दिल्ली की साकेत कोर्ट ने गुरुवार को सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर और विनय कुमार सक्सेना की दलीलों पर सुनवाई पूरी कर ली है. कुछ दिन पहले 24 मई को साकेत कोर्ट ने दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा दायर मानहानि मामले में मेधा पाटकर को दोषी ठहराया था. मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा, की अदालत ने 24 मई को माना कि पाटकर को दोषी ठहराया था,कोर्ट ने माना था कि पाटकर द्वारा लगाए गए आरोप से सक्सेना की बदनामी हुई है. साकेत कोर्ट ने दिल्ली कानूनी सेवा प्राधिकरण से वीआईआर भी मांगी.
दिल्ली के उपराज्यपाल के तरफ से:
अदालत में गुरुवार की कार्यवाही के दौरान, दिल्ली एलजी के वकील के द्वारा अधिकतम सजा जो 2 साल की जेल या जुर्माना या दोनों की मांग करते हुए कहा गया कि “एक उदाहरण स्थापित किया जाना चाहिए.”
2006 से पाटकर द्वारा “समान प्रकृति के अपराध को दोहराने” की ओर इशारा करते हुए, सक्सेना के वकील ने कहा कि उनका “कानून की अवहेलना करने का पुराना आचरण” रहा है.
उपराज्यपाल वकील ने दावा किया कि सामाजिक कार्यकर्ता पाटकर के खिलाफ परिस्थितियां “गंभीर” हैं.
मेधा पाटकर के वकील के तरफ से अदालत में दिया गया दलील:
हालाँकि, पाटकर के वकील ने कहा कि कोई “गंभीर परिस्थितियाँ” नहीं हैं और न ही वह “हैबिचुअल ऑफेंडर” हैं. मेधा पाटकर के वकील ने बचाव करते हुए कहा कि वह 70 साल की है और कई बीमारियों से पीड़ित भी हैं. इसके साथ ही उन्हें सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम करते हुए 28 राष्ट्रीय एवं 5 अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला हुआ है. उनके वकील ने कहा इनमें ‘राइट लाइवलीहुड अवार्ड’ भी शामिल है, जिसे व्यापक रूप से नोबेल पुरस्कार का विकल्प माना जाता है.
क्या है मामला?
सामाजिक कार्यकर्ता पाटकर और एलजी सक्सेना की कानूनी लड़ाई वर्ष 2000 से चली आ रही है, जब उपराज्यपाल अहमदाबाद स्थित गैर सरकारी संगठन नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे. एक्टिविस्ट मेधा पाटकर ने उनके और नर्मदा बचाओ आंदोलन के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया था. वीके सक्सेना ने 2006 में एक टीवी चैनल पर उनके बारे में “अपमानजनक” टिप्पणी करने और “अपमानजनक” प्रेस बयान जारी करने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता पाटकर के खिलाफ दो केस भी दर्ज कराए थे.
नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा दावा किया गया था कि गुजरात में सरदार सरोवर बांध का निर्माण, जिसका उद्घाटन 2017 में किया गया था, 40,000 परिवारों को प्रभावित कर सकता है. इसने विरोध में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किया था, जिसमें कहा गया था कि परिवारों को अपने घर छोड़ने पड़ सकते हैं, जो डूब सकते हैं. 1961 में तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू द्वारा इसकी आधारशिला रखे जाने के बाद से ही यह परियोजना विवादों में घिर गई थी.