दंतेवाड़ा में आदिवासी सफाईकर्मियों की रोजी पर संकट: 154 को काम से निकाला, वेतन भी नहीं मिला..

दंतेवाड़ा में सफाई कर्मियों को शिक्षा विभाग ने काम से निकाल दिया है। साल 2021-22 में 2300 रुपए मंथली सैलरी पर 154 लोगों को काम पर रखा और अब काम पर आने से मना कर दिया है।

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इन सफाई कर्मियों के हालात ऐसे हैं कि ये आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। कोई दिव्यांग है, तो कोई बेसहारा। अब रोजी-रोटी की तलाश में घर और अपना गांव छोड़कर दूसरे राज्य में काम की तलाश में जाने का मन बना लिए हैं।

पहले जानिए कैसे हुई भर्ती

दरअसल, यह मामला दंतेवाड़ा जिले के गीदम ब्लॉक का है। सफाई कर्मियों का कहना है कि साल 2021-22 में अलग-अलग गांवों में स्थित प्राथमिक और माध्यम शाला में इनकी भर्ती हुई थी। भर्ती के लिए पहले ग्राम सभा हुई। ग्राम सभा में संकुल समन्वयक समेत वहां के स्कूल शिक्षक भी मौजूद थे।

ग्राम सभा में प्राथमिक और माध्यमिक शाला के लिए एक-एक सफाई कर्मी नियुक्त किए गए। जिसके बाद काम भी किया गया। सफाई कर्मी बिनेश कुमार नेताम और रमेश कुमार मंडावी का कहना है कि हर दिन ड्यूटी पर जाते थे और स्कूल के रजिस्टर में दस्तखत भी करते थे। लेकिन कुछ महीने पहले हमें काम में आने से मना कर दिया गया।

2300 रुपए के हिसाब से सिर्फ 4 महीने मिला पेमेंट

सभी सफाई कर्मियों ने एक साल ड्यूटी की, लेकिन 2300 रुपए के हिसाब से सिर्फ 4 महीने का ही पेमेंट उनके खाते में डाला गया। बाकी के महीने का पेमेंट भी रोक दिया गया है।

उन्होंने कहा कि, इस मामले के संबंध में जब हमने दंतेवाड़ा DEO और गीदम के BEO से बात की तो उन्होंने कहा कि, ऊपर से आदेश है इसलिए हटा दिया गया है। हालांकि, उन्होंने काम में न आने कोई लिखित में आदेश जारी नहीं किया है।

महिला रोते हुए बोली- अब अपना घर छोड़ने मजबूर

रामबती कश्यप ने बताया कि गीदम में कड़ती पारा की रहने वाली हूं। मेरी एक बेटी है, जो पढ़ाई कर रही है। घर की स्थिति ठीक नहीं है। मेरी तबीयत ठीक नहीं है। बीमार रहती हूं। पहले मजदूरी करके गुजर-बसर करती थी। फिर स्कूल सफाई कर्मचारी के पद पर भर्ती हुई। सोची थी वहां से थोड़े बहुत पैसे मिलेंगे जिससे घर चला लूंगी।

गुजारा चल जाएगा। सरकारी राशन-दुकान से राशन तो मिल जाता है, लेकिन दवाइयों के लिए पैसों की जरूरत होती है। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। अब अपना घर छोड़ने मजबूर हो गई हूं। अब काम की तलाश में दूसरे राज्य जाने की सोच रही हूं। बेटी को पढ़ा कर अफसर बनाउंगी।

दिव्यांग हूं, इसलिए कोई भी काम पर नहीं रखता

अन्नी राम नेताम ने बताया कि जोड़ा तराई का रहने वाला हूं। करीब 50 से 60 प्रतिशत आंख की रोशनी चली गई है। इतना दिखाई देता है कि साफ-सफाई का काम कर लेता हूं। दिव्यांग हूं, इसलिए कोई भी मजदूरी के काम पर नहीं रखता। इसलिए बेरोजगार हूं। घर में माता-पिता हैं, जो बूढ़े हैं।

खेती-किसानी का काम करते हैं। सोचा था नौकरी मिलेगी तो सहारा मिलेगा। भले ही पैसे कम हैं, लेकिन जितने भी मिल रहे हैं, उनमें बहुत सहारा है। काम से निकाल दिया गया है। अब मजबूर हो चुका हूं। शासन प्रशासन से यही गुहार है कि काम में वापस रख लें।

बच्चे करते हैं स्कूल के टॉयलेट-बाथरूम साफ

सफाई कर्मियों का कहना है कि जब स्कूल खुलता है, बच्चे आते हैं तो स्कूलों में गंदगी फैली रहती है। जब हमें काम से निकाला गया तो स्कूल के बच्चे टॉयलेट बाथरूम साफ करते थे। जिसकी तस्वीर भी हमने ली। इन तस्वीरों को भी हमने अधिकारियों को दिखाया, तो उनका जवाब आया कि करते हैं तो करने दो। अब बच्चे पढ़ाई छोड़कर क्या यह सब काम करेंगे?

सरकार का दावा- जिले में ही मिलेगा रोजगार

दरअसल, दंतेवाड़ा जिला नक्सल प्रभावित है। वहीं राज्य सरकार का दावा है कि नक्सल प्रभावित जिलों के युवाओं को, बेरोजगारों को उनके जिलों में ही रोजगार दिया जा रहा है। लेकिन दंतेवाड़ा शिक्षा विभाग में इसका उलट है। यहां जिन्हें काम पर रखा गया था उन्हें काम से निकाल कर बेरोजगार कर दिया गया है। जिससे सफाई कर्मी रोजी-रोटी की तलाश में पलायन कर पड़ोसी राज्य जाकर वहां मजदूरी करने का मन बना लिए हैं।

 

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