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कोलकाता कांड के आरोपी संजय रॉय का नहीं होगा नार्को टेस्ट, कोर्ट का मंजूरी देने से इनकार

कोलकाता की कोर्ट ने आरजी कर मामले के आरोपी संजय रॉय के नार्को टेस्ट की अनुमति देने से इनकार कर दिया है. दरअसल, सीबीआई संजय रॉय का नार्को एनालिसिस टेस्ट कराने की योजना बना रही थी.लिहाजा केंद्रीय जांच एजेंसी ने नार्को टेस्ट की अनुमति के लिए सियालदह कोर्ट में अपील की थी. इसके तहत आज संजय रॉय को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, लेकिन संजय ने मजिस्ट्रेट के सामने नार्को टेस्ट के लिए अपनी सहमति नहीं दी, जिसके बाद कोर्ट ने सीबीआई की प्रार्थना को खारिज कर दिया.

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पीटीआई के मुताबिक एक अधिकारी ने बताया कि नार्को टेस्ट कराने का उद्देश्य यह जांचना था कि क्या आरोपी संजय रॉय सच बोल रहा है. नार्को एनालिसिस टेस्ट से हमें उसके बयान की पुष्टि करने में मदद मिलेगी.

सीबीआई के अधिकारी ने बताया कि नार्को एनालिसिस टेस्ट के दौरान व्यक्ति के शरीर में सोडियम पेंटोथल नामक दवा इंजेक्ट की जाती है, जो उसे सम्मोहन की स्थिति में ले जाती है और उसकी कल्पना को बेअसर कर देती है. उन्होंने कहा कि ज्यादातर मामलों में आरोपी सही जानकारी देता है.सीबीआई ने प्रेसिडेंसी सुधार गृह के अंदर संजय रॉय का पॉलीग्राफ टेस्ट पहले ही कर लिया था.

बता दें कि संजय रॉय आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में 31 वर्षीय ट्रेनी महिला डॉक्टर के रेप और हत्या के मामले में आरोपी है. मामले की जांच कर रही सीबीआई ने आरोपी के नार्को टेस्ट करने के लिए अदालत से अनुमति मांगी थी.

क्या होता है नार्को टेस्ट?

नार्को टेस्ट में इंसान के शरीर में सोडियम पेंटोथाल (Sodium Pentothal) नाम का ड्रग एक सीमित मात्रा में डॉक्टरों की देखरेख में डाला जाता है. इसे ट्रुथ सीरम (Truth Serum) भी कहते हैं. ये दवा शरीर में जाते ही इंसान को अर्ध-चेतना यानी आधी बेहोशी में ले आता है. वह सही गलत का फैसला नहीं कर पाता. वह सिर्फ वहीं बात बोलता है, जो उसे सच लगता है. या उसकी याद्दाश्त में सच के रूप में बैठा है. इस ड्रग का इस्तेमाल कई बार सर्जरी के दौरान एनेस्थेसिया के तौर मरीज को बेहोश करने के लिए किया जाता है. ताकि उसे दर्द न हो.

ऐसे किया जाता है नार्को एनालिसिस टेस्ट?

नार्को टेस्ट जरूरी नहीं है कि 100 फीसदी सही हो. क्योंकि नशे की हालत में इंसान कई बार उलटे-सीधे जवाब भी देता है. कई बार कहानियां गढ़ने लगता है. इस हालात में अगर सवाल पूछने वाला सही तरीके से सवाल पूछे तो मरीज सही जवाब भी दे सकता है. क्योंकि यह सवाल पूछने का सॉफ्ट तरीका है. कुछ लोग इसे थर्ड डिग्री का नरम तरीका भी कहते हैं. इस टेस्ट के दौरान साइकोलॉजिस्ट को बिठाया जाता है. कोशिश होती है कि सवाल भी वही पूछे. ताकि सही जवाब मिल सके. साइकोलॉजिस्ट के साथ जांच अधिकारी या फोरेंसिक एक्सपर्ट बैठते हैं.

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