अमेरिका के इंडियाना में Purdue University है. साल 1931 में यहां पर एक दराज (Drawer) में एक काले रंग का पत्थर मिला. वहां मौजूद किसी भी व्यक्ति को ये नहीं पता कि ये पत्थर उस दराज में कैसे आया. लेकिन दराज से निकले पत्थर का रंग-रूप, आकार, उसका ढांचा कुछ अलग था. इसलिए जांच शुरू की गई.
92 सालों तक सिर्फ यह पता चल पाया कि यह दूसरे ग्रह से आया हुआ पत्थर है. लेकिन हाल ही में हुई एक नई स्टडी में खुलासा हुआ है कि लफायते उल्कापिंड के नाम से मशहूर यह पत्थर मंगल ग्रह से आया है. लाल रंग के मंगल ग्रह से काले रंग का पत्थर कैसे आया. 2 इंच बड़े इस पत्थर के अंदर मौजूद गैसों से पता चला कि ये मंगल ग्रह का पत्थर है.
इसका प्रमाण नासा के वाइकिंग लैंडर से भी मिला. जिसने मंगल ग्रह पर ऐसे ही पत्थरों की जांच की थी. इस पत्थर की भी जांच की गई. उसके अंदर मौजूद गैसों की स्टडी की गई. पता चला कि यह प्राचीन खनिज और तरल पानी के मिलने से बने थे. यह स्टडी हाल ही में जियोकेमिकल पर्स्पेक्टिव लेटर्स नाम के जर्नल में प्रकाशित हुई है.
बर्फ का समंदर और गर्म लावे की नदियां
पर्ड्यू यूनिवर्सिटी के अर्थ, एटमॉस्फियरिक और प्लैनेटरी साइंस के डिपार्टमेंट की असिस्टेंट प्रोफेसर मरीसा ट्रेम्बले ने कहा कि इस समय मंगल ग्रह की सतह पर पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं है. लेकिन इस पत्थर ने हमें बताया कि हम 74.2 करोड़ साल पहले मंगल ग्रह पर पानी मौजूद था. असल में वहां पर लाखों साल पहले भी पर्माफ्रॉस्ट में पानी था. लेकिन मैग्मेटिक एक्टीविटी यानी लावा बहने की वजह से ये पिघल गए. भाप बनकर उड़ गए.
मछली पकड़ रहे बच्चे के करीब गिरा था पत्थर
यह पत्थर धरती पर कब आया इसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है. लेकिन इंडियाना के आसपास के लोगों के कहना है कि 1919 में कुछ बच्चे फिशिंग ट्रिप पर बाहर निकले थे. तभी एक मछली पकड़ रहे बच्चे के पास यह उल्कापिंड आकर गिरा. बच्चे ने उसे ठंडा होने के बाद उठा लिया. पत्थर की जांच करने पर पता चला कि यह पत्थर मंगल ग्रह से 1.10 करोड़ साल पहले किसी पत्थर के टकराने से अलग हुआ. जो अंतरिक्ष में चक्कर लगाते-लगाते धरती पर गिरा.