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मरकाचुआ: आजादी के 70 साल बाद भी पानी के लिए तरस रहे हैं लोग!

कांकेर : कांकेर जिले के पखांजूर क्षेत्र में आज ऐसे भी गांव है जहां के ग्रामीणों को झरिया के पानी से अपनी प्यास बुझानी पड़ रही है. हैंडपम्प तो है लेकिन वर्षो से हैंडपंप खराब है. ग्रामीणों को स्वच्छ पेयजल नसीब नही हो पा रहा है. मजबूरन ग्रामीणों को झरिया का पानी पीना पड़ रहा है.

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जल ही जीवन है, जैसे कई नारे तो जगह जगह पढ़ने और सुनने को मिल जाते है.और शहर व कस्बे क्षेत्र में बिस्लेरी.अक्वाफिना.किनले जैसे महंगे पानी की होड़ लगी हुई है.परंतु ग्राम पंचायत मंडागाँव का आश्रित गांव मरकाचुआ के ग्रामीण स्वच्छ जल पीने के लिए तरस रहे है.मरकाचुआ में दो सौ लोग और गांव के बीजापारा में लगभग 23 लोग रहते है.

इस गांव के ग्रामीणों का जीवन यापन आजादी के सात दसक बाद भी क्षेत्र में बहने वाले कोटरी नदी का दूषित पानी को पी कर गुजर रहा है. यह नदी इन गांव के ग्रामीणों के लिए जीवनदायनी सिद्ध हो रही है.

नदी का पानी पिने से ग्रामीणों को कई प्रकार की घातक बीमारियों से ग्रसित हो रहे है.पर जीवन के लिए इस मज़बूरी को रोजमर्रा की दिनचर्या बनाने के आलावा ग्रामीणो के पास कोई दुसरा विकल्प भी नही है.गाँव की महिलाएं एक साथ लगभग दर्जनों की संख्या में नदी तक जा कर पानी निकालती है.. और तेज धुप में तपते रेत के ऊपर से पानी ला कर उपयोग करती है.

पूरा इलाका जंगलो और पहाड़ो से घिरा है ऐसे मे भालू, शियार समेत अन्य जंगली जानवर हमला न कर दें इसलिए पानी लेने गए महिलाओ के साथ में किसी प्रकार की कोई अनहोनी न हो जाये..इसलिए पुरुष भी लाठी लिए सुरक्षा के लिए उनके साथ जाते है.

पानी की समस्या होने के कारण मरकाचुआ के ग्रामीण जंगलो में लगे पौधो के पत्ते को तोड़ पत्तल बना कर उसी में भोजन करने को मजबूर होते है. ताकि बर्तन साफ़ करना न पड़े.ग्रामीणों कई बार इसकी शिकायत की परन्तु ग्रामीणों की इस समस्या के प्रति कोई गंभीर नहीं है. यही कारण है की ग्रामीणों को प्यास बुझाने के लिए दूषित पानी पीना पड़ रहा है.

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