खुले घूम रहे हैं. हम इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे, ताकि सभी दोषियों को सजा मिले.
बेटे ने कहा- अब मुझे पुलिस की नौकरी मिले
सरमुख सिंह के बेटे चरणजीत सिंह ने बताया कि उस फर्जी एनकाउंटर के बाद उन्हें पुलिस की नौकरी से भी बेदखल कर दिया गया था. मेरे पिता पर आतंकवादी होने का झूठा ठप्पा लगाया गया, जिसके चलते हमारी रोजी-रोटी भी छिन गई. अब जब कोर्ट ने साफ कह दिया कि वह बेगुनाह थे तो मुझे मेरा हक मिलना चाहिए. मुझे पुलिस की नौकरी दी जाए और जो अधिकार मेरे पिता के थे, वो मुझे सौंपे जाएं.
अपने पिता का चेहरा नहीं देख पाया- चरणजीत सिंह
चरणजीत सिंह ने बताया कि गरीबी में मेरा पूरा परिवार जिंदगी गुजारता रहा. मैंने अपने पिता का चेहरा कभी नहीं देखा, सिर्फ तस्वीरों में ही देखा है. हर बार उनकी तस्वीर देखकर मेरी आंखें भर आती हैं. अगर वह आज जिंदा होते तो हमारी जिंदगी भी कुछ और होती. फिलहाल परिवार ने कहा कि उन्हें इस फैसले से राहत तो मिली है, लेकिन अभी भी न्याय अधूरा है. हम सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे और तब तक लड़ाई जारी रखेंगे, जब तक सभी दोषियों को सजा न मिल जाए.