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महाकुंभ 2025: तन पर भस्म-हाथों में अस्त्र… झूमते 8000 नागा साधु पहुंचे प्रयागराज, देखने के लिए उमड़ी भीड़

महाकुंभ का सबसे बड़ा जन आकर्षण अगर सनातन धर्म के 13 अखाड़े हैं, तो इन अखाड़ों का श्रृंगार हैं इनके नागा संन्यासी. सामान्य दिनों में इंसानी बस्तियों से दूर गुफाओं और कंदराओं में वास करने वाले इन नागा संन्यासियों की महाकुंभ में बाकायदा टाऊन शिप बन जाती है. जिसकी बुनियाद जूना अखाड़े की छावनी प्रवेश यात्रा में पड़ गई है. इस बार के महाकुंभ में करीब 40 करोड़ से ज्यादा भक्तों के आने का अनुमान लगाया जा रहा है.

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प्रयागराज में जनवरी 2025 में आयोजित होने जा रहे महाकुंभ में जन आस्था के सबसे बड़े आकर्षण 13 अखाड़ों का महाकुंभ नगर में प्रवेश का सिलसिला शुरू हो गया है. नागा संन्यासियों की सबसे अधिक संख्या वाले श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़े ने पूरी भव्यता और राजसी अंदाज के साथ महाकुंभ नगर में अपना नगर प्रवेश किया. जिसकी अगुवाई नागा संन्यासियों ने की है. तन में भस्म की भभूत और हाथों में अस्त्र लिए अपनी ही मस्ती में डूबे इन नागा संन्यासियों को न दुनिया की चमक धमक से लेना देना है और न धर्माचार्यों के वैभव की जिंदगी से कुछ लेना-देना है. अपनी ही धुन में डूबे इन नागा संन्यासियों के भी अपने कई वर्ग है.

नागाओं की भी हैं जातियां

बिना वस्त्रों के अपने ही धुन में रहने वाले नागा संन्यासियों की कई उप जातियां हैं. इसमें दिगंबर, श्रीदिगंबर, खूनी नागा, बर्फानी नागा, खिचड़िया नागा, और महिला नागा प्रमुख हैं. इसमें जो एक लंगोटी पहनता है, उसे दिगंबर कहते है जबकि और श्रीदिगंबर एक भी लंगोटी नहीं पहनता. सबसे खतरनाक होते हैं खूनी नागा, जो पूरी तरह जूना अखाड़ा की आर्मी ब्रिगेड है. ये सैनिक की तरह होते हैं और धर्म की रक्षा के लिए खून भी बहा सकते हैं.

8 हजार से अधिक साधु संत हुए शामिल

हरिद्वार में दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को बर्फानी नागा कहा जाता है. नासिक में दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को खिचड़िया नागा कहा जाता है. महिलाएं भी जब संन्यास में दीक्षा लेती हैं, तो उन्हें भी नागा बनाया जाता है. वे सभी वस्त्रधारी होती हैं. जूना अखाड़े की महिला साधुओं को ‘नागिन’ भी कहा जाता है. प्रयागराज में छावनी प्रवेश की इस यात्रा में आठ हजार से अधिक साधु संत समेत नागा साधु नगर ने प्रमुख मार्गों से होते हुए छावनी क्षेत्र पहुंचे.

 

250 किलो के भाले

इसमें एक हजार से अधिक नागा संन्यासी थे. अपने स्थानीय अखाड़ा कार्यालय मौज गिरी आश्रम से छावनी यात्रा शुरू होते ही ये नागा संन्यासी अपना युद्ध कौशल दिखाने लगे. किसी के हाथ में तकवती, किसी के हाथ त्रिशूल तो किसी के हाथ भाला था. हर नागा योद्धा का रूप बहुती ही निराला था. कोई घोड़े पर सवार दुंदुभी बजा रहा था, तो कोई अपनी अनसुलझी जटाओं को सुलझा रहा था. इन नागा संन्यासियों में भी सबसे शक्तिशाली नागा वो होते हैं, जो इस अखाड़े के पूजे जाने वाले दो भाला देवताओं को अपनी पीठ में रखकर चलते हैं. जिनका वजन करीब 250 किलो होता है. इन्हें अखाड़े में विशिष्ट सम्मान हासिल है.

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