लखीमपुर खीरी: गोला वन क्षेत्र के केसरीपुर गांव में शनिवार सुबह लोगों को जमीन के अंदर विचित्र जीव दिखाई दिया. जमीन के अंदर गेंदनुमा आकार का जीव दिखने पर लोगों ने इसकी सूचना वन विभाग को दी. सूचना पर वनकर्मियों की टीम के साथ मौके पर पहुंचे रेंजर संजीव तिवारी ने उसकी पहचान की.
लखीमपुर खीरी जिले के गोला वन क्षेत्र के केसरीपुर गांव में शनिवार सुबह घर के आंगन में जमीन के अंदर विचित्र प्रकार का वन्यजीव बैठा दिखाई दिया. गेंदनुमा आकार का इस जीव के दिखने पर ग्रामीणों ने वन विभाग को सूचना दी. मौके पर पहुंचे रेंजर संजीव तिवारी ने उसकी पहचान विलुप्त प्राय प्रजाति में शामिल दुर्लभ मादा पैंगोलिन के रूप में की.
बांकेगंज से सटे केसरीपुर गांव निवासी दिलीप कुमार को घर के अंदर रात एक बजे किसी वन्यजीव की आहट हुई. उन्होंने कमरे के अंदर टॉर्च की रोशनी से देखा तो एक विचित्र तरीके का जानवर उन्हें दिखा. उसे उन्होंने खदेड़ दिया. इसके बाद वह पड़ोस में रह रहे भगवानदीन के आंगन में पहुंचा और जमीन में गड्ढा खोदकर छिप गया.
शनिवार सुबह भगवानदीन को आंगन के अंदर बने गड्ढे के अंदर गेंदनुमा विचित्र वन्यजीव बैठा दिखाई दिया. यह देख उनके होश उड़ गए. शोरगुल मचाने पर तमाम ग्रामीण वहां पहुंच गए. मौके पर पहुंची गोला वन विभाग की टीम ने गड्ढे के अंदर बैठी पैंगौलिन को कड़ी मशक्कत के बाद पकड़ा.
चार साल बाद दिखा पैंगोलिन
इससे पहले नवंबर 2021 में डीटीआर बफरजोन धौरहरा रेंज के खमरिया क्षेत्र में खेत के गड्ढे में पैंगोलिन बैठा दिखाई दिया था. ग्रामीणों की सूचना पर वनकर्मियों टीम के साथ मौके पर पहुंचे. तत्कालीन रेंजर शिव बाबू सरोज और पशु चिकित्सक डॉ. दयाशंकर ने उसे पकड़कर दुधवा के जंगल में छोड़ा था.
दुधवा के जंगल में पैंगोलिन का बसा था अद्भुत संसार
दुधवा के जंगल में करीब 25 साल पहले पैंगोलिन का अद्भुत संसार बसा था. पेशेवर शिकारियों ने एशियाई देशों में व्यापार के लिए इनका बड़े पैमाने पर शिकार किया, जिससे इनकी संख्या तेजी से घटने लगी. नतीजतन, यह धीरे-धीरे विलुप्त हो गया और यह विलुप्त प्राय प्राणी शेड्यूल एक की श्रेणी में शामिल हो गया. स्थानीय भाषा में ग्रामीण इसे सेलू सांप के रूप में भी जानते हैं.
चीन और वियतनाम में है बेहद मांग
वन्यजीव विशेषज्ञ पीसी पांडेय का कहना है कि दुधवा के जंगलों से पैंगोलिन का शिकार करने के बाद तस्कर नेपाल के रास्ते से चीन और वियतनाम ले जाकर मोटा मुनाफा कमाते हैं. वहां लोग इसका मांस बड़े चाव से खाते हैं. शरीर के हर अंग का इस्तेमाल करते हैं. विभिन्न रोगों के लिए मांस की दवाई बनाई जाती है.
पौरूष शक्ति को बढ़ाने के लिए भ्रूण को शराब व सूप में मिलाकर पीते हैं. शरीर का ऊपरी हिस्सा (स्केल) बेहद मजबूत होता है, जिससे वहां के लोग पैंगोलिन के आभूषण पहनना अपनी शान समझते हैं. अंधविश्वास और तंत्र मंत्र के चक्कर में नाखूनों को बच्चों के गले में पहनाते हैं.
दक्षिण खीरी वन प्रभाग के डीएफओ संजय बिश्वाल ने बताया कि गोला रेंज में मिला पैंगोलिन शेड्यूल एक का वन्यजीव है. वन कर्मियों की टीम ने उसे पकड़कर जंगल में छोड़ा है. उसके संरक्षण और संवर्धन के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं.