उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ-2025 का आयोजन होने को है. देश ही नहीं दुनिया के कोने-कोने से सनातन की इस परंपरा में आस्था रखने वालों का त्रिवेणी के संगम पर खूबसूरत जमघट लगेगा. यह वह हुजूम है जो एक साथ एक ही समय में नदी की धारा में डुबकी लगाएंगे और हर डुबकी के साथ होने वाला हर-हर गंगे का उद्घोष एकता का संचार करेगा.
मां गंगा से पाप धुल देने की प्रार्थना
गंगाजल से भीगे शरीर ये साबित करेंगे कि शरीर के ऊपर से कपड़ों की ही तरह अन्य आडंबरों को भी हटा दिया जाए तो असल में हैं तो सभी एक ही. सब एक ही ढांचे में बने और सभी के भीतर बसने वाला प्राण एक ही है. फिर अचानक ही उन्हें ग्लानि होगी कि आज तक इस आवरण के फेर में पड़कर उन्होंने कितने पाप किए. अब जब अगली डुबकी लगेगी, तब इसका आशय होगा, पश्चाताप, बाहरी आवरण के मद में रहकर किए गए पापों का पश्चाताप. प्रार्थना होगी कि, हे मां गंगा… हमारे अपराध क्षमा करना.. हमारे पाप धुल देना.
महामुनि व्यास ने पुराणों में क्या लिखा है?
एक बड़ा ही रोचक और प्रसिद्ध श्लोक है, अष्टादश पुराणेषु, व्यासस्य वचनद्वयं, परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनम्. यानी कि 18 पुराणों के सार में महामुनि वेदव्यास एक ही तथ्य कहते हैं. किसी के साथ परोपकार करना पुण्य है और किसी को जरा सा भी कष्ट देना पाप है. धरती पर मानव जीवन की शुरुआत के साथ ही पाप और पुण्य दो सबसे बड़ी भावनाओं का भी जन्म हुआ. यह दोनों ही मनुष्य की छाया बनकर उसके साथ ही चलते रहे. जैसे ही किसी मनुष्य की जीवन यात्रा शुरू होती है, पाप और पुण्य की भी यात्रा प्रारंभ हो जाती है.
संसार की हर परंपरा में है पाप-पुण्य की अवधारणा
यह एक ऐसा तथ्य या ऐसी बात है कि संसार का कोई भी धर्म और पंथ इसे नकार नहीं सकता है. सिर्फ, सनातन परंपरा में ही नहीं, बल्कि दुनिया की हर संस्कृति जो जहां भी पनपी, वहां पाप और पुण्य साथ-साथ पनपे. ईसाई समाज में यही बात एडम और ईव के जरिए कही गई है, जो परमेश्वर के मना करने के बावजूद भी सेब खा लेते हैं. इस्लाम कहता है कि आदमी के दायें और बाएं कंधे पर एक-एक फरिश्ते बैठे होते हैं. दाएं कंधे पर बैठा फरिश्ता अच्छे काम लिख लेता है और बाएं कंधे पर बैठा फरिश्ता बुरे कामों को दर्ज कर लेता है.
कहीं पवित्र जल, कहीं आब-ए-जमजम और कहीं गंगा जल
पुण्य और पाप की मान्यता होने के साथ ही हर सेस्कृति में शुचिता (शुद्धि) की भी मान्यता रही है. कोशिश रही है कि संसार में पुण्य बढ़े और पाप अगर हैं तो उन्हें मिटाया या हटाया जा सके. यही अवधारणा हर संस्कृति में हमें जल की ओर ले जाती है. वह जल जो पवित्र कर देता है. जो पाप को मिटा देता है और जो फिर से एक पुण्य आत्मा बना देता है. ईसाई संस्कृति इसे holy water कहती है. इस्लाम में इसे आब-ए-जमजम कहा गया है और सनातन परंपरा इसे गंगा मैया कहती है. गंगा, जिसमें अशुद्ध को शुद्ध कर देने की ताकत है और पाप को मिटा देने की शक्ति है. शर्त ये है कि पवित्रता की चाहत रखने वाला कोई भी व्यक्ति यह संकल्प ले कि वह अब पाप नहीं करेगा. इस संकल्प के साथ उसके अब तक के पाप गंगा में बह जाएं.
सनातन ऐसा नहीं कहता है कि आप हर बार पाप करके गंगा में उसे धो लें. इसे तो और बड़े महापाप की संज्ञा दी गई है. जब तक आप पश्चाताप में न हों, गंगा भी किसी के पाप नहीं धो सकतीा है.
इसलिए करते हैं स्नान
ग्रहों और राशियों के विशेष योग में लगने वाला महाकुंभ पर्व इसी विश्वास को बल देता है कि गंगा माता हमारे सारे पाप धुल देती हैं. यह विश्वास भी उस पौराणिक कथा के कारण आता है जो कहती है कि गंगा में अमृत की बूंदे मिल गई. अमृत वह दैवीय तरल है जो अमर कर देता है. सिर्फ अमर ही नहीं, यह जन्म-मृत्यु का चक्र तोड़ देता है. थोड़ी मात्रा गंगा नदी में मिल जाने का प्रभाव यह है कि गंगा जल स्नान अमरता न भी दे तो कम से कम पापों को धो दे और मनुष्य नवजीवन का अनुभव कर सके.
व्यास मुनि ने पुराणों के आख्यान में बताया है महत्व
ऋषि वेद व्यास ने अलग-अलग पुराणों में गंगा स्नान के महत्व बताए हैं. भविष्य पुराण कहता है कि गंगा स्नान पापों को नष्ट कर देता है. ब्रह्म पुराण कहता है कि कुंभ जैसे विशेष पर्व और तिथियों में गंगा स्नान से अश्वमेध यज्ञ जैसा फल मिलता है क्योंकि आप अपने पापों की बलि दे रहे होते हैं. अग्नि पुराण कुंभ स्नान को गोदान जैसा पवित्र बताता है. स्कंद पुराण में कुंभ के दौरान स्नान को इच्छा पूर्ति और शुभ फल पाने का जरिया बताया गया है.
कूर्म पुराण कहता है कि कुंभ स्नान से पाप नष्ट होते हैं. इसके साथ ही यह पुराण यह भी कहता है कि सिर्फ पाप नष्ट करने के लिए कुंभ स्नान करना फलदायी नहीं होता है, बल्कि आप यह संकल्प भी लें कि अब कोई पाप नहीं करेंगे. इस तरह का प्रण लेने और संकल्प करने से वाकई पुराने पाप कटते हैं और पुण्यों में वृद्धि होती है.
स्कंद पुराण कहता है कि माघ मास में गंगा में स्नान करने वाले व्यक्ति के पितर युगों-युगों तक स्वर्ग में वास करते हैं.
माघे मासे गंगे स्नानं यः कुरुते नरः.
युगकोटिसहस्राणि तिष्ठंति पितृदेवताः..
वहीं, पद्म पुराण कहता है कि, जो धर्मात्मा प्रयाग, पुष्कर और कुरुक्षेत्र में स्नान करता है, वह परम धाम को प्राप्त करता है.
त्रिषु स्थलेषु यः स्नायात् प्रयागे च पुष्करे.
कुरुक्षेत्रे च धर्मात्मा स याति परमं पदम्..
गरुड़ पुराण में कहा गया है कि, हजारों अग्निष्टोम और सैकड़ों वाजपेय यज्ञ भी कुंभ स्नान के सोलहवें भाग के बराबर नहीं हैं.
अग्निष्टोमसहस्राणि वाजपेयशतानि च.
कुंभस्नानस्य कलां नार्हंते षोडशीमपि..
महाभारत (वनपर्व) में आया है कि यज्ञ तीनों लोकों को शुद्ध करता है, लेकिन तीर्थ में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, और व्यक्ति पूरी तरह शुद्ध हो जाता है.
त्रिपुरं दहते यज्ञः स्नानं तीर्थे तु दहते.
सर्वपापं च तीर्थे स्नात्वा सर्वं भवति शुद्धये..
ब्रह्मवैवर्त पुराण कहता है कि, माघ मास में प्रयाग में स्नान करने वाला व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है और उसके पितर भी प्रसन्न होते हैं.
प्रयागे माघमासे तु स्नात्वा पार्थिवमर्दनः.
सर्वपापैः प्रमुच्येत पितृभिः सह मोदते..
अग्नि पुराण में दर्ज है कि, कुंभ में स्नान करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है, और वह शुभ कर्मों की ओर अग्रसर होता है
कुंभे कुंभोद्भवः स्नात्वा प्रायच्छति हि मानवान्.
ततः परं न पापानि तिष्ठन्ति शुभकर्मणाम्..
श्रीमद्भागवत पुराण गंगा स्नान का महत्व बताते हुए कहा गया है कि, पवित्र समय में गंगा के तीर्थ पर स्नान करने वाला व्यक्ति पुण्य प्राप्त कर वैकुण्ठ धाम को जाता है.
तत्रापि यः स्नानकृत् पुण्यकाले
गंगा जलं तीर्थमथाधिवासम्.
पुण्यं लभेत् कृतकृत्यः स गत्वा
वैकुण्ठलोकं परमं समेति..
विष्णु पुराण में भी कहा गया है कि, कुंभ में स्नान अत्यंत पुण्यदायक है, जिससे व्यक्ति सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को प्राप्त करता है.
अयं कुंभः परं पुण्यं स्नानं येन कृतं शुभम्.
सर्वपापक्षयं याति गच्छते विष्णुसन्निधिम्..
स्मरण करने भर से पाप दूर करती हैं मां गंगा
गंगा नदी का वचन है कि स्नान के समय शुद्ध मन से, पाश्चाताप भरे हृदय से और अपने पापों को उत्तरदायी मानते हुए जो व्यक्ति किसी भी जलाशय या जलस्त्रोत के सामने मेरा स्मरण करेगा और स्नान करेगा वहां उस जल में मैं स्वयं आ जाऊंगी. इस संबंध में एक श्लोक है-
नन्दिनी नलिनी सीता मालती च महापगा.
विष्णुपादाब्जसम्भूता गंगा त्रिपथगामिनी..
भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी.
द्वादशैतानि नामानि यत्र यत्र जलाशय.
स्नानोद्यत: स्मरेन्नित्यं तत्र तत्र वसाम्यहम्..
महाकुंभ-2025 महज एक धार्मिक आयोजन नहीं है. यह लोकजीवन में रचे-बसे लोगों का एक समय पर, एक स्थान पर एकजुट होने की परंपरा का निर्वहन है. यह हमारी संस्कृति का हस्ताक्षर है, जो दान की परंपरा को सबसे ऊपर मानती है. जहां प्रणाम और आशीर्वाद एक साथ ही फलते-फूलते हैं. कुंभ हर आने वाली पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी से मिलने वाली विरासत है, जो वसुधैव कुटुंबकम् के मंत्र को चरितार्थ करके दिखाती है और अलग-अलग समुदायों, वर्गों में बंट रहे समाज को फिर से एक हो जाने के लिए प्रेरित करता है.