ममता कैबिनेट ने 76 नई जातियों को ओबीसी में शामिल करने का लिया फैसला, इस दांव के पीछे रणनीति क्या?

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2026 में होने हैं. चुनाव में अभी एक साल का समय बचा है, लेकिन सियासी बिसात अभी से ही बिछने लगी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में उत्तर बंगाल के अलीपुरद्वार में जनसभा को संबोधित किया था. पश्चिम बंगाल में विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने गृह मंत्री अमित शाह और अन्य वरिष्ठ नेताओं के हर महीने दौरे का कार्यक्रम तैयार किया है. वहीं, सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) भी अब चुनावी मोड में आती नजर आ रही है. टीएमसी अपने समीकरण सेट करने में जुट गई है.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अगुवाई वाली सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा दांव चलते हुए 76 नई जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग की स्टेट लिस्ट में शामिल करने का ऐलान किया है. सीएम ममता की अगुवाई में सोमवार को हुई कैबिनेट की मीटिंग में 76 नई जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग की स्टेट लिस्ट में शामिल करने के पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी गई. पश्चिम बंगाल में ओबीसी वर्ग के तहत पहले से ही 64 जातियां आती हैं. इन 76 नई जातियों को शामिल किए जाने के बाद अब ओबीसी कैटेगरी में शामिल जातियों की संख्या 140 पहुंच गई है.

ममता सरकार के दांव के पीछे क्या?

ममता बनर्जी की अगुवाई वाली सरकार के 76 नई जातियों को ओबीसी वर्ग में शामिल करने के फैसले को विधानसभा चुनाव से पहले अपने सामाजिक समीकरण सेट करने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है. यह नई जातियां कौन सी हैं, इसे लेकर अभी जानकारी सामने नहीं आई है. हालांकि, अटकलें हैं कि 76 जातियों की इस नई लिस्ट में उन 77 में से भी कई जातियां शामिल हो सकती हैं, जिन्हें जारी किए गए जाति प्रमाण पत्र कलकत्ता हाईकोर्ट ने पिछले ही साल रद्द करने के आदेश दिए थे.

पश्चिम बंगाल सरकार ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट में भी अपील दायर की थी. सर्वोच्च न्यायालय ने भी हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा था. इन 77 जातियों में से 75 मुस्लिम जातियां थीं, जिनका ओबीसी दर्जा कोर्ट के आदेश से समाप्त हो गया था. इन जातियों के लोग ममता सरकार से कोई रास्ता निकालने की मांग करते आ रहे थे. चुनावी साल की शुरुआत से पहले ओबीसी वर्ग में शामिल की गई 76 नई जातियों की लिस्ट में कोर्ट के आदेश पर यह दर्जा गंवाने वाली कई जातियों के नाम भी शामिल हो सकते हैं.

ममता सरकार का यह दांव मुर्शिदाबाद हिंसा के बाद कुछ प्रभावशाली हिंदू जातियों को अपने पाले में लाने के साथ ही मुस्लिम वर्ग के बीच भी सियासी जमीन मजबूत करने की हो सकती है. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल सरकार ने कहा था कि सूबे में 39 फीसदी ओबीसी आबादी है, जिसके लिए आरक्षण की सुविधा होनी चाहिए. जाहिर है, इसमें बड़ा हिस्सा इन 77 जातियों का रहा होगा. यह मान लें कि कुल ओबीसी आबादी में करीब आधा 19 फीसदी हिस्सा 77 जातियों का होगा, तब भी चुनाव के लिहाज से यह एक बड़ा चंक है जो नतीजे प्रभावित कर सकता है.

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