खैरागढ़: पिता की चिता को मुखाग्नि देने का अधिकार केवल बेटों को है, इस रूढ़िवादी सोच को पीछे छोड़ते हुए, दाऊचौरा निवासी संजय श्रीवास्तव की बेटी शिवांगी श्रीवास्तव ने अपने पिता को मुखाग्नि देकर समाज में एक नई मिसाल कायम की.
संजय श्रीवास्तव, जो पेशे से अधिवक्ता थे, लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे. आज उन्होंने अपने निवास स्थान पर अंतिम सांस ली. निधन के समय उनकी पत्नी और बेटी शिवांगी उनके पास थीं. शिवांगी, जो वर्तमान में केंद्रीय विद्यालय में ग्यारवी कक्षा की छात्रा है, ने अपने पिता के अंतिम संस्कार की सारी रस्में निभाईं.
दाऊचौरा स्थित जैन मुक्तिधाम में शिवांगी ने आंसुओं से भरी आंखों के साथ अपने पिता की चिता को मुखाग्नि दी. उनकी इस पहल ने समाज में यह साबित कर दिया कि बेटा और बेटी में कोई अंतर नहीं है. शिवांगी को अपने पिता का अंतिम संस्कार करते देख वहां मौजूद सभी लोगों की आंखें नम हो गईं. यह घटना समाज को यह सिखाती है कि बेटियां भी हर उस जिम्मेदारी को निभाने में सक्षम हैं, जो परंपरागत रूप से बेटों के लिए मानी जाती हैं. शिवांगी का यह कदम समाज में बदलाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण संदेश है.