मऊगंज: जिले के नईगढ़ी कस्बा क्षेत्र के देवीपुर गांव स्थित अष्टभुजा माता धाम स्थानीय आस्था और श्रद्धा का प्रमुख केंद्र माना जाता है. इतिहासकारों और बुजुर्गों के अनुसार, इस धाम की उत्पत्ति लगभग 500 वर्ष पूर्व हुई थी.
इतिहास और स्थापना
मंदिर के पुजारी पंडित जयप्रकाश तिवारी बताते हैं कि जहां आज मंदिर खड़ा है, वह स्थान कभी घना जंगल हुआ करता था. मान्यताओं के मुताबिक, माता का प्राकट्य यहां तेज अग्निज्वाला के रूप में हुआ. लालगंज गांव का एक ग्वाला अज्ञानवश उस अग्नि पर पानी डाल बैठा, जिससे ज्वाला शांत हो गई. बाद में सेंगर वंश के राजा प्रताप सिंह को माता ने स्वप्न में दर्शन देकर यहां धाम स्थापित करने का आदेश दिया. राजा के निर्देशानुसार पास ही नईगढ़ी का निर्माण कराया गया. करीब 135 वर्ष पूर्व दुवगवां गांव के साधु राम कोंड़रिया ने मंदिर का निर्माण कराया. इसके बाद मोतीलाल पांडेय, राजेंद्र द्विवेदी और भूधर पांडेय जैसे श्रद्धालुओं ने इसका जीर्णोद्धार किया.
आस्था और श्रद्धालु
अष्टभुजा माता धाम में वर्षभर श्रद्धालुओं की भीड़ बनी रहती है. खासतौर पर सोमवार, गुरुवार, नवरात्रि, दशहरा और रामनवमी पर यहां भक्तों का तांता लगता है. आषाढ़-श्रावण मास की हरियाली पूजाई पर दूर-दराज से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं. यहां मनौती पूरी होने पर विशेष परंपराओं के तहत भक्त जिंदा बकरा या जीभ तक चढ़ाते हैं.
धार्मिक और सामाजिक गतिविधियां
यह धाम केवल पूजा-अर्चना तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां भजन-कीर्तन, यज्ञ-भंडारा, सत्यनारायण कथा जैसे धार्मिक कार्यक्रमों के साथ बच्चों के कर्णछेदन और मुंडन संस्कार भी होते हैं. भक्तों का विश्वास है कि माता की कृपा से कोई खाली हाथ नहीं लौटता.
विकास और प्रशासनिक पहल
श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए प्रशासन लगातार सुविधाओं का विस्तार कर रहा है. मंदिर परिसर में सैकड़ों दुकानें संचालित होती हैं, जो हजारों परिवारों का सहारा बनी हुई हैं. राज्य शासन की स्वीकृत राशि से धर्मशाला और सामुदायिक भवन का निर्माण कराया गया है. वहीं पेयजल और ठहरने की व्यवस्था भी सुनिश्चित की गई है. जिला प्रशासन का कहना है कि आने वाले समय में यहां और भी विकास कार्य किए जाएंगे, ताकि भक्तों को बेहतर सुविधाएं मिल सकें.