वाराणसी: भवगवान भास्कर के आराधना का लोक आस्था का महापर्व डाला छठ या सूर्य षष्ठी व्रत, कार्तिक शुक्ल षष्ठी को किया जाता है, यह महापर्व सात नवंबर को मनाया जाएगा. वास्तव में इस व्रत की शुरुआत नहाय-खाय के साथ ही कार्तिक शुक्ल चतुर्थी की तिथि पर पांच नवंबर से हो जाएगी.
त्रिदिवसीय नियम-संयम व्रत के बाद चौथे दिन आठ नवंबर को अरुणोदय काल में भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर पारण किया जाएगा. प्रथम दिन घर की साफ-सफाई कर, स्नानादि कर, तामसिक भोजन, लहसुन, प्याज इत्यादि का त्याग कर व्रती दिन में एक बार भात (चावल), कद्दू की सब्जी ग्रहण करेंगे. जमीन पर शयन करेंगे, दूसरे दिन खरना होगा, पंचमी के दिन भर उपवास कर सायंकाल गुड़ से बनी खीर का भोजन किया जाएगा, तीसरे प्रमुख दिन डाला छठ की तिथि पर निराहार रहकर, बांस की सूप, डालियों में विभिन्न प्रकार के फल-मिष्ठान, नारियल, ऋतु फल, ईख आदि रखकर किसी नदी, तालाब, पोखरा, बावड़ी के किनारे दूध तथा जल से अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, अगले दिन प्रातः सूर्योदय के समय सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाएगा.
पं. श्रीधर ओझा के अनुसार यह व्रत सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य, प्रभुत्व तथा संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है. डाला छठ की महत्ता इसलिए भी है कि भगवान भास्कर के व्रत प्रायः संतान प्राप्ति के लिए होते हैं.