पश्चिम बंगाल के राणाघाट से मानवता और एकजुटता की एक भावुक कर देने वाली कहानी सामने आई है. 16 महीने की अस्मिका दास, जो एक दुर्लभ और गंभीर जेनेटिक बीमारी स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) टाइप-1 से पीड़ित थी, अब ज़िंदगी की ओर लौट रही है. उसकी जान बचाने के लिए 9 करोड़ रुपये जुटाने की असंभव सी दिखने वाली चुनौती को आम लोगों के सहयोग से संभव बनाया गया.क्राउडफंडिंग के ज़रिए जुटाई गई इस राशि से अस्मिका को दुनिया के सबसे महंगे इंजेक्शनों में से एक – ज़ोलगेन्स्मा – बुधवार को कोलकाता के पीयरलेस अस्पताल में दिया गया. इलाज की निगरानी कर रहीं डॉक्टर संजुक्ता डे के अनुसार, SMA एक ऐसी बीमारी है जिसमें बच्चों के शरीर में जरूरी SMA प्रोटीन नहीं बनता, जिससे मांसपेशियां और नसें कमजोर होती जाती हैं.
डॉ. डे ने बताया कि अस्मिका को SMA टाइप-1 है, जो बीमारी का सबसे गंभीर रूप है और तेजी से असर करता है। “उसे यह इंजेक्शन दो साल की उम्र से पहले देना जरूरी था. 17 महीने की उम्र में उसे ज़ोलगेन्स्मा दिया गया है. अब उसकी स्थिति में धीरे-धीरे सुधार आने की उम्मीद है.”इलाज से पहले अस्मिका बैठ नहीं पाती थी, उसे खाना निगलने में दिक्कत होती थी और उसके हाथ बुरी तरह कांपते थे. डॉक्टरों को उम्मीद है कि अब वह काफी हद तक सामान्य जीवन जी पाएगी.
अस्मिका के पिता शुभंकर दास, जो निजी क्षेत्र में काम करते हैं, ने भावुक होकर कहा, “हमारे पास इतने पैसे नहीं थे, लेकिन समाज ने हमारी बेटी के लिए चमत्कार कर दिखाया। मैं चाहता हूं कि वह बड़ी होकर लोगों की मदद करे और मानवता के लिए काम करे.”हालांकि अस्मिका की सफलता की यह कहानी यह भी दिखाती है कि ऐसे कई और बच्चे इस बीमारी से जूझ रहे हैं, जिनके पास इलाज का साधन नहीं है.सोनारपुर की एक और बच्ची हृदिका SMA से पीड़ित है. उसकी मां हेमंती दास ने राज्य सरकार और लोगों से मदद की अपील करते हुए कहा, “हम जैसे साधारण परिवार के लिए 9 करोड़ रुपये इकट्ठा करना संभव नहीं है. कृपया हमारी बेटी के लिए भी साथ आएं, जैसे अस्मिका के लिए आए थे.”डॉ. डे ने भी सरकार से अपील की है कि थैलेसीमिया जैसे अन्य जेनेटिक रोगों की तरह SMA के प्रति जागरूकता फैलाने और जोखिम वाले माता-पिता की पहचान के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम चलाए जाएं.क्राउडफंडिंग अभियान में मदद करने वाले स्वयंसेवी संगठन के प्रतिनिधि ने बताया कि अस्मिका की कहानी ने न केवल एक बच्ची की जान बचाई, बल्कि SMA जैसी जानलेवा बीमारी के प्रति समाज को जागरूक करने का काम भी किया.हम अब तक लगभग 10 अन्य ऐसे बच्चों की जानकारी जुटा चुके हैं जो इस बीमारी से ग्रसित हैं.अस्मिका की कहानी सामूहिक प्रयास, दया, और उम्मीद की मिसाल है.यह साबित करता है कि जब समाज एक साथ खड़ा होता है, तो असंभव भी संभव हो सकता है.