धर्मेंद्र प्रधान से मुलाकात, दो घंटे की बात… और फिर दिल्ली पहुंचे नीतीश कुमार, क्या सीट शेयरिंग पर बन गई बात? 

बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए कार्यक्रम का ऐलान अभी नहींहुआ है, लेकिन सियासी सरगर्मियां जोरों पर हैं. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव वोटर अधिकार यात्रा पर निकले हैं. वहीं, सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के खेमे में भी सियासी हलचल तेज हो गई है. मंगलवार को शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान पटना में थे.

भारतय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए बिहार में कई मौकों पर संकटमोचक की भूमिका निभा चुके धर्मेंद्र प्रधान ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की. धर्मेंद्र प्रधान और नीतीश की मुलाकात करीब दो घंटे चली. इस दौरान नीतीश सरकार के डिप्टी सीएम और बिहार बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी, जनता दल (यूनाइटेड) के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा, केंद्रीय मंत्री ललन सिंह भी मौजूद थे.

इस मैराथन बैठक के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, संजय झा और ललन सिंह के साथ दिल्ली रवाना हो गए. सीएम नीतीश की धर्मेंद्र प्रधान के साथ मैराथन बैठक और इसके बाद दिल्ली दौरा, इन सबको बिहार चुनाव के लिए सत्ताधारी गठबंधन में सीट शेयरिंग की कवायद से जोड़कर देखा जा रहा है.

जेडीयू ने सीएम के दिल्ली दौरे को निजी यात्रा बताया है. कहा यह भी जा रहा है कि वह स्वास्थ्य जांच कराने गए हैं, लेकिन संजय झा और ललन सिंह का भी उनके साथ जाना कयासों को हवा दे रहा है. बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने धर्मेंद्र प्रधान के साथ नीतीश कुमार की सियासी ट्यूनिंग का जिक्र करते हुए कहा कि 2022 में जब बीजेपी और जेडीयू के बीच तल्खी बढ़ रही थी, तब भी पार्टी ने सीएम से मिलने उनको ही पटना भेजा था. बिहार बीजेपी के प्रभारी तब भूपेंद्र यादव थे.

उन्होंने कहा कि यह तो एक उदाहरण है, कई मौकों पर जेडीयू के साथ गांठें सुलझाने के लिए बीजेपी धर्मेंद्र प्रधान को आगे कर चुकी है. धर्मेंद्र प्रधान और नीतीश की बैठक ऐसे माहौल में हुई है, जब जेडीयू बड़े भाई की भूमिका पर अड़ी हुई है. धर्मेंद्र प्रधान से मुलाकात के तुरंत बाद नीतीश का दिल्ली जाना इस बात का संकेत है कि जेडीयू-बीजेपी में सीट शेयरिंग पर बातचीत की गाड़ी आगे बढ़ी है.

सीट शेयरिंग पर क्यों फंसा है पेच?

सवाल यह भी है कि बिहार एनडीए में सीट शेयरिंग पर पेच क्यों फंसा है. दरअसल, बीजेपी और जेडीयू के साथ ही चिराग पासवान की अगुवाई वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा भी एनडीए में शामिल हैं. हर दल अपने कोटे में ज्यादा से ज्यादा सीटें चाहता है

चिराग पासवान 40 विधानसभा सीटों पर दावा ठोक रहे हैं. जीतनराम मांझी भी 40 सीटें मांग रहे हैं. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी भी 10 से15 सीटें चाहती है. जेडीयू भी हर हाल में बीजेपी से ज्यादा सीटें चाहती है, ताकि चुनाव के पहले ही यह संदेश दिया जा सके कि बड़े भाई की भूमिका में यहां अब भी वही है. पेच यहीं फंसा है

एनडीए में अगर तीन छोटे सहयोगियों की मुराद पूरी हो, तो विधानसभा की कुल 243 सीटों के चुनाव में इनकी सीटें ही 95 पहुंच जा रहीं. ऐसे में बीजेपी और जेडीयू के लिए बचेंगी 148 सीटें. बीजेपी और जेडीयू, दोनों ही दल किसी भी सूरत में सौ सीट से कम पर मानने के मूड में नहीं हैं. सीट शेयरिंग में फंसे पेच की एक वजह यह भी है कि चिराग जो सीटें चाह रहे हैं, उनमें कई सीटों पर जेडीयू के विधायक हैं.

सीट शेयरिंग के इस फॉर्मूले की चर्चा

सीट शेयरिंग के जिस संभावित फॉर्मूले की चर्चा है, उसके मुताबिक बीजेपी और जेडीयू, दोनों ही दलों के हिस्से 100 से 105 सीटें आ सकती हैं. बिहार एनडीए ने 225 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है और इसे ध्यान में रखते हुए दोनों दल हर हाल में 210 के करीब सीटें अपने पास ही रखना चाहते हैं. चिराग की पार्टी को 20 से 25 सीटें मिल सकती हैं और बची सीटों से ही जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को संतुष्ट करने की कोशिश होगी.

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