सैफई/इटावा: उत्तर प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय, सैफई का 500 बेड वाला सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, जहाँ मरीजों को अत्याधुनिक सुविधाएं मिलने की उम्मीद होती है, वहीं लापरवाही का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है. अस्पताल में हाल ही में चालू की गईं नई लिफ्टें बिना किसी समर्पित ऑपरेटर के चल रही हैं, जिससे यात्रियों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं.
शुक्रवार को लापरवाही का यह आलम तब उजागर हुआ, जब ग्राउंड फ्लोर स्थित एक्स-रे कक्ष के पास एक लिफ्ट में दो स्थानीय पत्रकार लगभग 20 मिनट तक फंसे रह गए, जिससे परिसर में हड़कंप मच गया.
सबसे चिंताजनक बात यह थी कि लिफ्ट के अंदर न तो कोई संपर्क नंबर उपलब्ध था और न ही लिफ्ट की पहचान से जुड़ी कोई जानकारी अंकित थी. इसके अलावा, मौके पर कोई लिफ्ट ऑपरेटर भी मौजूद नहीं था जो तत्काल सहायता प्रदान कर सके. किसी तरह विश्वविद्यालय के अधिकारियों को घटना की सूचना दी गई, जिसके बाद कर्मचारी मौके पर पहुंचे और लिफ्ट का दरवाजा खोलकर फंसे हुए पत्रकारों को बाहर निकाला गया. इस घटना ने विश्वविद्यालय में लिफ्ट संचालन की लचर व्यवस्था को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया है.
सवाल उठता है कि जब तक लिफ्टों के सुरक्षित संचालन के लिए आवश्यक व्यवस्थाएं पूरी नहीं हो जातीं, तब तक उन्हें क्यों चालू किया गया?
यह कोई पहली घटना नहीं है जो सैफई विश्वविद्यालय परिसर में हुई है. ट्रॉमा सेंटर, ओपीडी, मेडिकल कॉलेज, हॉस्टल और प्रशासनिक भवन सहित विभिन्न ब्लॉकों में लिफ्टें तो लगी हैं, लेकिन उन्हें संचालित करने के लिए आवश्यक संख्या में लिफ्ट ऑपरेटर नहीं हैं. इससे आए दिन मरीज, उनके तीमारदार और यहां तक कि स्टाफ को भी भारी असुविधा और परेशानी झेलनी पड़ती है। पड़ताल में सामने आया कि ट्रॉमा सेंटर में चार लिफ्टें होने के बावजूद वहाँ केवल एक ऑपरेटर कार्यरत था.
इसी तरह, पुरानी ओपीडी में छह लिफ्टों के लिए भी मात्र एक ही ऑपरेटर तैनात था. पूरे विश्वविद्यालय परिसर में कुल 60 लिफ्टें स्थापित हैं। इनमें से न्यू ओपीडी में चार, मेडिकल कॉलेज में आठ, पीजी हॉस्टल में चार, टाइप-2 और टाइप-4 मल्टीस्टोरी भवनों में दो-दो, प्रशासनिक भवन में दो और सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में 18 लिफ्टें शामिल हैं.
इन सभी लिफ्टों के संचालन के लिए विश्वविद्यालय के पास कुल 21 लिफ्ट ऑपरेटर हैं, जिनमें 10 नियमित और 11 संविदा पर हैं। चूंकि कार्य तीन शिफ्टों में होता है, एक समय में केवल 6 से 7 ऑपरेटर ही अपनी ड्यूटी पर होते हैं। इस कमी के कारण, यदि कोई लिफ्ट बंद हो जाती है, तो दूसरी इमारत से ऑपरेटर के मौके पर पहुंचने में 20 से 25 मिनट का महत्वपूर्ण समय लग जाता है। इस दौरान, स्ट्रेचर या व्हीलचेयर पर लाए गए मरीजों को अक्सर रैंप के सहारे ऊपर ले जाने की जद्दोजहद करनी पड़ती है, जिससे उन्हें और उनके परिजनों को गंभीर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कई बार व्हीलचेयर व स्ट्रेचर भी खराब मिलते हैं, जो परेशानी को और बढ़ा देते हैं।
विश्वविद्यालय की 60 में से 42 लिफ्टें कई वर्षों पुरानी हैं। इनमें से अधिकांश लिफ्टें ओपीडी, मेडिकल कॉलेज और हॉस्टल भवनों में लगी हैं। समय पर रखरखाव (मेंटेनेंस) न होने के कारण ये लिफ्टें अक्सर खराब हो जाती हैं और यात्रियों के फंसने की घटनाएं लगातार सामने आती रहती हैं।
यह स्थिति और भी गंभीर हो जाती है जब हम मरीजों की संख्या पर गौर करते हैं। विश्वविद्यालय के ट्रॉमा सेंटर में प्रतिदिन लगभग 700 मरीज पहुंचते हैं, जबकि ओपीडी में दो से तीन हजार मरीज पंजीकरण कराते हैं.
इसके अतिरिक्त, लगभग 800 मरीज वार्डों में भर्ती रहते हैं, जिन्हें अलग-अलग फ्लोर पर जांच और इलाज के लिए ले जाया जाता है. ऐसी स्थिति में, लिफ्ट संचालन में किसी भी प्रकार की लापरवाही न केवल असुविधाजनक है, बल्कि जानलेवा भी साबित हो सकती है.
कुलसचिव अभिनव रंजन श्रीवास्तव ने इस घटना पर संज्ञान लेते हुए कहा है कि सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में लगी लिफ्टें पहले बंद थीं, और बिना ऑपरेटर के उन्हें क्यों संचालित किया गया, इसकी जांच कराई जाएगी. उन्होंने यह भी आश्वस्त किया कि लिफ्ट संचालन को सुरक्षित और व्यवस्थित बनाने के लिए ऑपरेटरों की संख्या बढ़ाने सहित आवश्यक दिशा-निर्देश संबंधित विभाग को दिए जा चुके हैं.