मऊगंज: जिले में यूरिया खाद की भारी किल्लत अब किसानों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन गई है. मंगलवार को हनुमना वेयरहाउस पर खाद लेने पहुंचे सैकड़ों किसान सुबह से लाइन में खड़े रहे, लेकिन दोपहर तक खाली हाथ लौटने की नौबत आ गई. हालात तब बिगड़ गए जब नाराज किसानों ने अफरा-तफरी के बीच जमकर हंगामा किया और गुस्से में मुख्य सड़क पर चक्काजाम कर दिया. स्थिति बेकाबू होती देख वेयरहाउस के कर्मचारी ताला लगाकर भाग खड़े हुए.
किसानों का कहना है कि कई दिनों से वे खाद के लिए भटक रहे हैं, लेकिन उन्हें हर बार मायूसी ही मिलती है. धान की फसल में खाद डालने का समय निकल रहा है, ऐसे में उनकी मेहनत पर पानी फिरने का खतरा मंडरा रहा है. इस बीच विवाद उस समय और बढ़ गया जब समिति से जुड़े भाजपा नेता कैलाश तिवारी ने एक बुजुर्ग किसान के साथ मारपीट की. उनका वीडियो सामने आने के बाद किसानों का गुस्सा और भड़क उठा. किसानों का आरोप है कि वेयरहाउस के भीतर दलाल सक्रिय हैं और खुलेआम ब्लैक में खाद बेची जा रही है.
जाम की सूचना मिलते ही एसडीएम रश्मि चतुर्वेदी और टीआई अनिल काकडे पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे और किसानों को समझाइश दी. अफसरों ने खाद आपूर्ति बढ़ाने और अनियमितताओं की जांच कराने का भरोसा दिलाया, जिसके बाद शाम को किसानों ने जाम समाप्त किया.
इधर, नईगढ़ी थाना क्षेत्र के बहुती में भी खाद की कालाबाजारी पकड़ी गई. यहां एक ट्रक से 600 बोरी खाद समिति तक पहुंचनी थी, लेकिन चालक ने सुनसान जगह पर 31 बोरी ब्लैक में बेच दी. किसानों ने ट्रक को घेरकर पुलिस को सूचना दी और ट्रक ज़ब्त कर लिया गया. किसानों का आरोप है कि समितियों में खाद गायब है, जबकि बाजारों में यही खाद ऊंचे दामों पर मिल रही है. यहां तक कि कुछ व्यापारी नकली खाद भी बेच रहे हैं, जो खेतों में घुल नहीं रही.
कलेक्टर संजय कुमार जैन ने मामले पर कहा कि भीड़ अधिक होने की वजह से पर्ची सिस्टम लागू किया गया था और चार अतिरिक्त काउंटर खोले गए थे. कुछ लोग लाइन तोड़कर पहले खाद लेने की कोशिश कर रहे थे, जिससे तनाव की स्थिति बनी. उन्होंने दावा किया कि प्रशासन ने तत्काल हालात काबू में कर लिए.
किसानों और संगठनों का कहना है कि ट्रकों से खाद जिले में आ तो रही है, लेकिन समितियों तक नहीं पहुंच पा रही. यही वजह है कि कालाबाजारी और ब्लैक मार्केटिंग का धंधा तेजी से पनप रहा है. किसान कांग्रेस जिला अध्यक्ष नृपेंद्र सिंह पिंटू ने कहा कि किसान अपनी फसल बचाने के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर हैं और यह सरकार की नाकामी का नतीजा है.