हनुमानगढ़ी के महंत प्रेमदास पहली बार पहुंचे रामलला के दर्शन को, भव्य शोभायात्रा ने रचा अयोध्या के धार्मिक इतिहास में स्वर्णिम अध्याय

अयोध्या: सदियों पुरानी परंपरा को पीछे छोड़ते हुए, अयोध्या के सिद्ध पीठ हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महंत प्रेमदास महाराज ने पहली बार श्रीरामलला के दर्शन के लिए भव्य शोभायात्रा के साथ प्रस्थान कर अयोध्या के धार्मिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया. यह अवसर केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक क्रांति और नई परंपरा की शुरुआत था, जिसकी गूंज रामनगरी की पावन गलियों से लेकर देशभर के श्रद्धालुओं के हृदय तक पहुंच रही है.

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शोभायात्रा की शुरुआत पावन सरयू तट से हुई, जहां महंत प्रेमदास जी ने विधिपूर्वक स्नान, आरती और याचमन कर श्रीरामलला के दर्शन की यात्रा प्रारंभ की. पूरे नगर में इस ऐतिहासिक क्षण को देखने और उसका साक्षी बनने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़े। शोभायात्रा में घोड़े, ऊंट, बग्घियाँ, ढोल-नगाड़े और भक्ति संगीत की गूंज ने माहौल को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया.

नगरवासियों ने शोभायात्रा का स्वागत पुष्पवर्षा और “जय श्रीराम” के जयघोष से किया. मार्ग में जगह-जगह श्रद्धालु महंत प्रेमदास जी के दर्शन हेतु खड़े दिखाई दिए. शोभायात्रा के दृश्य इतने मनोहारी थे कि मानो रामायण काल की झलक वर्तमान में उतर आई हो.

महंत प्रेमदास जी ने श्रीरामलला के दरबार में पहुँचकर 56 भोग अर्पित किए और भव्य आरती में भाग लिया. यह पहला अवसर था जब हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महंत ने 52 बीघे की सीमित परंपरागत परिधि से बाहर आकर श्रीरामलला के दर्शन किए. यह कदम न केवल परंपरा को नए संदर्भ में परिभाषित करता है, बल्कि यह सिद्ध करता है कि जब आंतरिक प्रेरणा और आस्था सच्ची हो, तो परंपराएं भी परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करती हैं.

ऐतिहासिक निर्णय की नींव एक गूढ़ आध्यात्मिक संकेत पर आधारित थी- डॉ. महेश दास 

महंत प्रेमदास जी के उत्तराधिकारी डॉ. महेश दास ने बताया कि इस ऐतिहासिक निर्णय की नींव एक गूढ़ आध्यात्मिक संकेत पर आधारित थी। महंत को लगातार स्वप्नों में भगवान हनुमान जी के दर्शन हो रहे थे, जो उन्हें रामलला के दर्शन के लिए प्रेरित कर रहे थे। चूंकि गद्दीनशीन महंत को स्वयं हनुमान जी का प्रतिरूप माना जाता है, ऐसे में यह प्रेरणा साधारण नहीं, बल्कि एक ईश्वरीय आदेश मानी गई. इस संकेत को मूर्त रूप देने के लिए हनुमानगढ़ी की गद्दी पंचायत की बैठक बुलाई गई, जिसमें चारों शाखाओं – सागरिया, उज्जैनिया, बसंतिया और हरिद्वारी के महंतों ने भाग लिया। सभी ने एकमत होकर इस निर्णय को मंजूरी दी और कहा कि जब प्रेरणा स्वयं हनुमान जी की हो, तो उसमें संशय की कोई गुंजाइश नहीं रहती.

यह शोभायात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं थी, बल्कि यह समस्त अयोध्या के लिए आस्था, परंपरा और आत्मिक बंधनों को नया आयाम देने वाली घटना बन गई। यह यात्रा आज उन लाखों भक्तों के लिए प्रेरणा बनेगी जो परंपराओं में जकड़े होकर अपनी आध्यात्मिक चेतना को सीमित मान बैठते हैं. धार्मिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना न केवल हनुमानगढ़ी के इतिहास में, बल्कि संपूर्ण रामभक्ति परंपरा में मील का पत्थर साबित होगी. यह निर्णय अयोध्या को एक नई आध्यात्मिक दिशा देने वाला है और यह दर्शाता है कि परंपरा और नवाचार एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक बन सकते हैं.

हनुमानगढ़ी और श्रीराम जन्मभूमि के बीच बना यह नया आध्यात्मिक सेतु अब आने वाले समय में और भी मजबूत होगा, जिससे अयोध्या की धार्मिक गरिमा को नई ऊंचाइयाँ मिलेंगी. शोभायात्रा की गूंज न केवल अयोध्या, बल्कि पूरे देश के श्रद्धालु समुदाय के लिए प्रेरणास्रोत बन चुकी है.

महंत प्रेमदास जी की यह ऐतिहासिक पहल आने वाली पीढ़ियों के लिए यह संदेश छोड़ती है कि जब आस्था सच्ची हो, तो परिवर्तन भी पुण्य बन जाता है.

 

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