“राम में रमा जीवन, हथौड़ी में भक्ति: 540 परिक्रमा कर तराशा राम दरबार का दिव्य रूप!”

अयोध्या नगरी में रामभक्ति का नया सूर्योदयअयोध्या की दिव्य धरा पर श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के भव्य निर्माण के बीच एक और ऐतिहासिक अध्याय जुड़ गया है। अब मंदिर के प्रथम तल पर श्रीराम अपने संपूर्ण दरबार—माता सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और हनुमान सहित—सिंहासन पर विराजमान हो चुके हैं. यह दृश्य केवल ईश्वर का रूप नहीं, एक महान तपस्या, अटूट श्रद्धा और निर्मल भक्ति का मूर्त रूप है, जिसे आकार दिया है राजस्थान के सुप्रसिद्ध मूर्तिकार सत्यनारायण पांडेय और उनकी साधक टीम ने.

Advertisement

मूर्ति नहीं, यह तो भक्ति की जीवंत अभिव्यक्ति है
जयपुर स्थित कार्यशाला में शारदीय नवरात्र 2024 के पावन प्रारंभ के साथ मूर्तियों पर कार्य आरंभ हुआ। यह केवल एक शिल्प यात्रा नहीं थी, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुष्ठान था. आठ महीनों तक हर दिन 10 घंटे की साधना, 25 शुद्ध सात्विक और शाकाहारी कारीगरों की टीम, और हर प्रहार में श्रीराम का नाम—यही रहा इस दिव्य रचना का मूलमंत्र.

सत्यनारायण पांडेय, जिनकी हथौड़ी में सिर्फ तकनीक नहीं, रामभक्ति की गूंज थी, हर दिन श्रीराम के 540 परिक्रमा करते, फिर हनुमान चालीसा का पाठ कर छेनी-हथौड़ी उठाते। उनका यह विश्वास कि “जब तक मन श्रीराम में रमा न हो, तब तक पत्थर आत्मा नहीं पकड़ता”, आज उनके कार्य से प्रमाणित हो गया है.

एक शिला, अनेक रूप—राम दरबार की शिल्प महागाथा
राम दरबार की प्रत्येक मूर्ति में एक विशेषता है, एक संदेश है, और एक गहराई है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि श्रीराम और माता सीता की मूर्ति एक ही संगमरमर की शिला से उकेरी गई है, जो उनके अटूट प्रेम और एकत्व का प्रतीक है. श्रीराम के चेहरे पर जहां तेज, शौर्य और मर्यादा पुरुषोत्तम का भाव स्पष्ट है, वहीं माता सीता की छवि में करुणा, शालीनता और धैर्य की आभा झलकती है.

लक्ष्मण और हनुमान—श्रीराम के दो सबसे निकटवर्ती सेवक—बैठी मुद्रा में दरबार की शोभा बढ़ाते हैं। वहीं भरत और शत्रुघ्न हाथों में चंवर लिए खड़े हैं, सेवा और सम्मान की पराकाष्ठा को दर्शाते हुए। यह न केवल पारिवारिक एकता का प्रतीक है, बल्कि भारतीय संस्कृति में ‘सेवा में श्रद्धा’ के मूल भाव को भी मूर्त रूप में प्रस्तुत करता है.

मंदिर के प्रथम तल पर सज रहा भावनाओं का दिव्य दरबार
वर्तमान में सत्यनारायण पांडेय और उनकी समर्पित टीम मंदिर के प्रथम तल पर मूर्तियों की स्थापना में संलग्न हैं। यह कार्य केवल स्थापत्य नहीं, बल्कि एक ब्रह्मांडीय संतुलन की स्थापना है। सिंहासन, जिसे विशेष वास्तु और ऊर्जा केंद्र के अनुसार तैयार किया गया है, पर श्रीराम परिवार का प्रतिष्ठापन मंदिर को दिव्यता की पराकाष्ठा तक ले जाएगा.

स्थापना की प्रक्रिया में शास्त्रों और परंपराओं का पूर्ण पालन किया जा रहा है. श्रीविग्रहों की दिशा, दृष्टि और मुद्रा तक पर विशेष ध्यान दिया गया है ताकि भक्तों को न केवल सौंदर्य का अनुभव हो, बल्कि एक आत्मिक जुड़ाव भी हो सके.

540 परिक्रमा: भक्ति की पराकाष्ठा या साधना का संग्राम?
शिल्पकार सत्यनारायण पांडेय का दैनिक 540 परिक्रमा करना किसी चमत्कार से कम नहीं लगता। यह संख्या यूँ ही नहीं चुनी गई, बल्कि उनकी आध्यात्मिक साधना का अंश है. वे मानते हैं कि जब तक देह थके, मन थमे और आत्मा संपूर्ण रूप से श्रीराम में लीन न हो, तब तक कोई रचना दिव्यता को नहीं छू सकती.

उनकी हथौड़ी केवल पत्थर नहीं तोड़ती, वह अपने हर प्रहार से रामनाम का जाप करती है. यह भक्ति और शिल्प का वह संगम है, जो आज के समय में विरले ही देखने को मिलता है.

जयपुर से अयोध्या तक: एक दिव्य यात्रा का समापन, एक भक्ति यात्रा का प्रारंभ
जयपुर की नक्काशी, राजस्थान की कारीगरी, और श्रीराम की भक्ति—इन तीनों का संगम है यह राम दरबार। जब ये मूर्तियां पहली बार अयोध्या पहुंचीं, तो स्थानीय संतों और भक्तों की आंखें नम हो गईं। उन्होंने इसे सिर्फ मूर्तियां नहीं, बल्कि “जीवंत राम दरबार” कहा।

स्थानीय पुजारियों ने बताया कि जैसे ही मूर्तियां मंदिर परिसर में पहुंचीं, वातावरण में अनोखी ऊर्जा का संचार हुआ। लोग स्वतः नमस्कार की मुद्रा में झुक गए, और घंटों तक निहारते रहे.

भविष्य की ओर एक दृष्टि
अब जब यह दिव्य राम दरबार अपने स्थान पर प्रतिष्ठित होने जा रहा है, तो मंदिर आने वाले लाखों भक्तों के लिए यह केवल दर्शन नहीं, बल्कि आत्मिक स्पर्श का अनुभव होगा। यहाँ आएगा हर वह व्यक्ति जो श्रीराम में अपना आराध्य, मार्गदर्शक, और आत्मा का साथी देखता है.

सत्यनारायण पांडेय और उनकी टीम ने साबित कर दिया है कि कला केवल सौंदर्य की चीज नहीं, बल्कि भक्ति का माध्यम बन सकती है। राम दरबार अब केवल एक शिल्प नहीं, एक साधना है, एक तप है, एक पुकार है—जो कहती है: “जब मन राम में रम जाए, तब पत्थर भी भगवान हो जाता है. ”

अयोध्या का यह नया अध्याय केवल धार्मिक नहीं, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और शिल्प के उत्कर्ष का प्रतीक है. जैसे-जैसे राम दरबार में प्राण प्रतिष्ठा की घड़ी नजदीक आती है, देश-विदेश से भक्तों की आंखें एक ही दिशा में लगी हैं—अयोध्या की ओर। और जब यह दरबार भक्तों के लिए खुलेगा, तब हर कोई यही कहेगा—”यह केवल मूर्तियां नहीं, भक्ति का साक्षात रूप हैं.”

 

 

Advertisements