रीवा जिले में चरमराई कानून व्यवस्था: निरीक्षकों के लाइन में होते हुए थानों का संचालन सहायक निरीक्षकों के भरोसे

रीवा : जिले की कानून व्यवस्था इन दिनों सवालों के घेरे में है। एक तरफ जहां अपराधी और नशा माफिया बेखौफ घूम रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पुलिस प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्न उठ रहे हैं.चौंकाने वाली बात यह है कि जिले के कई महत्त्वपूर्ण थानों में पदस्थ होने वाले निरीक्षक लाइन में आमद दे रहे है.इसके चलते जिले के थानों की कमान अनुभवहीन उप निरीक्षकों के हाथ में है, जिससे न तो गंभीर मामलों की जांच हो पा रही है और न ही प्रशासनिक स्तर पर कोई निर्णायक फैसला लिया जा रहा है.

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प्रशासनिक लापरवाही या गहरी साजिश

सूत्रों की मानें तो जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीण थानों तक स्थिति ऐसी बन गई है कि जनता की फरियाद सुनने वाला कोई सक्षम अधिकारी नहीं है. निरीक्षकों को लाइन में बैठाने की की कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया गया है, जिससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह सिर्फ प्रशासनिक फेरबदल है या किसी खास वर्ग को लाभ पहुंचाने की कोशिश की जा रही है? यह स्थिति जिले में कानून व्यवस्था के लिए चिंता का विषय बन गई है.

अवैध नशे की गिरफ्त में युवा

इन दिनों अवैध नशे और मेडिकल नशे का कारोबार जिले में चरम पर है। न तो मेडिकल स्टोरों पर कोई लगाम है और न ही अवैध नशीले पदार्थों की सप्लाई पर कोई सख्त रोक। नई पीढ़ी नशे की चपेट में आकर अपना भविष्य बर्बाद कर रही है और परिवार तबाही के कगार पर हैं.विडंबना यह है कि जिम्मेदार अधिकारी थानों से नदारद हैं, और सहायक निरीक्षक इस गंभीर समस्या को संभाल पाने में पूरी तरह अक्षम सिद्ध हो रहे हैं.

कागजों पर कार्रवाई, जमीन पर सन्नाटा

पुलिस प्रशासन भले ही कार्रवाई के आंकड़े प्रस्तुत कर अपनी पीठ थपथपा रहा हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है.अधिकतर कार्रवाइयां सिर्फ फाइलों तक सीमित हैं, जबकि अपराधियों को मैदान में खुली छूट मिलती दिख रही है.इसका सीधा असर आम जनता पर पड़ रहा है

जनता का डगमगाता विश्वास

जनता में भारी असंतोष है। थानों में जब फरियादी न्याय की उम्मीद से पहुंचते हैं, तो उन्हें अनुभवी अधिकारी नहीं मिलते. सहायक निरीक्षक या तो निर्णय लेने में असमर्थ होते हैं या उन्हें अपने वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश का इंतजार करना पड़ता है.

इससे पीड़ितों को न्याय मिलने में देरी होती है और अपराधियों का मनोबल बढ़ता जा रहा है, जिससे कानून का डर कम होता दिख रहा है.

पुलिस प्रशासन की चुप्पी पर सवाल

सबसे बड़ी बात यह है कि इस गंभीर स्थिति पर पुलिस प्रशासन की चुप्पी भी कई सवाल खड़े कर रही है.आखिर क्यों निरीक्षकों को लाइन में बैठाया गया है? क्या इन थानों को जानबूझकर अनुभवहीन अधिकारियों के हवाले कर जिले की कानून व्यवस्था को दांव पर लगाया जा रहा है? यदि समय रहते उच्च स्तर पर इस गंभीर स्थिति का संज्ञान लेकर निरीक्षकों की थानों में तैनाती नहीं की गई, तो आने वाले दिनों में जिले की कानून व्यवस्था और भी बदतर हो सकती है.

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