मिर्ज़ापुर: सैम ग्लोबल यूनिवर्सिटी भोपाल में आयोजित हो रहे प्रकृति मीडिया कार्यशाला के दूसरे दिन के प्रथम सत्र में सचिव संध्या वर्मा ने विज्ञान गीत “आलू, मिर्ची,चाय जी कौन कहा से जी..” आये के माध्यम से कार्यशाला की शुरुआत की एवं प्रतिभागियों ने भी इस गीत को साथ में गाया.
प्रतिभागी अध्यापकों के दो ग्रुप ने अपने पहले दिन की कार्यशला का प्रत्यावेदन प्रस्तुत किया। इस कर्यशाला में 25 प्रतिभागियों को चार ग्रुप में बांटा गया, कार्यशाला के प्रथम सत्र में जल विशेषज्ञ डॉक्टर संतोष कुमार त्रिपाठी सेवानिवृत्त चीफ केमिस्ट भोपाल ने जल के बारे प्रतिभागियों को बताया कि पानी ही प्राणी है। पानी में हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन से बना है। पानी में 89.1 पर प्रतिशत हाइड्रोजन एवं शेष ऑक्सीजन है.
पानी एक प्राकृतिक स्रोत है। बरसात का पानी एकत्रित कर पीने योग्य नहीं है। इसमें मिनिरल्स नहीं है। शरीर में 77 प्रतिशत पानी है। 3 लीटर पानी प्रतिदिन अवश्य पीना चाहिए तथा पानी बैठकर गिलास में पीना चाहिए, पानी अधिक ठंडा नहीं पीना चाहिए।पानी में कैलेसियम,आयरन, आरसेनिक, क्रोमियम, फ्लुओरिन, फोस फेट आदि मिले होते है।ओरसेनिक युक्त पानी में कैंसर के रोग उतपन्न होते है। ओरसेनिक युक्त पानी जहां फैक्टरी का पानी मिलता है वहां ओरसेनिक मिलने की संभावना रहती है। फ्लुओ राइड की मात्रा अधिक होने फ्लुअरोसिस रोग होता है। फ़्लोरोराइड पानी के गहराई में या ऊपर मिलता है। यह हड्डियों से कैल्सियम को हटा देता है। फ्लोरोराइड की मात्रा जल में 1.5 मिली ग्राम प्रति लीटर की मात्रा होने तक कोई परेशानी नहीं होगी। 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से 3 ग्राम प्रति लीटर होने पर दांतों एवं हड्डियों में परेशानी होती है। 3 से 6 मिली ग्राम प्रति लीटर होने पर हड्डियां टेढ़ी मेंढी हो जाती है। फ़्लोरो राइड का टेस्ट विषय विशेषज्ञ के मार्ग दर्शन में जिला विज्ञान क्लब मिर्ज़ापुर उत्तर प्रदेश के समन्वयक एवं भौतिक विज्ञान प्रवक्ता सुशील कुमार पाण्डेय टेस्ट के माध्यम से करके प्रतिभागियों को करके दिखाया। इसी प्रकार पानी में नाइट्राइट की मात्रा 45 मिलीग्राम प्रति ग्राम हो सकती है।इससे अधिक मात्रा होने पर हीमोग्लोबिन कम करता है।हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन का ट्रांसपोरेशन करता है। इसकी अधिकता से ब्लू बेबी रोग होता है। आरसेनिक की मात्रा .1 मिलीग्राम प्रति लीटर तक हो सकती है। इससे अधिक होने पर हाथ में फुंशी होना शुरु होते हैं, इसके बाद पूरे शरीर में हो जाती है.
बताया गया कि, जल में बैक्टेरिया होने पर गैस्ट्रो इंस्टे टाइन (डायरिया) हो जाता है। बैक्टेरिया को कम करने के लिए लिक्विड क्लोरीन मिला कर कम कर सकते है। 15 लीटर पानी में 4 से 6 बूंद लिक्विड क्लोरीन मिलाते है। विशेषज्ञ ने बताया कि कोई डिवाइस लगाने से पहले पानी की टेस्टिंग कर लें। यदि पानी का टीडीयस 250 है तो वह पीने योग्य है। यदि पानी की जांच करने के बाद सभी पैरा मीटर सही है तो कोई डिवाइस (आरो) लगाने की आवश्यकता नहीं है, विशेषज्ञ ने पानी में क्लोरीन, पानी की अमलीयता एवं क्षारीयकता, फ्लोरोराइड का परीक्षण प्रतिभागी प्रतिभागियों द्वारा कराया. कार्यशाला में साइंस सेंटर ग्वालियर द्वारा बनाई गयी वीडिओं द्वारा लिट मस बोलता है एवं पानी की पारदर्शिता जांच करने की विधि को प्रतिभागियों को दिखाया गया। कार्यशाला के दूसरे सत्र की विशेषज्ञ डॉक्टर श्रीपर्णा सक्सेना हेड इक्वा सेंटर सेज यूनिवर्सिटी भोपाल ने जलीय जैव विविधता के बारे में विस्तार पूर्वक प्रतिभगियों को जानकारी दी.
विशेषज्ञ ने बताया कि जल में रहने वाले जलीय जीवों को देखकर जल के प्रदूषण का पता लगा सकते है, उन्होंने यूरेका किट के माध्यम जानकारी दी.