मध्यप्रदेश, देश का हृदय स्थल होने के साथ ही अपनी विशेष उपलब्धियों के लिए भी जाना जाता है और टाइगर स्टेट इन्हीं में से एक है. मप्र में इस समय 785 टाइगर्स मौजूद हैं और वन क्षेत्र की शोभा बढ़ा रहे हैं. यही कारण भी है कि यहां पयर्टकों की संख्या लगातार बढ़ रही है. स्वच्छ पर्यावरण और सघन वन, बाघों के लिए अनुकूल वातावरण निर्मित करते हैं. बाघों के संरक्षण से पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) या कहें कि पूरे जंगल का संरक्षण होता है.
यहां हम यह कह सकते हैं कि बाघों को बचाना पूरे इकोसिस्टम को बचाने जैसा है और यह मनुष्य के अस्तित्व के लिए भी बेहद जरूरी है. मध्यप्रदेश सरकार मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में वन और वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए निरंतर कार्य कर रही है.
बाघों ने चुन लिया मध्यप्रदेश
पृथ्वी का सबसे सुंदर प्राणी बाघ है और इनका डेरा मध्य प्रदेश में है. इस बात पर राज्य के लोगों को गर्व है. ठीक उसी प्रकार जैसे भारत देश को बाघों की 3682 संख्या पर गर्व है. यह दुनिया में बाघों की कुल संख्या का 75 प्रतिशत हैं. मध्य प्रदेश के लिए सबसे खुशी की बात यह है कि यहां टाइगर रिजर्व के बाहर भी बाघों की संख्या बढ़ रही है. अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर मध्यप्रदेश दुनिया को बता सकता है कि मध्यप्रदेश के लोगों को अपने बाघों पर अभिमान है और उनके सरंक्षण के लिए कुछ भी कर सकते हैं.
मध्यप्रदेश में सर्वाधिक बाघ
मध्यप्रदेश में बाघों की आबादी 526 से बढ़कर 785 पहुंच गई है. यह देश में सर्वाधिक है. प्रदेश में चार-पांच सालों में 259 बाघ बढ़े हैं. यह वृद्धि 2010 में कुल आबादी 257 से भी ज्यादा है. वन विभाग के अथक प्रयासों और स्थानीय लोगों के सहयोग से जंगल का राजा सुरक्षित है. सभी मिलकर यही संकल्प लें कि भावी पीढ़ी के लिए प्रकृति का बेहतर संरक्षण करें और एक सह्रदय भद्र पुरुष के रूप में बाघों के परिवार को फलने फूलने का अनुकूल वातावरण बनाने में सहयोग करें. बाघों की पुनर्स्थापना का काम एक अत्यंत कठिन काम था, जो मध्यप्रदेश ने दिन-रात की मेहनत से कर दिखाया है.
बाघ प्रदेश बनने के कारण
मध्य प्रदेश के बाघ प्रदेश बनने के चार मुख्य पहलू है. इसमें पहला गांवों का वैज्ञानिक विस्थापन है. साल 2010 से 2022 तक टाइगर रिजर्व में बसे छोटे-छोटे 200 गांव को विस्थापित किया गया. सर्वाधिक 75 गांव सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से बाहर किए गए. दूसरा है ट्रांसलोकेशन, कान्हा के बारहसिंगा, बायसन और वाइल्ड बोर का ट्रांसलोकेशन कर दूसरे टाइगर रिजर्व में उन्हें बसाया गया. इससे बाघ के लिए भोजन आधार बढ़ा.
तीसरा है हैबिटेट विकास, जंगल के बीच में जो गांव और खेत खाली हुए वहां घास के मैदान और तालाब विकसित किए गए, जिससे शाकाहारी जानवरों की संख्या बढ़ी और बाघ के लिए आहार भी उपलब्ध हुआ. सुरक्षा व्यवस्था में अभूतपूर्व बदलाव हुआ. पन्ना टाइगर रिज़र्व में ड्रोन से सर्वेक्षण और निगरानी रखी गई. वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल कर अवैध शिकार को पूरी तरह से रोका गया. क्राइम इन्वेस्टीगेशन और पेट्रोलिंग में तकनीकी का इस्तेमाल बढ़ाया गया. इसका सबसे अच्छा उदाहरण पन्ना टाइगर रिजर्व है, जिसका अपना ड्रोन स्क्वाड है.
हर महीने इसके संचालन की मासिक कार्ययोजना तैयार की जाती है. इससे वन्य जीवों की लोकेशन खोजने, उनके बचाव करने, जंगल की आग का स्रोत पता लगाने और उसके प्रभाव की तत्काल जानकारी जुटाने, संभावित मानव और पशु संघर्ष के खतरे को टालने, वन्य जीव संरक्षण कानून का पालन करने में मदद मिल रही है. वन्यजीव सुरक्षा के कारण तेंदुओं की संख्या में भी मध्यप्रदेश देश में सबसे आगे है. देश में 12 हजार 852 तेंदुए हैं. अकेले मध्यप्रदेश में यह संख्या 4100 से ज्यादा है. देश में तेंदुओं की आबादी औसतन 60 % बढ़ी है, जबकि प्रदेश में यह 80 % है. देश में तेंदुओं की संख्या का 25 % अकेले मध्यप्रदेश में है.
ऐसे बना टाइगर स्टेट
बाघों की गणना हर 4 साल में एक बार होती है. वर्ष 2006 से बाघों की संख्या का आंकड़ा देखें तो वर्ष 2010 में बाघों की संख्या 257 तक हो गई थी. इसे बढ़ाने के लिए बाघों के उच्च स्तरीय संरक्षण और संवदेनशील प्रयासों की आवश्यकता थी. मध्यप्रदेश को बाघ प्रदेश बनाने की कड़ी मेहनत शुरु हुई.मानव और वन्यप्राणी संघर्ष के प्रभावी प्रबंधन के लिए 16 रीजनल रेस्क्यू स्क्वाड और हर जिले में जिला स्तरीय रेस्क्यू स्क्वाड बनाए गए.
राष्ट्रीय उद्यानों का बेहतर प्रबंधन
वर्ष 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग बाघ सम्मेलन में बाघ की आबादी वाले 13 देशों ने वादा किया था कि वर्ष 2022 तक वे बाघों की आबादी दोगुनी कर देंगे. इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मध्यप्रदेश में बाघों के प्रबंधन में निरंतरता एवं उत्तरोत्तर सुधार हुए. बाघों की संख्या में 33 % की वृद्धि चक्रों के बीच अब तक की सबसे अधिक दर्ज की गई है जो 2006 से 2010 के बीच 21 % और 2010 और 2014 के बीच 30 % थी.
बाघों की संख्या में वृद्धि, 2006 के बाद से बाघों की औसत वार्षिक वृद्धि दर के अनुरूप थी. मध्य प्रदेश में 526 बाघों की सबसे अधिक संख्या है. इसके बाद कर्नाटक में 524 बाघों की संख्या 442 बाघों के साथ उत्तराखंड तीसरे नंबर पर था. मध्यप्रदेश के लिए गर्व का विषय है कि वर्ष 2022 की समय-सीमा से काफी पहले यह उपलब्धि हासिल कर ली है.
सबसे नया टाइगर रिजर्व रानी दुर्गावती
21 जुलाई 2023 को प्रकृति संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय संघ ने बाघों का पुनर्मूल्यांकन किया और नए आंकड़े जारी किए थे. इनके मुताबिक पूरी दुनिया के जंगलों में 3726 से 5578 बाघ हैं. भारत में टाइगर्स की संख्या 3167 है, जिसमें से मध्यप्रदेश में 785 बाघ पाए जाते हैं. साल 2018 में बाघों की संख्या 526 थी, जिसमें अब 259 टाइगर बढ़ गए हैं. 1 अप्रैल 1973 को बाघ परियोजना शुरू की गई थी, यह दुनिया में अपनी तरह की सबसे बड़ी प्रजाति संरक्षण के लिए की जाने वाली पहल मानी जाती है.
बाघ परियोजना का मुख्य उद्देश्य बाघों को सुरक्षित आवास उपलब्ध कराना और उनके शिकार पर अंकुश लगाना था. बाघों के संरक्षण के लिए पूरे देश में बाघ अभयारण्य का एक नेटवर्क बनाया गया, जिसमें मध्य प्रदेश के कान्हा सहित देश के सात नेशनल पार्कों को शामिल किया गया. इसके बाद 1993 में बांधवगढ़, 1992 में पेंच, 1994 में पन्ना और 1999 में सतपुड़ा को टाइगर रिजर्व का दर्जा दिया गया. मध्यप्रदेश में 11 नेशनल पार्क, 7 टाइगर रिजर्व और 24 अभयारण्य हैं इसमें सबसे नया टाइगर रिजर्व “रानी दुर्गावती” जो वर्ष 2023 में घोषित किया गया है.
हमारे खास टाइगर्स ने बनाई पहचान
मध्यप्रदेश के बाघों की प्रसिद्धी दूर दूर तक रही है, इसमें सबसे खास रहा है कान्हा रिजर्व का मुन्ना, यह अपनी सुंदरता के साथ माथे पर बने बर्थ मार्क के कारण चर्चा में रहा है. मुन्ना के माथे पर प्राकृतिक रूप से कैट और पीएम लिखा हुआ था, जिसके चलते मुन्ना की दुनिया भर में अलग पहचान थी. वहीं पेंच टाइगर रिजर्व की बाघिन जिसे कॉलरवाली बाघिन के नाम से पहचान मिली थी, यह नाम रेडियो कॉलर लगाने के कारण दिया. इसे मौत के बाद सुपर मॉम नाम दिया गया था. इस बाघिन ने सबसे ज्यादा 29 बाघों को जन्म दिया जो कि अपने आप में रिकॉर्ड है.
इसी तरह से बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के बाघ चार्जर और बाघिन सीता पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहे. सीता अलग-अलग तरह के पोज देती तो चार्जर पयर्टकों की गाड़ियों को देखकर दहाड़ता और अपनी ओर आकर्षित करता. इसके अलावा बामेरा अपने अलग अंदाज, कद-काठी के लिए जाना जाता. पन्ना टाइगर रिजर्व की प्रसिद्ध बाघिन टी1 को सफल शिकारी होने के साथ नेशनल पार्क से रिजर्व में पुन: स्थापित होने वाली पहली बाघिन मानी जाती है. इस तरह से प्रदेश के बाघों ने विशेषताओं के चलते देशभर में अपनी पहचान स्थापित की है.
50 वर्ष पूरे होने पर जारी किया सिक्का
वर्ष 2023 में बाघ परियोजना ने सफल कार्यान्वयन के 50 वर्ष पूरे कर लिए हैं. यह परियोजना भारत के लुप्तप्राय जंगली बाघों को बहाली के मार्ग पर ले आई है. 9 अप्रैल 2023 को कर्नाटक के मैसूर में माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा एक स्मारक कार्यक्रम बाघ परियोजना के 50 वर्षों का स्मृति उत्सव का उद्घाटन किया. प्रधानमंत्री ने प्रकाशन – ‘बाघ संरक्षण के लिए अमृत काल की परिकल्पना’ बाघ अभयारण्यों के प्रबंधन प्रभावशीलता मूल्यांकन के 5वें चक्र की सारांश रिपोर्ट, अखिल भारतीय बाघ अनुमान (5वें चक्र) की सारांश रिपोर्ट और घोषित बाघ संख्या भी जारी किया था.
उन्होंने बाघ परियोजना के 50 वर्ष पूरे होने पर एक स्मारक सिक्का भी जारी किया था. इस प्रकार सरकार निरंतर ही बाघों के संरक्षण के लिए कार्य कर रही है. वर्ष 2022-23 के दौरान, पेंच टाइगर रिजर्व (मध्य प्रदेश) और पेंच टाइगर रिजर्व (महाराष्ट्र) को संयुक्त रूप से और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व (मध्य प्रदेश) को टीx2 पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, जो अंतरराष्ट्रीय संघ संगठन अर्थात् जीईएफ, यूएनडीपी, आईयूसीएन, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ और जीटीएफ द्वारा स्थापित किया गया है.
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हर साल 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय टाइगर डे मनाया जाता है, यह दिन खासतौर पर बाघों की लगातार कम होती आबादी पर नियंत्रण करने के लिए मनाया जाता है. भारत के लिए यह दिन और भी खास है, क्योंकि बाघ न सिर्फ भारत का राष्ट्रीय पशु है, बल्कि दुनिया के लगभग 70% से अधिक बाघ भारत में ही पाए जाते हैं. अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाने की शुरुआत साल 2010 में हुई थी. रूस के पीटर्सबर्ग में हुई इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस के दौरान यह फैसला लिया गया था. इस कॉन्फ्रेंस में 13 देशों ने हिस्सा लिया था.