अदाणी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अदाणी (Gautam Adani) के बड़े बेटे करण अदाणी (Karan Adani) एशिया के बड़े एम्पायर ग्रुप के लॉजिस्टिक्स बिजनेस को होल्ड कर रहे है. करण अदाणी मुंद्रा पोर्ट (Mundra Port) को संभालने के साथ-साथ अदाणी ग्रुप (Adani Group) की दूसरी बड़ी-बड़ी कंपनियों को भी संभाल रहे हैं. वो अदाणी पोर्ट्स (Adani Ports) और स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन के CEO हैं. करण अदाणी ने Bloomberg को दिए गए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में अपने अदाणी ग्रुप बनने से पहले अपने परिवार के संघर्षों, चुनौतियों को साझा किया है. करण अदाणी ने इसके साथ ही अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च मामले पर भी अपनी राय रखी. इंटरव्यू में करण ने ये भी बताया कि वो कैसे अपने पिता गौतम अदाणी के दिखाए गए रास्ते पर चल रहे हैं.
Bloomberg को दिए गए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में करण अदाणी ने बताया, “किसी के करीब होने का मतलब ये कतई नहीं है कि आपका काम आसानी से हो जाएगा या आपको काम आसानी ने मिल जाएगा. आपको काम तभी मिलेगा, जब आप इसे करने के योग्य होंगे. अगर आप किसी काम को अच्छे से पूरा करने की क्षमता रखते हैं और आप मार्केट में आपकी धाक है, तो आपको जरूर काम मिलेगा. अदाणी ग्रुप इसी सोच पर आगे बढ़ता है. हमने अदाणी ग्रुप को बहुत अच्छे तरीके से चलाया है.”
करण अदाणी कहते हैं, “मेरी समझ में अगर किसी के पास काम करने की योग्यता, क्षमता और प्रतिस्पर्धा भावना नहीं है; तो उसका किसी राजनीतिक पार्टी के करीब होने का कोई मतलब नहीं है. क्योंकि आज का भारत अहसान करने वाला भारत नहीं है. आज का भारत वास्तव में प्रतिस्पर्धा को मानता और परखता है.”
करण अदाणी कहते हैं, “बेशक कुछ खास पोजिशन की वजह से ये हमारे लिए रणनीतिक जरूरत वाले हो जाते हैं. हम देखते हैं कि भारत के बड़े ट्रेड रूट कौन से हैं? इसकी पहचान हो जाने पर हम वहां पोजिशन लेकर उस ट्रेड रूट के बीच आने वाली रुकावटों को कम करते हैं या खत्म करते हैं. अगर हम जियोपॉलिटिकल नजरिए से देखें, तो बेशक भारत के कुछ खास जियोपॉलिटिकल प्राथमिकताएं हैं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि देश की जियोपॉलिटिकल प्राथमिकताएं हमारे ग्रुप की भी प्राथमिकताएं होंगी. हम अपना असेसमेंट करते हैं. आखिर में हम जोखिम की तरफ देखते हैं. जोखिम लेने पर कई बार मुनाफा होता है. कई बार घाटा भी देखने को मिलता है. चीजें ऐसे ही चलती हैं.”
करण अदाणी ने कहा, “अदाणी ग्रुप में हमारा परिवार सबसे बड़ा शेयर होल्डर है. लिहाजा हमें अपने परिवार के बारे में भी देखना होता है. आखिर में हम जितने भी इंवेस्टर्स बनाते हैं, चाहे वो पावर से हो या पोर्ट्स से… हमें इंवेस्टर्स को रिटर्न देना पड़ता है. इसलिए बैंलेस करना जरूरी है.”
करण अदाणी आगे कहते हैं, “अदाणी ग्रुप का कोई ग्लोबल महत्वाकांक्षा नहीं है. मेरे ख्याल से हमारा लक्ष्य 2030 को लेकर है. 2030 तक अदाणी ग्रुप ने कम से कम एक बिलियन टन वॉल्यूम की कंपनी बनने का लक्ष्य रखा है. क्योंकि भारत तेजी से विकास कर रहा है. ट्रेड डेवलप हो रहे हैं. ऐसे में स्वभाविक तौर पर हम भी इस विकास गाथा का हिस्सा बनना चाहेंगे. इसके साथ ही हम भारत के पड़ोसी देशों में भरोसेमंद सप्लाई चेन सॉल्यूशन को बनाए रखने पर काम कर रहे हैं.”
हिंडनबर्ग रिसर्च मामले को कैसे किया डील?
करण अदाणी कहते हैं, “शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च मामले के समय मेरी मुख्य तौर पर 3 जिम्मेदारियां थीं. पहला- ये देखना कि बिजनेस ठीक से चलता रहे. मुझे ये सुनिश्चित करना था कि न सिर्फ पोर्ट्स बल्कि पूरे ग्रुप के बिजनेस चलते रहे. हमारा प्रदर्शन, हमारी क्षमता, कैपेक्स यानी कैपिटल एक्पेंडिचर की क्षमता बनी रहे. दूसरा- कंपनी में लीडरशिप की कमी न दिखे. मुझे ये देखना था कि मुश्किल वक्त में हम कैसे सब मिलकर काम करते रहें और लक्ष्यों को हासिल करते रहे. तीसरा- हमने पिछले कुछ सालों में जितना हासिल किया, जो लक्ष्य पूरे किए… इस मुश्किल वक्त में हमें उससे भी बेहतर करना था. हमने ऐसा करके दिखाया है.”
करण अदाणी ने कहा, “अगर आप इंवेस्टर्स के नजरिए ये देखिए, तो एक ग्रुप के नाते हम 2007-2008 में एक ट्रांजिशन (बड़े बदलाव) से गुजरे हैं. 2007-2008 में हमारे पास एक होल्डिंग स्ट्रक्चर था. तब हमारे पास अदाणी एंटरप्राइज था और बाकी सब्सिडियरी कंपनियां इसके तहत थीं. लेकिन इंवेस्टर्स ने क्लीन स्ट्रक्चर की डिमांड की थी. जिसके बाद हमने ग्रुप में डीमर्जिंग शुरू की. कंपनियों को अलग-अलग करना शुरू किया. अदाणी पावर अलग हुआ. अदाणी पोर्ट अलग हुआ. इससे शेयर होल्डर्स को आसानी हुई. अगर कोई शेयर होल्डर्स पोर्ट में इंवेस्ट के लिए आता, तो उसे मालूम है कि उसे APEX में जाना होगा. इसी तरह एनर्जी में इंवेस्ट करने के इच्छुक इंवेस्टर्स को रिन्यूएबल एनर्जी की ओर जाना है.”
करण कहते हैं, “अगर आप फैमिली स्ट्रक्चर की बात करें, तो ये भी क्लियर स्ट्रक्चर है. हमारे पास विभिन्न ग्रुप कंपनियों के बीच 23 से 25 इंटरनेशनल बॉन्ड इश्यू हैं. इंटरनेशनल एजेंसी की ओर से इनकी ग्रेड रेटिंग भी की हुई है. सब कुछ सामने हैं. हमने कुछ भी छिपाया नहीं है.”
करण अदाणी के मुताबिक, हिंडनबर्ग से जुड़े मामले की जांच की बात करें, तो एक ग्रुप कंपनी के नाते हमने जांच में पूरा सहयोग किया है. हमने कोई जानकारी छिपाई नहीं है. हमारे एनुअल रिपोर्ट, हमारे बॉन्ड इश्यू या फिर किसी भी IPO को उठाकर देखिए…. ट्रांसपिरेंसी दिखेगी.”
अदाणी ग्रुप बनने से पहले परिवार ने किया बहुत संघर्ष
इंटरव्यू के दौरान करण अदाणी ने अपने परिवार के संघर्ष के दिनों को भी याद किया. उन्होंने बताया, “अगर आप पहली पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के ट्रांसफर की बात करें, तो हमें एक विरासत मिली है. हमें सिर्फ एक फैमिली बिजनेस नहीं मिला, बल्कि एक प्लेटफॉर्म मिला है. ये ऐसा प्लेटफॉर्म है, जिसमें हमें अपनी विरासत की रक्षा करनी है और ये भी सुनिश्चित करना है ये विरासत दूसरी पीढ़ी तक पहुंचे.”
अपने पिता गौतम अदाणी के बारे में करण अदाणी कहते हैं, “मुझे लगता है कि मेरे पिता ने जैसे काम किया, वैसा शायद मैं न कर पाऊं. हमें हमारा कमजोर पक्ष और मजबूत पक्ष दोनों पता हैं. हम मजबूत पक्ष को बढ़ा रहे हैं और कमजोर पक्ष पर काम कर रहे हैं. मैंने मेरे पिता से जो कुछ भी सीखा, मैं उसे हर दिन के काम में उसका इस्तेमाल करने की कोशिश करता हूं.”