बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने सुप्रीम कोर्ट को स्पष्ट किया है कि अधिवक्ता पूर्णकालिक यानी फुलटाइम पत्रकारिता नहीं कर सकते हैं. यह प्रतिबंध BCI के आचरण नियमों के तहत लगाया गया है. ये नियम वकीलों की व्यावसायिक गतिविधियों को सख्ती से कंट्रोल करता है. इस फैसले का उद्देश्य वकीलों के पेशे में समर्पण को बनाए रखने और उनके कार्यक्षेत्र को निर्धारित सीमाओं में बांधना है.
जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के सामने यह सवाल उठाया गया था कि क्या अधिवक्ता पूर्णकालिक पत्रकार हो सकते हैं? बीसीआई के वकील ने अदालत को बताया कि अधिवक्ताओं को वकील और मान्यता प्राप्त पत्रकार के रूप में दोहरी भूमिका निभाने से प्रतिबंधित किया गया है. बीसीआई ने यह भी कहा कि अधिवक्ताओं को कानून की प्रैक्टिस के अलावा किसी भी पेशे में सक्रिय भागीदारी से बचना चाहिए, क्योंकि यह उनके पेशेवर दायित्वों में हस्तक्षेप करता है.
क्यों सुनाया गया फैसला?
यह मामला एक याचिकाकर्ता अधिवक्ता से संबंधित था, जो स्वतंत्र पत्रकार के रूप में भी काम करता था. उसने अपने खिलाफ दायर मानहानि के मामले को खारिज करने की मांग की थी. याचिकाकर्ता के वकील ने न्यायालय को आश्वासन दिया कि उनका मुवक्किल अपनी कानूनी प्रैक्टिस पर ध्यान केंद्रित करने के लिए पत्रकारिता गतिविधियों को बंद कर देगा, चाहे वह फुलटाइम हो या पार्टटाइम.
बीसीआई ने स्पष्ट किया अपना रुख
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि बीसीआई ने स्पष्ट कर दिया है कि अधिवक्ताओं के लिए पूर्णकालिक पत्रकारिता कोई एक्टीविटी नहीं है. यह फैसला वकीलों और मीडिया पेशेवरों के कार्यक्षेत्रों के बीच टकराव की स्थिति को रोकने के लिए है. इस मामले की अगली सुनवाई फरवरी 2025 में होगी.