मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में करीब 6 घंटे तक डिजिटल अरेस्ट रहने के बाद एक शख्स को राज्य साइबर पुलिस ने रेस्क्यू किया और करोड़ों की ठगी से बचा लिया. स्टेट साइबर सेल का कहना है कि संभवतः देश में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी व्यक्ति को लाइव 6 घंटे तक डिजिटल अरेस्ट रहने के बाद बंद कमरे को खुलवाकर पीड़ित को बाहर निकाला गया हो.
स्टेट साइबर सेल के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक योगेश देशमुख ने बताया कि उन्हें अरेरा कॉलोनी निवासी एक व्यक्ति के डिजिटल अरेस्ट होने की सूचना मिली. इस पर उन्होंने उप पुलिस महानिरीक्षक मो. यूसुफ कुरैशी को पुलिस टीम भेजकर पीड़ित को डिजिटल अरेस्ट से बचाने का निर्देश दिया. पुलिस अरेरा कॉलोनी स्थित पीड़ित विवेक ओबेरॉय के घर पहुंची. विवेक दुबई में कॉर्पोरेट सेक्टर के उद्यमी हैं.
फर्जी अधिकारी बनकर किया कॉल
टीम ने पाया कि पीड़ित को अज्ञात सायबर जालसाजों द्वारा फर्जी TRAI लीगल सेल ऑफिसर, मुंबई साइबर क्राइम सेल ऑफिसर एसआई विक्रम सिंह और सीबीआई ऑफिसर आईपीएस डीसीपी महेश कलवानिया नाम से फर्जी पुलिस अधिकारी बनकर बात की जा रही थी. साथ ही पीड़ित के आधार कार्ड पर इश्यू अलग-अलग मोबाइल सिम Unsolicited Marketing से जुड़ी होने और आधार कार्ड से कई राज्यों में फर्जी बैंक खाते खुले होने के नाम पर डराया गया. इसके बाद SKYPE एप डाउनलोड करवाया और दोपहर लगभग 1 बजे से उनके ही घर के एक कमरे में डिजिटल अरेस्ट करके रखा.
पीड़ित की पर्सनल औऱ बैंकिंग डिटेल्स पूछी
इस दौरान फर्जी डिजिटल पूछताछ/सर्विलांस के दौरान उनके परिवार की निजी जानकरियां, बैंकिंग डिटेल्स पूछी गईं. डिटेल्स ना बताने पर उन्हें धमकाया कि आपको गिरफ्तार किया जाएगा और परिवार के सदस्यों को नुकसान पहुंचाया जाएगा.
साइबर पुलिस ने किया लाइव रेस्क्यू
योगेश देशमुख के मुताबिक फ़र्ज़ी अधिकारी बनकर वीडियो कॉल करने वालों ने विवेक से परिवार के किसी भी सदस्य से इस डिजिटल अरेस्ट के संबंध में न बताने को कहा. इस दौरान मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने वीडियो कॉल में दिख रहे फर्जी TRAI, सीबीआई और मुंबई क्राइम ब्रांच पुलिस अधिकारी को अपना पुलिस का परिचय दिया और उनसे उनकी आईडी मांगी, तो जालसाजों द्वारा तत्काल फोन काट दिया गया और सारे SKYPE वीडियो कॉल डिसकनेक्ट कर दिए. इसके बाद पीड़ित को टीम ने समझाया और डिजिटल अरेस्ट से बाहर निकाला गया. उन्हें बताया गया कि डिजिटल अरेस्ट जैसा देश में कोई प्रावधान नहीं है. उन्हें जालसाजों ने जो भी नोटिस भेजे हैं, वे पूरी तरह से फर्जी हैं. पीड़ित ने बताया कि उन्हें ज़रूरी काम से मध्य प्रदेश के बाहर जाना था और डिजिटल अरेस्ट के कारण वो अपनी फ्लाइट कैंसिल करवाने वाले थे.