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ड्रग तस्करी के 35 साल पुराने मामले में फैसला, कोर्ट ने 65 साल के शख्स को सुनाई 20 साल की सजा

मुंबई की एक विशेष अदालत ने सोमवार को 1989 के प्रतिबंधित पदार्थ जब्ती मामले में एक 65 साल  के व्यक्ति को दोषी ठहराया और 20 साल की कैद की सजा सुनाई. कोर्ट ने कहा कि  ‘ड्रग्स की लत का खतरा समाज में व्यापक रूप से फैल रहा है और आरोपी सजा में किसी नरमी का हकदार नहीं है. अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी ने ड्रग्स की तस्करी के अपने काम  के लिए पश्चाताप या पछतावे का कोई संकेत नहीं दिखाया है.’

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राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने आम की चटनी के नीचे छुपाए गए 194 ड्रमों से 4,365 किलोग्राम प्रतिबंधित ड्रग्स (हशीश) की बरामदगी के बाद दोषी नितिन भानुशाली और 10 अन्य के खिलाफ नशीले पदार्थों की तस्करी से संबंधित मामला दर्ज किया था. खेप की कीमत 2.62 करोड़ रुपये आंकी गई थी. मामला मूल रूप से एक मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष दायर किया गया था, लेकिन 1989 में इसे नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस अधिनियम) के तहत गठित एक विशेष अदालत में सौंप दिया गया.

हालांकि, विशेष अदालत ने अक्टूबर 2010 में तीन आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया था. एक आरोपी को मुकदमे का सामना करने के लिए मानसिक रूप से अस्थिर घोषित कर दिया गया था, जबकि एक अन्य आरोपी के खिलाफ मामला समाप्त कर दिया गया था क्योंकि अदालत की कार्यवाही के दौरान उसकी मृत्यु हो गई थी. पांच अन्य आरोपी अभी भी फरार हैं. भानुशाली के खिलाफ मुकदमा अलग कर दिया गया क्योंकि वह शुरू में फरार था.

एनडीपीएस अधिनियम के तहत मामलों के विशेष न्यायाधीश, एस ई बांगर ने भानुशाली (65) को दोषी ठहराया और सजा सुनाई. उन्होंने कहा कि पहले फैसला सुनाए जाने के बाद कुछ गवाहों से पूछताछ की गई थी.अदालत ने कहा कि आरोपी व्यक्तियों के पास भारी मात्रा में प्रतिबंधित पदार्थ पाए गए जिन्हें बेचा जाना था और वह अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारी मूल्य के थे. इसमें पाया गया कि प्रतिबंधित पदार्थ को सीमा शुल्क से बचकर और कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करके एक्सपोर्ट करने की कोशिश की गई थी.

स्पेशल जज ने फैसला सुनाया कि यह ऑन रिकॉर्ड है कि भानुशाली ने खाद्य पदार्थों के एक्सपोर्ट की आड़ में प्रतिबंधित पदार्थ की अवैध तस्करी के लिए एक सिंडिकेट में सह-अभियुक्तों के साथ काम किया था. अदालत ने जोर देकर कहा कि ऐसे पदार्थों के कब्जे, निर्माण, भंडारण, परिवहन, वितरण, बिक्री में लिप्त होने पर कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है ताकि ऐसे अवैध तस्करी में शामिल अपराधियों को रोका जा सके.

इसमें कहा गया है कि आरोपी किसी अन्य मामले में इसी तरह के अपराध के लिए सजा काट चुका है या इस मामले के लंबे समय तक लंबित रहने या अपने स्वास्थ्य की स्थिति के आधार पर लाभ नहीं मांग सकता है. अदालत ने कहा कि ‘आरोपी के मन में न तो कोई पछतावा है और न पश्चाताप की इच्छा और वह अभी भी खुद को निर्दोष बता रहा है, जो रिकॉर्ड पर मौजूद सच से उलट है.

अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि 1986 और 1987 के बीच, आरोपियों ने लगभग 4,365 किलोग्राम हशीश की खरीद, भंडारण और निर्यात की साजिश रची थी, जिसकी अनुमानित कीमत रु 2.6 करोड़ और विदेश में लगभग 40 करोड़ रुपये थी.

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