वाराणसी: मोक्ष की नगरी काशी में अतृप्त आत्माओं को मुक्ति के लिए पितृ पक्ष में पिशाचमोचन में मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाता है. इसके लिए देश – विदेश से लाखों की संख्या में लोग आते है. इसका वर्णन वेदों व पुराणों में भी मिलता है. पुराणों में कहा गया है कि इस जगह की स्थापना स्वयं भगवान शिव ने की थी. उन्होंने पिशाचों की मुक्ति के लिए पिशाचमोचन कुंड की स्थापना की थी.
काशी का पिशाचमोचन कुंड अपने रहस्यमय कर्मकांडों और अनूठे अनुष्ठानों के लिए जाना जाता है। काशी, जिसे मोक्ष का द्वार माना जाता है, यहां पिशाचमोचन कुंड विशेष महत्व रखता है, जहां लोग अपने पितरों की आत्मा की मुक्ति के लिए तर्पण करते हैं। पिशाचमोचन पर तर्पण करने से मृतक आत्माओं को शांति मिलती है और पितृ ऋण से मुक्ति प्राप्त होती है.
इस कुंड में देश-विदेश से लोग आते हैं ताकि पितृ तर्पण के माध्यम से मोक्ष प्राप्त कर सकें। यहाँ की विशेषता यह भी है कि तर्पण के दौरान बैकुंठ के द्वार खुलने की मान्यता है.
यहाँ न केवल पितरों का श्राद्ध किया जाता है, बल्कि उन ज्ञात-अज्ञात आत्माओं का भी त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है जो अकाल मृत्यु का शिकार होती हैं.
पिशाचमोचन के तीर्थ पुरोहित सौरभ दीक्षित के अनुसार
पिशाचमोचन कुंड का उद्गम गंगा अवतरण से पहले का माना जाता है। यहाँ सबसे पहले ब्रह्म राक्षस को मुक्ति मिली थी, और तभी से यह स्थान वरदानी तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ पितृ दोष से मुक्ति के लिए तर्पण किया जाता है.