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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सहायक अध्यापकों को दी बड़ी राहत, विभाग को तीन माह में पदोन्नति का आदेश

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने सहायक अध्यापकों को बड़ी राहत दी है। याचिकाकर्ता राजेंद्र प्रसाद शर्मा और अन्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने शिक्षा विभाग को निर्देश दिया कि वे तीन माह के भीतर याचिकाकर्ताओं की पदोन्नति पर निर्णय लें। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की वरिष्ठता उनकी वास्तविक नियुक्ति तिथि (5 और 7 सितंबर 1998) से मानने का आदेश दिया। इसके साथ ही विभाग को 18 रिक्त अध्यापक पदों पर प्रमोशन पर फैसला करना होगा और सभी लक्षित लाभ दिए जाएंगे। हालांकि बकाया वेतन का भुगतान नहीं किया जाएगा।

याचिकाकर्ताओं ने 25 अगस्त 2014 में जारी विभागीय आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनकी पदोन्नति की मांग खारिज कर दी गई थी। उनका कहना था कि वे 1998 में शिक्षा कर्मी ग्रेड-3 के रूप में नियुक्त हुए और 2007 से सहायक अध्यापक कैडर में शामिल हुए, लेकिन विभाग ने उनकी वरिष्ठता 2001 से गिनकर उन्हें पदोन्नति से वंचित किया। विभाग का तर्क था कि उनके समायोजन के समय 2001 से ही वरिष्ठता मानी जाएगी।

हालांकि हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि 2008 के नियमों के लागू होने के बाद केवल शिक्षा कर्मियों की वास्तविक सेवा को ही वरिष्ठता का आधार माना जाएगा। इसके चलते कोर्ट ने 25 अगस्त 2014 का विभागीय आदेश रद कर दिया। इस फैसले से न केवल याचिकाकर्ताओं की वरिष्ठता मान्यता में आएगी, बल्कि उनके लिए पदोन्नति का मार्ग भी खुल गया।

कोर्ट ने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि संबंधित शिक्षक पदों पर तीन माह के भीतर निर्णय लेने के बाद सभी संबंधित लाभ उन्हें प्रदान किए जाएं। इस फैसले से प्रदेश में सहायक अध्यापकों में काफी राहत और उत्साह का माहौल बना हुआ है।

साथ ही, यह निर्णय शिक्षा विभाग के लिए भी चुनौतीपूर्ण है क्योंकि उन्हें तय समय सीमा में प्रमोशन प्रक्रिया पूरी करनी होगी। इस फैसले से शिक्षा विभाग के कई कर्मचारियों को लंबे समय से लंबित रहने वाली पदोन्नति की उम्मीद जगी है। हाईकोर्ट का यह आदेश प्रदेश के अन्य शिक्षक वर्ग के लिए भी मिसाल माना जा रहा है, जिससे कर्मचारी अधिकारों और वरिष्ठता के महत्व को बल मिला है।

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