महाराष्ट्र: भाषा विवाद को लेकर बैकफुट पर फडणवीस सरकार, हिंदी अनिवार्य करने का फैसला किया रद्द

महाराष्ट्र सरकार ने पहली कक्षा से हिंदी अनिवार्य करने का निर्णय रद्द कर दिया है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने रविवार को यह ऐलान किया है. पहली कक्षा से हिंदी अनिवार्य करने के खिलाफ शिव सेना (उद्धव ठाकरे) और राज ठाकरे की पार्टी मनसे ने पांच जुलाई को महामोर्चा निकालने का ऐलान किया था. उसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने यह फैसला रद्द करने का फैसला किया है.

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने यह भी घोषणा की है कि एक समिति बनाई गई है और इस समिति की रिपोर्ट आने के बाद अगला कदम तय किया जाएगा. उसके बाद त्रिभाषा फॉर्मूला लागू किया जाएगा.

हिंदी भाषा विषय को लागू करने के फैसले पर चर्चा के लिए रविवार को कैबिनेट की अहम बैठक हुई. इस बैठक में विस्तृत चर्चा के बाद सरकार ने त्रिभाषा फॉर्मूले के तहत हिंदी भाषा को शामिल करने संबंधी दोनों जीआर को रद्द कर दिया है. देवेंद्र फडणवीस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यह जानकारी दी.

नरेंद्र जाधव के नेतृत्व में बनेगी कमेटी

कैबिनेट की बैठक के बाद देवेंद्र फडणवीस ने बताया कि त्रिभाषा के सिद्धांतों के संबंध में तीसरी भाषा किस कक्षा से लागू की जाए? यह कैसे किया जाए? बच्चों को क्या विकल्प दिया जाए? इस पर निर्णय लेने के लिए राज्य सरकार डॉ नरेंद्र जाधव के नेतृत्व में एक समिति बनाएगी. नरेंद्र जाधव कुलपति थे, वे योजना आयोग के सदस्य थे. हम उन्हें एक शिक्षाविद् के रूप में जानते हैं. इसलिए उनके नेतृत्व में एक समिति बनाई जाएगी. इसमें कुछ और सदस्य होंगे. उनके नाम भी जल्द ही घोषित किए जाएंगे.

उन्होंने कहा किसाथ ही, इस समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही त्रिभाषा सूत्र को लागू किया जाएगा. इसलिए, हमने 16 अप्रैल 2025 और 17 जून 2025 के दोनों सरकारी फैसलों को रद्द करने का फैसला किया है. हम इन दोनों सरकारी फैसलों को रद्द कर रहे हैं.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति: सरकार ने जारी किया था निर्देश

16 अप्रैल 2025 और 17 जून 2025 को राज्य सरकार की ओर से सरकारी निर्देश जारी किए गये थे. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत राज्य सरकार ने हाल ही में निर्णय लिया था कि पहली कक्षा से ही छात्रों को त्रिभाषा फॉर्मूले के तहत हिंदी पढ़ाई जाएगी. इस फॉर्मूले के तहत छात्रों को तीन भाषाएं पढ़ाई जाती हैं— एक मातृभाषा, एक हिंदी और एक अंग्रेजी.

लेकिन सरकार के इस फैसले का महाराष्ट्र के कई हिस्सों, खासकर मराठी भाषी संगठनों, राजनीतिक दलों और समाजसेवियों ने कड़ा विरोध किया था. इन संगठनों का तर्क था कि हिंदी को स्कूलों में अनिवार्य रूप से पढ़ाना ‘भाषायी आक्रमण’ है और इससे मराठी भाषा व संस्कृति पर संकट आ सकता है. विपक्षी दलों ने भी सरकार पर आरोप लगाया कि वह केंद्र की भाषा नीति को राज्य पर थोप रही है. परिणामस्वरूप राज्यभर में प्रदर्शन हुए और शिक्षाविदों ने भी इस नीति की समीक्षा की मांग की थी.

विपक्षी दलों के विरोध से बैकफुट पर सरकार

महाराष्ट्र सरकार के फैसले के खिलाफ शिवसेना (ठाकरे गुट) और राज ठाकरे की मनसे पार्टी एकजुट हो गए थे और पांच जुलाई को मार्च निकालने का ऐलान किया था. खासकर शिवसेना (ठाकरे गुट), एनसीपी और कांग्रेस ने सरकार पर भाषा थोपने का आरोप लगाते हुए विरोध प्रदर्शन किए थे. शिवसेना (यूबीटी) ने रविवार को हिंदी ग्रंथ की होलिका जलाकर विरोध किया था.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले स्थानीय निकाय और विधानसभा चुनावों को देखते हुए सरकार ने मराठी अस्मिता से जुड़े इस संवेदनशील मुद्दे पर कदम पीछे खींचे हैं, ताकि जनविरोध को शांत किया जा सके.

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