भारत-कनाडा के बीच रिश्तों में तनाव है. इस बीच, ब्रैम्पटन शहर में खालिस्तानी समर्थकों के हिंदू मंदिर के बाहर हमला किए जाने का मामला गरमाता जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना की निंदा की है और कनाडा सरकार को चेतावनी दी है. विदेश मंत्रालय ने भी भारतीयों की सुरक्षा पर चिंता जताई है. कनाडा उन देशों में है, जहां बड़ी संख्या में भारतवंशी रहते हैं. कनाडा की आबादी में सिखों की हिस्सेदारी 2.1% है. भारत के अलावा कनाडा में ही सबसे ज्यादा सिख आबादी रहती है. हालांकि, ये आंकड़े ज्यादा आश्चर्य की बात नहीं हैं. एक सदी से भी ज्यादा समय से सिख कनाडा में रह रहे हैं. सिख कनाडा क्यों जाने लगे? कनाडा जाने वाले पहले सिख कौन थे? जानिए पूरा इतिहास…
दरअसल, भारत-कनाडा के रिश्ते पटरी से उतर गए हैं. विवाद की वजह कनाडाई सरकार का ‘खालिस्तानी प्रेम’ माना जा रहा है. इस बीच, खालिस्तानी समर्थकों ने रविवार को एक बार फिर हिंदुओं की आस्था पर हमला किया. ब्रैम्पटन शहर में खालिस्तानी समर्थक अलगाववादी झंडे लेकर हिंदू सभा मंदिर पहुंचे और वहां बवाल किया. मंदिर के बाहर लोगों से मारपीट की. श्रद्धालुओं पर लात-घूंसे बरसाए और डंडे चलाए. इस घटना का वीडियो वायरल हो रहा है. ब्रिटिश कोलंबिया स्थित सर्री में लक्ष्मी नारायण मंदिर परिसर में भी हिंदू श्रद्धालुओं को पीटे जाने की खबर है. वहां महिलाओं और बच्चों से भी मारपीट की गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमले की निंदा की और ऐतराज जताया. पीएम मोदी ने कनाडा सरकार को भी चेताया और कहा, ये कृत्य कायराना है. कनाडा सरकार दोषियों पर तत्काल कार्रवाई करे. हिंसा के ऐसे कृत्य भारत के संकल्प को कभी कमजोर नहीं कर सकते हैं.
जानकारों का कहना है कि दोनों देशों में तनाव बढ़ने का सीधा असर वहां रह रहे भारतीयों पर पड़ सकता है. कनाडा को भारतीय छात्रों के आने से आर्थिक रूप से फायदा होता है. पहले ही भारत सरकार ने कनाडाई नागरिकों की भारत में एंट्री बंद कर दी है. भारत ने कनाडा में अपनी वीजा सेवा को सस्पेंड कर दिया है. यह हमले रिश्तों को बदतर करते जा रहे हैं. सवाल उठ रहा है कि कनाडा में खालिस्तान का नेटवर्क कैसे फैल गया? उसकी क्या कहानी है? कनाडा में भारत की कितनी आबादी है?
कनाडा में दो लाख से ज्यादा स्टूडेंट्स
दिसंबर 2023 तक भारत के विदेश मंत्रालय के आंकड़े के मुताबिक, इस समय 18 लाख भारतवंशी कनाडा के नागरिक हैं और 10 लाख भारतीय कनाडा में रहते हैं. कनाडा में भारत के दो लाख 30 हजार स्टूडेंट्स पढ़ाई कर रहे हैं. इतना ही नहीं, कनाडा की 600 से ज्यादा कंपनियां भारत में है और 1000 से ज्यादा कंपनियां सक्रिय रूप से भारत के साथ कारोबार कर रही हैं. भारतीय कंपनियां भी कनाडा में आईटी, सॉफ्टवेयर, स्टील, प्राकृतिक संसाधन और बैंकिग सेक्टर में सक्रिय रूप से काम कर रही हैं.
सबसे पहले कौन पहुंचा था कनाडा…
दरअसल, ब्रिटिश शासन के दरम्यान भारतीय सिख सशस्त्र सेवाओं में शामिल थे. 1897 में महारानी विक्टोरिया ने ब्रिटिश भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी को डायमंड जुबली सेलिब्रेशन में शामिल होने के लिए लंदन में आमंत्रित किया. इसी दौरान घुड़सवार सैनिकों की एक टुकड़ी महारानी के साथ ब्रिटिश कोलंबिया में थी. इन्हीं सैनिकों में रिसालेदार मेजर केसूर सिंह भी शामिल थे. उन्होंने कुछ सैनिकों के साथ कनाडा में रहने का फैसला किया और ब्रिटिश कोलंबिया में ही रुक गए. इसी दौर में भारत के लोग कनाडा में आकर बसने लगे और कुछ ही सालों में 5000 भारतीय ब्रिटिश कोलंबिया पहुंच गए, जिनमें से 90 फीसदी सिख थे.
यानी ब्रिटिश भारतीय सेना (25वीं कैवलरी, फ्रंटियर फोर्स) में मेजर केसूर सिंह को कनाडा में आने वाला पहला सिख माना जाता है. वह हांगकांग रेजिमेंट के हिस्से के रूप में वैंकूवर पहुंचे सिख सैनिकों के पहले समूह में शामिल थे, जिसमें चीनी और जापानी सैनिक भी सेलिब्रेशन में शामिल होने पहुंचे थे. 19वीं सदी के अंत में भारतीय सिख विशेष रूप से सुदूर पूर्व-चीन, सिंगापुर, फिजी और मलेशिया-और पूर्वी अफ्रीका में रहने के लिए पहुंचे.
नौकरी-रोजगार के लिए कनाडा पहुंचे लोग
हालांकि, कनाडा में सिख प्रवास की पहली लहर 1900 के शुरुआती वर्षों में देखने को मिली. अधिकांश प्रवासी सिख नौकरी और रोजगार के लिहाज से कनाडा पहुंचे. ये लोग ब्रिटिश कोलंबिया में मजदूरी के लिए और ओंटारियो में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में काम करने के लिए गए.
काम मिला, लेकिन मुसीबतें भी आईं
जो लोग कनाडा पहुंचे, उनमें 5,000 से थोड़ा ही ज्यादा संख्या थी. ज्यादातर ऐसे पुरुष थे, जो रोजगार की तलाश में पहुंचे थे. लेकिन बसने का कोई इरादा नहीं था. आप्रवासियों की सोच थी कि वे तीन से पांच साल के बीच ही वहां रहेंगे और जितना संभव हो सके, अपनी बचत का हिस्सा घर भेजने की कोशिश करेंगे. कनाडा में प्रवासियों को आसानी से काम मिल गया, लेकिन जल्द ही उन्हें मुसीबतों का भी सामना करना पड़ा.
स्थिति बिगड़ी तो सिमट गई अप्रवासियों की संख्या
आरोप लगा कि अप्रवासी, स्थानीय लोगों का रोजगार और नौकरियां छीन रहे हैं. सिखों को नस्लीय और सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों का भी सामना करना पड़ा. कनाडा में ज्यादा से ज्यादा सिखों के आने से स्थिति बिगड़ती गई. बढ़ती संख्या के कारण कनाडाई सरकार ने अंततः कड़े नियम लागू किए और प्रवासन को समाप्त कर दिया. कनाडा में भारतीयों को प्रवेश करने के लिए उनके पास 200 डॉलर होना अनिवार्य कर दिया गया. नतीजन, 1908 के बाद भारत से कनाडा में आप्रवासन में भारी गिरावट आई. 1907-08 के दौरान 2,500 से घटकर प्रति वर्ष सिर्फ कुछ दर्जन रह गई.
इसी दौरान कोमागाटा मारू घटना घटी. 1914 में एक जापानी स्टीमशिप (कोमागाटा मारू के नाम से जाना जाता था) वैंकूवर के तट पर पहुंचा. इसमें 376 दक्षिण एशियाई यात्री सवार थे, जिनमें से अधिकांश सिख थे. आप्रवासियों को लगभग दो महीने तक जहाज पर हिरासत में रखा गया और फिर कनाडाई जल क्षेत्र से बाहर निकालकर एशिया वापस भेज दिया गया.
कैनेडियन म्यूजियम ऑफ ह्यूमन राइट्स के अनुसार, जब जहाज कोलकाता के बज बज घाट पर पहुंचा तो ब्रिटिश अधिकारियों और यात्रियों के बीच विवाद शुरू हो गया. घटना में 16 यात्रियों सहित 22 लोग मारे गए.
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद कनाडा की आप्रवासन नीति में ढील दी गई. 1967 में कनाडाई सरकार द्वारा ‘पॉइंट सिस्टम’ की शुरुआत की गई, जिसने देश में गैर-आश्रित रिश्तेदारों के प्रवेश के लिए सिर्फ कौशल को क्राइटेरिया बनाया और किसी विशेष जाति को दी गई किसी भी प्राथमिकता को समाप्त कर दिया.
1991 के बाद कैसे बढ़ गई आबादी?
कनाडा में 1991 के बाद से सिखों की आबादी में जबरदस्त वृद्धि हुई. 2021 के जनगणना डेटा के मुताबिक, कनाडा में सिखों की संख्या करीब 7.71 लाख तक पहुंच गई है. यह कुल आबादी का करीब 2.1% है. इनमें 2.36 लाख से ज्यादा (करीब 30%) जन्म से ही कनाडा के नागरिक हैं. 4.15 लाख से ज्यादा स्थायी निवासी का दर्जा रखते हैं और 1.19 लाख से ज्यादा गैर-स्थायी निवासी हैं.
90 के दशक में आया उछाल
1980 से पहले कनाडा में 33 हजार 535 स्थायी सिख निवासी थे. 1980 से 1990 तक यह संख्या बढ़कर 40,440 हो गई. हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण उछाल 1991 और 2000 के बीच देखने को मिला और 88,210 सिख स्थायी निवासी बन गए. उसके बाद 2001 से 2010 तक 1.11 लाख से ज्यादा सिखों ने स्थायी निवासी का दर्जा प्राप्त किया और 2011 से 2021 तक 1.41 लाख से ज्यादा सिख कनाडाई नागरिक बन गए. कोविड-19 महामारी से पहले (2019) कनाडा में हर साल करीब तीन लाख प्रवासियों को स्थायी निवासियों का दर्जा दिया जा रहा था. औसतन हर साल इन प्रवासियों में से करीब 4% सिख होते हैं.
कनाडा में सिख 2021 में 2.1 प्रतिशत थे. इनकी आबादी 2001 से 2021 तक 0.9 प्रतिशत बढ़ी है. सिखों की आधी से ज़्यादा आबादी टोरंटो और वैंकुवर में रहती है. इन इलाकों में सिख वोट बैंक मायने रखता है. भारत का कहना है कि ट्रूडो राजनीतिक एजेंडे के तहत कनाडा में खालिस्तान समर्थकों को बढ़ावा दे रहे हैं.
पंजाब से सिख युवा बेहतर जिंदगी की तलाश में पहुंचे. आज भी यही फैक्टर सिखों के कनाडा जाने का मुख्य कारण बना हुआ है. हाल के वर्षों में पंजाबी छात्रों की संख्या में अच्छी खासी वृद्धि हुई है, जिनमें से अधिकांश सिख हैं. ये छात्र स्टडी वीजा पर कनाडा जाते हैं.
कनाडा में कैसे फैल गया खालिस्तान नेटवर्क?
भारत ने 1980 के दशक में पंजाब में उग्रवाद के खिलाफ अभियान चलाया. इसी दौर में ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ. ऐसे में पंजाब के कई आतंकवादियों ने भागकर कनाडा में शरण ले ली. अलगाववादी ने कनाडा से कनिष्क प्लेन ब्लास्ट की खौफनाक हमले की योजना तैयार की. विमान में सवार 329 लोगों की मौत को ऑपरेशन ब्लू स्टार की जवाबी कार्रवाई की तरह देखा गया. हालांकि कनाडा सरकार ने पूरे मामले पर लीपापोती कर दी. भारत ने आतंकियों को प्रत्यर्पित करने के लिए कहा, लेकिन कनाडा ने अनुरोध को अस्वीकार कर दिया. भारतीय खुफिया एजेंसियों ने भी कनाडा को चेतावनियां दी, लेकिन उन पर भी ध्यान नहीं दिया गया.
दरअसल, पंजाब में 1970-80 के दशक में खालिस्तान आंदोलन का उभार हुआ. इस दौरान कई सिख परिवारों को हिंसा और असुरक्षा का सामना करना पड़ा, जिससे कई लोगों ने विदेश में बसने का फैसला किया. इनमें से कुछ लोग खालिस्तानी विचारधारा के समर्थक थे और उन्होंने कनाडा को एक सुरक्षित स्थान मानकर यहां शरण ली.
चूंकि कनाडा में आप्रवासियों को प्रोत्साहित किया जाता है. सिख समुदाय का कनाडा में बड़ी संख्या में होना भी एक महत्वपूर्ण फैक्टर है. खालिस्तानी समर्थक संगठन यहां सिखों के बीच अपनी विचारधारा फैलाने में सफल रहे हैं. इस समुदाय में कुछ संगठन सक्रिय हैं, जो खालिस्तानी एजेंडा को बढ़ावा देते हैं. इसके अलावा, कनाडा की राजनीति में भी कुछ ऐसे तत्व हैं जो सिख समुदाय के समर्थन के लिए इस मुद्दे को नज़रअंदाज करते हैं या प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष समर्थन देते हैं. कनाडा की कुछ राजनीतिक पार्टियां इस समर्थन को वोट बैंक के तौर पर भी देखती हैं.
खालिस्तानी विचारधारा को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए कनाडा और दूसरे देशों में रहने वाले समर्थक विभिन्न तरीकों से फंडिंग करते हैं. सोशल मीडिया भी खालिस्तानी विचारधारा को बढ़ावा देने का एक मुख्य साधन बन गया है. इन प्लेटफार्मों पर सिख युवाओं को भावनात्मक रूप से जोड़ने की कोशिश की जाती है.
इधर, भारत और कनाडा के बीच खालिस्तानी समर्थकों को लेकर विवाद लंबे समय से चलता आ रहा है. भारत सरकार लगातार कनाडा सरकार से इन समूहों पर कार्यवाही करने की मांग करती रही है. हालांकि, कनाडा का कानूनी ढांचा और वहां की स्वतंत्रता की नीति के चलते कनाडा सरकार इस पर प्रभावी कदम उठाने में परहेज करती है.
कनाडा में इस समय खालिस्तान विद्रोही ग्रुप सक्रिय हैं और माना जाता है कि जस्टिन ट्रूडो की वैसे समूहों से सहानुभूति है. कनाडा में अलगाववादी पंजाब में खालिस्तान नाम से एक स्वतंत्र देश के लिए कैंपेन चला रहे हैं.