Vayam Bharat

8 की उम्र में खो गई, 57 साल बाद ऐसे मिला परिवार, आजमगढ़ की फूलवती की फिल्मों जैसी कहानी

उत्तर प्रदेश में रामपुर की बिलासपुर तहसील के पजावा गांव के प्राथमिक स्कूल में बच्चों के लिए खाना पकाने वाली 65 साल की रसोईया को कुल 57 साल बाद आखिर अपना घर परिवार मिल ही गया. यह सब स्कूल की प्रिंसिपल की कोशिशों के चलते हुआ जब उन्होंने बूढ़ी रसोईया से उसके परिवार से बिछड़ने की दुख भरी कहानी सुनी.

Advertisement

दुख भरी दास्तां सुनकर लोग अक्सर अफसोस तो करते हैं लेकिन मदद के लिए आगे नहीं आते पर स्कूल की प्रिंसिपल ने मन ही मन में यह ठान लिया था कि वह इस 57 साल पहले मेले में खोई 8 साल की बच्ची जो कि अब 65 साल की बूढ़ी रसोईया है को उसके परिवार से मिलाएंगी. उनका यह संकल्प पूरा भी हुआ.

इस विषय पर फूलवती ने मीडिया से बात करते हुए कहा, हम आजमगढ़ से आए मुरादाबाद में बिछड़ गए थे. जिसने हमें गोद लिया था उसी ने हमें रखा था उसी ने हमारी शादी की थी. उसी की वजह से हमारी इतनी उम्र हुई है. बिछड़ने के समय मेरी उम्र 8 साल की थी. अब मैडम ने परिवार से मिलवाया है. मैडम ने मुझसे पूछा था कि आंटी तुम कहां की रहने वाली हो तो हमने सारे किस्से के साथ उन्हें बताया था कि हमारा जिला आजमगढ़ लगता है. मैडम का भाई वहां पर पोस्टिंग में हैं तो उन्होंने अपने भाई से जानकारी निकलवाई. मुझे पहले का कुआं याद था और मामा और भाई का नाम याद थ. मेरे गांव का नाम छुटीदार था. वहीं से हमारी खोज निकाली गई. अब तो हमारा सब परिवार मिल गया. 57 साल के बाद परिवार मिला, फिर मैं आजमगढ़ गई और एक महीने रहकर आई. बहुत अच्छा लग रहा था, पूरा परिवार अच्छा है. जब हमारी जन्मभूमि मिल गई तो क्या वहां अच्छा नहीं लगेगा, बिछड़े हुए लोग मिल गए तो अच्छा ही लगेगा.

यह पूछे जाने पर कि आपका इतना लंबा समय कैसे गुजरा? इसपर फूलवती ने बताया, ऐसी ही गुजरा जैसे मलिक ने गुजरवाया, मैडम का योगदान रहा, मैडम स्कूल में पढ़ाती हैं. उन तक बात ऐसे पहुंची कि मैं वहां 15 सालों से खाना बनाती थी. उन्होंने एक दिन मुझसे पूछा कि आंटी आप कहीं नहीं जाती हो, छुट्टी भी नहीं लेती हो. तो मैंने उनसे कहा कि दीदी मैं कहां पर जाऊं मेरी कहीं जाने की जगह नहीं है.

फूलवती की मदद करने वाली प्रिंसिपल डॉक्टर पूजा रानी ने बताया- कहानी यह है कि आंटी यहां पर रसोईया के पद पर कार्यरत थीं. मैं यहां 2016 में आई हूं, तब से उनसे मुलाकात हुई है. अभी कुछ टाइम पहले ही हमारी उनसे बात हुई तो उन्होंने बताया कि वह कभी छुट्टियों पर क्यों नहीं जातीं. उन्होंने कहा था कि हम कहां जाएंगे हम तो अकेले हैं अनाथ हैं . मैंने उनसे पूछा कि ऐसा क्यों है तो उन्होंने अचानक से बताया कि हम मेले में खो गए थे.वहां से हमको कोई टॉफी का लालच देकर ले गया था. फिर बेच दिया गया तो पूरा जीवन ऐसे ही अकेले गुजारता है.

प्रिंसिपल ने बताया जब मुझे इनके बारे में पता चला तो मैं बहुत ही ज्यादा भावुक हुई, मुझे रोना भी आया कि कैसे एक लड़की जो केवल 8 साल की है उसने सारी जिंदगी अकेले बिता दी. कैसे उसका बचपन बीता होगा, कैसे जवान हुई? अब तो काफी बुजुर्ग हो गई है. उनके माता-पिता पर क्या बीती होगी? मैं भी एक बेटी हूं मां हूं और एक बहन भी हूं, तो मुझे बहुत दर्द हुआ. हम इनको मिले तो इन्हें कुछ चीज याद थी कि चूड़ीदार गांव है, जहां यह पढ़ने भी जाती थी. एक छोटा सा स्कूल था, उसके पास में मंदिर था और इन्हें अपने मां का नाम याद था. इनकी सारी डिटेल हमने एक डायरी में नोट कर ली थी. फिर हमें पता चला कि वह आजमगढ़ की हैं. मैंने वहां के सर को फोन किया. ऐसे मतलब जैसे अंधेरे में तीर मारा था. सर ने हमसे कहा कि चलिए हम आपकी मदद करेंगे, आप जो भी डिटेल्स हैं वह हमें भेज दीजिए. वह बहुत अच्छे अधिकारी हैं और उन्होंने फूलवती के परिवार को ढूंढ निकाला.

प्रिंसिपल ने आग बताया फिर उन्होंने मुझे कॉल किया कि फूलवती का परिवार हमें मिल गया है. जब उनका परिवार मिल गया तो हम चार रात सो भी नहीं पाए कि कब उन्हें परिवार से मिलाएं. फिर हमने आंटी की उनके भाई से बात कराई .बड़ा अच्छा लगा जब उनका परिवार मिल गया. वह बहुत ही इमोशनल समय था. अब जब आंटी अपने घर गईं, अपने परिवार से मिली तो वहां से वीडियो कॉल आया. उन्होंने केक वगैरा भी काटा. अब उनके भाई यहां वापस छोड़ने भी आए हैं तो मुझसे मुलाकात की और धन्यवाद किया.

इधर इस विषय पर प्रधान पुत्र सिपते हसन ने बताया, यह ग्राम पजावा माजरा रायपुर है, यहां स्कूल में फूलवती एक रसोइया थीं जो कई साल से कम कर रही थीं . एक दिन वह जिक्र कर बैठी मैं 8 साल की थी और कहीं मिले में गुम हो गई थी और फिर हमारी मैडम ने काफी प्रयास किया और उनके परिवार को ढूंढ निकाला.

Advertisements