‘भगवान कृष्ण पहले मीडिएटर थे…’, बांके बिहारी मंदिर मामले में SC ने यूपी सरकार को फटकारा, दिया मध्यस्थता का सुझाव

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वृंदावन स्थित प्राचीन बांके बिहारी मंदिर को अपने नियंत्रण में लेने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश पर सवाल उठाया. शीर्ष अदालत ने कहा कि वह श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए वृंदावन में श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर विकसित करने की महत्वाकांक्षी परियोजना को 15 मई को दी गई मंजूरी को स्थगित रखेगा, क्योंकि इसमें मुख्य हितधारकों की बात नहीं सुनी गई.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि भगवान कृष्ण पहले मध्यस्थ थे और पक्षकारों को मामले में मध्यस्थता का प्रयास करना चाहिए. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने राज्य सरकार द्वारा गुप्त तरीके से अदालत का दरवाजा खटखटाने के प्रयास की निंदा की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह लाखों श्रद्धालुओं के हित में मंदिर के मामलों के प्रबंधन के लिए हाई कोर्ट या डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक समिति गठित करेगा और प्रबंध समिति में मुख्य हितधारकों को भी शामिल करेगा.

भगवान श्रीकृष्ण पहले मध्यस्थकार थे: सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, ‘जब आप मध्यस्थता की बात करते हैं, तो भगवान श्रीकृष्ण पहले मध्यस्थकार थे. इसलिए हम भी इस मामले में मध्यस्थता का प्रयास करते हैं. श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट ऑर्डिनेंस, 2025 की वैधता को चुनौती देने से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के.एम नटराज से अंतरिम व्यवस्था के संबंध में राज्य सरकार से निर्देश लेने को कहा और मामले पर विचार के लिए मंगलवार की तारीख तय की. पीठ ने अध्यादेश की वैधता को चुनौती देने के लिए पक्षकारों को इलाहाबाद उच्च न्यायालय भेजने का प्रस्ताव रखा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट ऑर्डिनेंस, 2025 अध्यादेश की वैधता को लेकर हाई कोर्ट का फैसला आने तक मंदिर का प्रबंधन एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली समिति के अधीन रहेगा और मंदिर में होने वाले अनुष्ठान पहले की तरह जारी रहेंगे. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह एक असाधारण महत्व का मामला है… हम किसी को भी इससे बाहर नहीं रखना चाहते. यह पहली बार नहीं है जब शीर्ष अदालत ने बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन को लेकर यूपी सरकार से सवाल पूछे हों. मई में जब इस मामले की सुनवाई एक अलग पीठ ने की थी, तो न्यायमूर्ति नागरत्ना ने सवाल उठाया था कि राज्य ने दो निजी पक्षों के बीच मुकदमेबाजी को ‘हाईजैक’ करने का फैसला क्यों किया?

बांके बिहारी मंदिर के मौजूदा प्रबंधन ने क्या कहा?

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने बांके बिहारी मंदिर के मौजूदा प्रबंधन को सूचित किए बिना ही चुपके से एक अदालती आदेश प्राप्त कर लिया- जो मूल रूप से एक अन्य मंदिर से संबंधित था. उन्होंने दावा किया कि 15 मई के आदेश को पारित करने से पहले सुप्रीम कोर्ट को मौजूदा मंदिर प्रबंधन का पक्ष सुनने का कोई अवसर नहीं मिला, जिसका इस्तेमाल अब अध्यादेश को सही ठहराने के लिए किया जा रहा है. इस कदम को चौंकाने वाला बताते हुए दीवान ने तर्क दिया कि बांके बिहारी मंदिर एक निजी मंदिर है और राज्य को उचित कानूनी प्रक्रिया के बिना इसमें हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की मंशा पर उठाए सवाल

उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे एडि​शनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) ने तर्क दिया कि बांके बिहारी मंदिर निजी नहीं है और अध्यादेश पर आपत्ति जताने वाले लोगों का संबंध इसके मौजूदा प्रबंधन से नहीं है. लेकिन अदालत राज्य सरकार की इस दलील से सहमत नहीं हुई. पीठ ने टिप्पणी की, ‘हमें बताइए कि इस अदालत ने कभी किसी मंदिर प्रतिनिधि की सुनवाई करने का इरादा कहां रखा था? मंदिर के मौजूदा प्रबंधन को कोई सार्वजनिक सूचना क्यों नहीं दी गई? हमें उम्मीद नहीं है कि राज्य इस तरह से आगे बढ़ेगा, राज्य को सूचित करना चाहिए था.’

स्वर्ण मंदिर के प्रबंधन को लेकर की गई पहलों का उदाहरण देते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा, ‘विधायी या कार्यकारी शक्तियों का इस्तेमाल करने के बजाय ऐसी भी पहल की जा सकती है. आपको लगता है कि अगर आप लोगों से बात करेंगे तो वे मना कर देंगे? इसके बजाय, आप उनकी पीठ पीछे अदालत गए. आपको जमीन का कानूनी तरीके से अधिग्रहण करने और मुआवजा देने से किसने रोका?’ हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मंदिर के धन का उपयोग इसके विकास के लिए किया जाएगा और इसे निजी मंदिर के नाम पर निजी व्यक्तियों द्वारा हड़पा नहीं जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की, ‘धार्मिक पर्यटन महत्वपूर्ण है. विरासत को बनाए रखना जरूरी है. लेकिन एक ऐसा इकोसिस्टम भी होना चाहिए जहां श्रद्धालुओं को कुप्रबंधन नहीं, बल्कि व्यवस्था का एहसास हो.’ पीठ ने स्पष्ट किया कि अध्यादेश को अनुच्छेद 226 के तहत हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, लेकिन इस बीच, एक संतुलित अंतरिम व्यवस्था आवश्यक है.

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