केंद्र सरकार UCC लागू करने को लेकर कई बार अपनी प्रतिबद्धता दिखा चुकी है. बताया जा रहा है कि अगले साल सकार यूसीसी पर विचार कर सकती है. इसी बीच मुंबई में स्थित मुस्लिम महिला संगठन ने यूसीसी के समर्थन का ऐलान किया है, लेकिन उन्होंने सरकार के सामने अपनी 25 शर्तें भी रखी हैं. संगठन का कहना है कि केंद्र सरकार यूसीसी में उनकी इन शर्तों को शामिल करता है तो वह यूसीसी का पूरा समर्थन करेंगी.
उन्होंने मुंबई में सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि आज के माहौल में जो सबसे जरूरी बातें हैं, वो शामिल होनी चाहिए. यूसीसी पर समान अवसर, समानता पर ही बात की जाए. न की राजनीतिक मुद्दे के तौर पर यूसीसी पर बात की जाए. और मुस्लिम महिलाएं की मांग है, उन्हें सरकार बिल में कैसे शामिल करेगी. जिससे पॉलीगामी, हलाला, महिलाओं का प्रॉपर्टी में शेयर जैसे मामलों में मुस्लिम महिलाओं को मदद मिलेगी.
उन्होंने कहा कि मुस्लिम महिला संगठन ने अपनी इन मांगों के संबंधित विभागों को भी भेजा है. संगठन ने शादी, हलाला, तलाक, अडॉप्शन, कस्टडी, जेंडरशिप और प्रॉपर्टी में हिस्से की भी अलग-अलग मांग की है.
क्या हैं संगठन की मांगें
- शादी को लेकर संगठन की मांग
- दुल्हन की स्पष्ट मर्जी और हामी के बिना, निकाह को पूरा नहीं माना जा सकता है.
- निकाह को दो adults के बीच एक करार माना जाना चाहिए न कि एक संस्कार है.
- सभी मुस्लिम निकाह पंजीकृत होने चाहिए.
- निकाहनामा/इकरारनामा एक लाज़मी दस्तावेज होना चाहिए इकरारनामा देखें.
- निकाह के समय दूल्हे की सालाना आमदनी उसे मेहर के रूप में दी जानी चाहिए, ये राशि निकाह के वक्त मिलना चाहिए. आगे किसी हादसे के वक्त नहीं.
- काजी का पंजीकरण लाजमी होना चाहिए. केवल पंजीकृत काजी ही विवाह संपन्न करा सकता है.
- महिला काजियों को पंजीकृत करने में प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
- काजी की जिम्मेदारियां स्पष्ट रूप से तय की जानी चाहिए.
- निकाह के तरीके को स्पष्ट रूप से तय किया जाना चाहिए.
- निकाह के गवाहों को उम्र और रिहाईश के दस्तावेज बताना जरूरी है.
- अनियमित विवाहों के नियमन के लिए प्रावधान होना चाहिए, ऐसा विवाह जो बिना गवाहों के बिना काजी के या मेहर का भुगतान नहीं किया गया हो.
- 494 IPC के तहत मुस्लिम समाज में बहुविवाह को अवैध बना देना चाहिए.
- PCMA, 2006 के प्रावधान के लागू होने से मुस्लिम समाज में बाल विवाह को अवैध बना देना चाहिए.
- हलाला, मिस्यार और मुता विवाहों को अवैध घोषित किया जाना चाहिए.
तलाक को लेकर संगठन की मांग
- महिलाओं के पक्ष में तलाक के तरीकों में फस्ख/खुला/मुबारा को शामिल किया जाना चाहिए.
- तलाक-ए-अहसन महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए तलाक का का तरीका होना चाहिए.
- अदालत में और अदालत के बाहर तलाक को नियमित किया जाना चाहिए.
- किसी विवाहित मुस्लिम महिला या पुरुष द्वारा इस्लाम का त्याग या उनका अन्य धर्म में परिवर्तन अपने आप में निकाह को समाप्त नहीं कर सकता है.
- इद्दत के दौरान महिला पर शादी के अलावा कोई और रोकटोक लागू नहीं किया जाना चाहिए. वह परिवार के अंदर और सार्वजनिक स्थान पर अपनी सभी कामकाज पूरी आजादी से कर सकती है.
अडॉप्शन और कस्टडी को लेकर संगठन की मांग
- मुस्लिम महिला अपने बच्चों की स्वाभाविक संरक्षक है. चाहे वो तलाकशुदा या विधवा हो और custody से जुड़े सभी मुद्दों पर बच्चे का फायदा/हित और बच्चे की मर्जी, इस मूल्य पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए.
- माता-पिता के धर्म परिवर्तन या पुनर्विवाह पर बच्चे की कस्टडी पर कोई असर नहीं होना चाहिए.
- जेजे कानून के तहत गोद लेने की अनुमति दी जानी चाहिए.
रखरखाव और विरासत को लेकर संगठन की मांग
- विवाह के अंदर भरण-पोषण CrPC 125/126 द्वारा होना चाहिए.
- वैवाहिक संपत्ति में हिस्सेदारी के साथ विरासत के हकों में भी बराबरी होनी चाहिए.
- पारिवारिक कानून के अंतर्गत आने वाले सभी मामलों की कार्यवाही को पूरा करने के लिए काजी/मध्यस्थ को सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त होना चाहिए.
साथ ही उन्होंने मुस्लिम पारिवारिक कानून का पूर्ण विधि करण बनाने की मांग की है. उन्होंने कहा कि BMMA के कानून के मसौदे के आधार पर पूर्ण विधि बद्ध मुस्लिम पारिवारिक कानून बनना चाहिए. BMMA ने पिछले दशक में इस मसौदे को बार-बार केंद्रीय सरकार को भेजा है, लेकिन एक पूर्ण विधि बद्ध कानून के बदले सिर्फ तीन तलाक का कानून मिला. हम मांग करते है की जल्द से जल्द मुस्लिम समाज को एक पूर्ण विधि बद्ध कानून मिले BMMA के मसौदे के आधार पर.
संगठन ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट से ये मांग करते है कि वह जल्द से जल्द बहु-पत्नी प्रथा और हलाला के विरोध में फैसला सुनाए. ताकि ये प्रथाएं खत्म हो सके. हमने इसको लेकर साल 2016 में याचिका दायर की है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को लेकर ही फैसला सुनाया था. हमने इस मामले को लेकर साल 2019 में दूसरी याचिका दायर की थी और अदालत से मुस्लिमों के हक में फैसला सुनाने की मांग की थी.