अबूझमाड़ से निकलकर मुख्यधारा में लौटे 17 माओवादी, स्लीपर सेल की भूमिका निभा रहे थे

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ इलाके से माओवादी गतिविधियों में शामिल 17 लोगों ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। इनमें जनताना सरकार सदस्य, पंचायत मिलिशिया डिप्टी कमांडर, पंचायत सरकार सदस्य और न्याय शाखा अध्यक्ष जैसे पदों पर कार्यरत लोग भी शामिल हैं। सरेंडर करने वालों को शासन की आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति के तहत 50-50 हजार रुपये की सहायता राशि दी गई है।

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इन सभी ने आत्मसमर्पण के बाद खुलासा किया कि माओवादी संगठन झूठे सपने दिखाकर आदिवासियों को गुमराह करता है और उन्हें मजदूर से भी बदतर स्थिति में रखता है। महिला साथियों का शोषण आम बात है, जिससे उनका जीवन नरक बन चुका है। आत्मसमर्पण करने वाले माओवादी सीधे लड़ाई में शामिल नहीं थे, लेकिन लड़ाकू दस्तों के लिए राशन, दवाइयां और हथियार पहुंचाते थे। कई बार इन्हें आईईडी लगाने और पुलिस की रेकी करने की जिम्मेदारी भी सौंपी जाती थी। पुलिस ने इन्हें माओवादी संगठन का “स्लीपर सेल” बताया है।

पुलिस के मुताबिक, 2025 में अब तक 164 छोटे-बड़े कैडर के नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं। इसमें पंचायत मिलिशिया और जनताना सरकार के कई सदस्य भी शामिल हैं। लगातार सुरक्षा बलों की बढ़ती दबाव और पुलिस कैंप स्थापित होने के कारण माओवादियों का मनोबल टूटता जा रहा है।

आत्मसमर्पण करने वालों में लच्छूपोड़ियाम, केसा कुंजाम, मुन्ना हेमला, वंजा मोहंदा, जुरू पल्लो, मासू मोहंदा, लालू पोयाम, रैनू मोहंदा, जुरूराम मोहंदा, बुधराम मोहंदा, चिन्ना मंजी, कुम्मा मंजी, बोदी मोहंदा, बिरजू मोहंदा, बुधु मज्जी और कोसा मोहंदा शामिल हैं। ये सभी लंबे समय से लंका और डूंगा क्षेत्र में माओवादी गतिविधियों में सक्रिय थे।

स्थानीय लोगों का कहना है कि अबूझमाड़ में हालात तेजी से बदल रहे हैं। पहले जहां लोग माओवादियों के डर से खुलकर बात नहीं करते थे, अब पुलिस कैंप और सुरक्षा बलों की मौजूदगी से माहौल सुरक्षित हो रहा है। आत्मसमर्पण की यह ताजा घटना सरकार की पुनर्वास नीति और सुरक्षा बलों के दबाव का असर मानी जा रही है।

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