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मिर्ज़ापुर: किसान विरोधी कानूनों के विरोध में प्रदर्शन, किसानों ने क्यों कहा इसे काला कानून

मिर्ज़ापुर: किसानों की विभिन्न समस्याओं तथा पूर्व में संसद की ओर किए गए किसानों के कूच के दौरान सरकार द्वारा कि घोषणाओं के पूर्ण न होने से आक्रोशित किसानों ने प्रदर्शन कर सरकार पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया है. सैकड़ों की तादाद में जिला मुख्यालय पर एकत्र हुए किसानों ने भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी को संबोधित 12 सूत्रीय मांगों का ज्ञापन जिलाधिकारी मिर्ज़ापुर को सौंपकर कार्रवाई की मांग कि है.

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किसान नेताओं ने कहा कि मजदूर और किसान आज पूरे भारत में अपने मुद्दों को उजागर करने और निवारण की मांग के लिए संयुक्त रूप से विरोध कर रहे है. यह ज्ञापन इस उम्मीद के साथ भेज रहे हैं कि आप (राष्ट्रपति) देश की इन दो प्रमुख उत्पादन शक्तियों के पक्ष में हस्तक्षेप करेंगी. कहा आज 26 नवंबर को लामबंदी के माध्यम से विरोध दिवस के रूप में चुना है, क्योंकि यह वह दिन है जब ट्रेड यूनियनों ने मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताओं के विरोध में राष्ट्रव्यापी हड़ताल की थी और किसानों ने 2020 में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ संसद की ओर अपना ऐतिहासिक मार्च शुरू किया था. किसानों के लंबे संघर्ष के बाद जब कृषि कानून वापस लिए गए थे, तब किसानों से किए गए वादे आज तक पूरे नहीं हुए है. हम नीचे बताई गई दयनीय स्थिति के बारे में आपके सामने कुछ तथ्य रखना चाहते हैं और आपका हस्तक्षेप चाहते हैं.

कहा भारत के मेहनतकश लोग एनडीए सरकार की कॉरपोरेट्स और सुपर रिच को समृद्ध करने की नीतियों के कारण गहरे संकट का सामना कर रहे हैं, जबकि खेती की लागत और मुद्रास्फीति हर साल 12-15 से अधिक की दर से बढ़ रही है, सरकार एमएसपी में केवल 2 से 7 प्रतिशत की वृद्धि कर रही है. इसने सी 2+50 प्रतिशत फॉर्मूले को लागू किए बिना और खरीद की कोई गारंटी दिए बिना 2024-25 में राष्ट्रीय धान के एमएसपी को केवल 5.35 प्रतिशत बढ़ाकर 2300 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया. इससे पहले कम से कम पंजाब और हरियाणा में धान और गेहूं की खरीद की जाती थी, लेकिन केंद्र सरकार पिछले साल खरीदी गई फसल को उठाने में विफल रही, जिससे मंडियों में जगह की कमी के कारण इस साल धान की खरीद ठप हो गई.

किसान अपने अल्प एमएसपी, एपीएमसी मंडियों, एफसीआई और पीडीएस आपूर्ति को बचाने के लिए फिर से सड़कों पर उतरने को मजबूर अनुबंध खेती को बढ़ावा देने और फसल पैटर्न को खा‌द्यान्न उगाने से बदलकर वाणिज्यिक फसलें उगाने की योजनाए बनाई जा रही है, जो कॉर्पोरेट बाजार की आपूर्ति में मददगार है. कहा 2017 में लगाया गया जीएसटी और 2019 में गठित केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय राज्य सरकार की शक्तियों पर आक्रमण था और उनके कराधान अधिकारों में कटौती की गई.

बजट 2024-25 में घोषित राष्ट्रीय सहयोग नीति का उद्देश्य फसल कटाई के बाद के कार्यों को कॉपीरेट द्वारा अपने नियंत्रण में लेना और सहकारी क्षेत्र के ऋण को कॉर्पोरेट की ओर मोड़ना है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ कई समझौते किए हैं. सार्वजनिक क्षेत्र में, भंहारण, केंद्रीय भंडारण निगम और बाजार यार्ड सभी को अडानी और अंबानी जैसी कॉर्पोरेट कंपनियों को किराए पर दिया जा रहा है. खेती में लगातार घाटा बढ़ने से कर्ज बढ़ता है और खेती से अधिक बेदखली होती है- न्यूनतम मजदूरी, सुरक्षित रोजगार, उचित कार्य समय और यूनियन बनाने के अधिकार पर किसी भी गारंटी को रद्द करता है. निजीकरण, ठेकेदारी और भर्ती नहीं करने की नीतियां मौजूदा श्रमिकों और नौकरी चाहने वाले युवाओं को आभासी गुलामी में धकेलती है. ट्रेड यूनियन बनाने के बुनियादी अधिकार की रक्षा के लिए भी ट्रेड यूनियन संघर्ष पथ पर है, पुरानी पेंशन योजना, सेवानिवृत्ति अधिकार, खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा, शिकायतों के निवारण के लिए प्रभावी कानूनी तंत्र आदि की बहाली के लिए. कहा कि हमारा मानना है कि किसानों को गरीबी और कृषि संकट से मुक्ति दिलाने और श्रमिकों को उनके संघर्षों को जीतने के लिए मजदूर किसान एकता का निर्माण और इसे मजबूत करना राष्ट्रीय हित में सबसे महत्वपूर्ण हो गया है.

अंत में किसानों के प्रतिनिमंडल ने राष्ट्रपति के नाम संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपते हुए जिले में नहरों की बदहाली, नहरों में समय से पानी न आने की समस्याओं को रखतें हुए समाधान की मांग की. इस दौरान सैकड़ों की संख्या में किसान उपस्थित रहे हैं.

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