मुसलमानों में लगातार बढ़ रही साक्षरता, 80 फीसदी पहुंची दर, केंद्र का संसद में जवाब

देश में मुसलमानों के बीच साक्षरता दर में लगातार वृद्धि हो रही है. सरकार ने आज सोमवार को बताया कि देश में मुसलमानों में साक्षरता दर में इजाफा हुआ है. केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने बताया कि 2001 की तुलना में 2011 में देश में मुसलमानों के बीच साक्षरता दर में करीब 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

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अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा को एक सवाल के लिखित जवाब में बताया कि साल 2001 में देश में हुई जनगणना के अनुसार, 7 वर्ष और उससे अधिक आयु के मुसलमानों के बीच साक्षरता की दर 59.1 फीसदी हुआ करती थी, जबकि एक ही आयु वर्ग के लिए अखिल भारतीय साक्षरता दर तब 64.8 फीसदी थी.

2011 में क्या रही थी साक्षरता दर

केंद्रीय मंत्री ने बताया कि 10 साल बाद कराए गए 2011 की जनगणना के अनुसार, 7 साल और उससे अधिक आयु के मुसलमानों में साक्षरता दर 68.5 फीसदी थी जबकि इसी आयु वर्ग में देश भर में साक्षरता की दर इससे अधिक 73 फीसदी थी.

उन्होंने कहा कि मंत्रालय को 6 अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों यानी बौद्ध, ईसाई, जैन, मुस्लिम, पारसी और सिखों के कल्याण तथा सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों के निर्माण का काम सौंपा गया है. इससे पहले, मंत्री ने पिछले 3 दशकों में मुसलमानों की साक्षरता दर में सुधार से संबंधित आंकड़ों का साझा किया, जिसमें मुसलमानों और अन्य धर्मों के बीच अंतर को कम करने की बात कही गई.

PLFS के अनुसार, 80% मुस्लिम साक्षरता

देश भर में मुस्लिम समाज के बीच साक्षरता दर में बढ़ोतरी का जिक्र करते हुए किरेन रिजिजू ने कहा, “इस प्रकार, साल 2001 की जनगणना की तुलना में साल 2011 में कराए गए जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि मुसलमानों के बीच साक्षरता दर में 9.4 फीसदी की वृद्धि हुई है.”

उन्होंने बताया कि आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey, PLFS), 2023-24, के मुताबिक, देश भर में 7 साल और उससे अधिक आयु वर्ग के मुसलमानों के बीच साक्षरता दर 79.5 फीसदी थी जबकि जबकि इसी आयु वर्ग के सभी धर्मों के लोगों की साक्षरता दर में मामूली बढ़त थी और यह 80.9 फीसदी थी.

किरेन रिजिजू ने बताया कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने शिक्षा पर विशेष ध्यान देने के साथ-साथ देश के अल्पसंख्यक समुदायों के विकास के लिए बहुतायत रणनीति पर काम किया है जिसमें उनका सशक्तिकरण, बुनियादी ढांचा विकास, आर्थिक सशक्तिकरण, विशेष आवश्यकताओं को पूरा करने शामिल है, साथ ही अल्पसंख्यक संस्थानों को मजबूत करना भी अहम है.

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