कटनी : बेटी ने निभाया बेटे का फर्ज, रूढ़िवादी सोच से हटकर पिता का किया अंतिम संस्कार

 

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कटनी : बचपन बीता, बीत रही जवानी, आप गुजर गए, गुजरी नहीं कहानी, जब तक जीवित हूँ प्राण लिए धरती पर, हमेशा कहलाऊंगी मैं, आपकी ही निशानी…डॉ अंशुल उपाध्याय की यह शायरी कटनी जिले के एक बेटी के लिए सटीक बैठती है, जिसने अपने पिता की मौत के बाद बेटा बनकर अपने पिता को मुखाग्नि दी है.

कटनी जिले की निवासी पूजा विश्वकर्मा ने अपने आर्मी रिटायर्ड पिता राम किशन विश्वकर्मा की मौत के बाद एन.के.जे स्थित मुक्ति धाम में मुखाग्नि दी है. शोकाकुल परिवार की एक बेटी पूजा विश्वकर्मा का एक भाई भी था जिसकी दुर्घटना में मौत हो चुकी थी और उनके बाद वह अपने की पिता की एक सहारा थी जो अपने पिता की मौत के बाद अपने पिता को बेटा बन पूरे रीति रिवाज के साथ उनका अंतिम संस्कार किया.

हिन्दूधर्म में पौराणिक मान्यता है कि बाप की चिता को मुखाग्नि बेटा ही देता है, जिसके बेटे नहीं होते उनकी चिता को भतीजा या फिर कोई करीबी ही आग लगाता है, लेकिन कटनी की पूजा विश्वकर्मा ने अपने पिता रामकिशन विश्वकर्मा की मौत के बाद उन्हें इस बात का मलाल होने नहीं दिया कि उनका कोई बेटा नहीं है. कटनी के एन के जे निवासी पूजा विश्वकर्मा ने अपने पिता को मुखाग्नि देकर बेटे का धर्म निभाने की बात कही. पूजा ऐसी अन्य लड़कियों के लिए नजीर हो सकती है, जिनके भाई तो था जिनका एक सड़क में मौत हो चुकी हैं. पूजा ने पिता को बेटे की तरह अपने पिता की चिता के फेरे लगाए और मुखाग्नि देकर बेटी होकर बेटा के धर्म का पालन किया. कटनी के एन के जे इलाके के निवासी रामकिशन विश्वकर्मा की बेटी के अलावा एक बेटा था जिसका नाम शरद विश्वकर्मा था जिसकी एक सड़क दुर्घटना ने मौत हो चुकी थी और और उनकी बेटी पूजा ने ही अपने पिता रामकिशन विश्वकर्मा को दिलासा दिया था कि उनका बेटा बनकर उनकी बेटी ही पूरा फर्ज निभायेगे और हुआ भी यही रामकिशन विश्वकर्मा जो आर्मी के रिटायर्ड थे और रिटायरमेंट के बाद वाह वकालत का काम करने लगे थे और उनका अचानक देहांत होने के बाद उनकी बेटी पूजा विश्वकर्मा ने एक बेटे के सामन फर्ज निभाते हुए अपने पिता रामकिशन विश्वकर्मा को पूरे रीति रिवाज के साथ मुखाग्नि दी.शायद उसकी बेटी ने सोचा भी नहीं था कि ईश्वर इतनी जल्दी उसके पापा को अपने पास बुला लेंगे.

कटनी के एन के जे इलाके के निवासी रामकिशन विश्वकर्मा की मौत होने के बाद अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट ले जाया गया. घर में मातम पसरा था, इस गम की घड़ी में भी पूजा अपने पति की अंतिम यात्रा में शामिल हो एन के जे स्थित श्मशान घाट पहुंची और अग्नि लेकर अपने पिता की चिता को आग लगाकर पितृ ऋण का कर्ज अदा किया. बेटे और बेटियों में अंतर जरूर होता है, लेकिन यह समाज के लिए अच्छा है. पूजा विश्वकर्मा ने लड़कियों का हौसला बढ़ाया है. इस प्रकार का निर्णय सराहनीय सकारात्मक कदम है. पूजा ने बताया कि उसके पापा ने उसे बेटे की तरह पाला है, ओर उनके भाई शरद विश्वकर्मा की सड़क दुर्घटना के बाद वाह अपने अकेली ही उनके पास थी उसने बेटी होकर बेटा के धर्म का पालन की और उनकी मौत के बाद वह ही अपने पिता की चिता को मुखाग्नि दी. पूजा ने यह भी बताया कि उसे अपने पिता पर गर्व है कि उन्होंने रूढ़ीवादी परंपरा से हटकर उसने अपने पिता का अंतिम संस्कार किया है. अपने पिता को मुखाग्नि देकर उसने पितृऋण अदा किया है.

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