मिर्ज़ापुर: पुरुष आयोग गठित करने व कब मिलेगा निर्दोष! पुरुषों को न्याय की मांग को लेकर प्रदर्शन

मिर्ज़ापुर: उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में एक अजीबो-गरीब प्रदर्शन देखने को मिला है, जिसका न केवल लोग समर्थन करते हुए दिखलाई दिए हैं, बल्कि कहा है कि इस दोधारी व्यवस्था को समाप्त कर ग़लत को ग़लत और सही को सही के नज़रिए से देखा जाना चाहिए और कार्रवाई भी निष्पक्ष होनी चाहिए. अक्सर आपने देखा होगा सुना होगा कि महिला उत्पीड़न के मामले अधिकांश उन लोगों को भी कानूनी पचड़े में घसीट लिया जाता है जिनका उससे दूर-दूर तक नाता नहीं होता है. इससे बचना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। इन्हीं मुद्दों को लेकर तथा पुरुष आयोग गठित किए जाने की मांग को लेकर कलेक्ट्रेट में प्रदर्शन कर भारतीय न्याय प्रणाली में महिला संरक्षण कानूनों के दुरुपयोग और पुरुषों के साथ हो रहे गंभीर प्रताड़ना के संबंध में न्याय और सुधार की मांग करते हुए सरकार और न्यायिक व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों का ध्यानाकर्षण कराया गया.

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पुरुष प्रताड़ना के बढ़ते मामले

इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि वर्तमान समय में दहेज आदि के मामलों में लगभग 99% तक झूठे आरोप लगाने वाली महिलाओं को सरकार द्वारा संरक्षण दिया जा रहा है। महिला की बजाय स्वयं सरकार इन झूठे मामलों को सरकार” बनाम के रूप में लड़ती है “(प्रेमी-पति), जो न्याय के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है। यह एक गंभीर पुरुष विरोधी स्थिति है, जिसमें निर्दोष पुरुषों को बिना पर्याप्त जांच के प्रताड़ित किया जा रहा है। सरकार द्वारा इस प्रकार की कार्यवाही न केवल असंवेदनशील है, बल्कि यह कानून के दुरुपयोग को भी बढ़ावा देती है। इस तरह के दुरुपयोग से कई निर्दोष पुरुष और उनके परिवार पूरी तरह से बर्बाद हो रहे हैं। उनके ऊपर घरेलू हिंसा, दहेज उत्पीडुन, छेड़छाड़, बलात्कार जैसे गंभीर और झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं। इससे वे मानसिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से टूट जाते हैं।

दिल्ली हाईकोर्ट को सराहा

अभी हाल में दिल्ली हाईकोर्ट ने 21 मई 2025 को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (पत्नी के साथ क्रूरताका दुरु (पयोग समाज में अविश्वास फैलाता है और इससे असली घरेलू हिंसा पीड़ितों की न्याय प्राप्ति कठिन हो जाती है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि महिला ‌द्वारा लगाए गए आरोप झूठे साबित होते हैं, तो उसे भी कानूनन परिणाम भुगतने होंगे. अदालतों में भी पुरुषों को बराबर का सुनवाई का अवसर नहीं मिलता. उन्हें केवल दोषी मान लिया जाता है। कई बार निचली अदालतें सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन तक नहीं करती। ऐसे में पुरुषों को इंसाफ मिलना और भी कठिन हो जाता है.

इन हालातों से मानसिक रूप से टूटकर कई होनहार युवक आत्महत्या कर चुके हैं, जैसे कि एआई इंजीनियर अतुल सुभाष। यह सिलसिला लगातार बढ़ रहा है। दुर्भाग्य से, हमारे कानूनों में पुरुषों पर होने वाली घरेलू हिंसा के लिए कोई सुनवाई या प्रावधान नहीं है.

सामान्य परिस्थिति का विश्लेषण करते हुए पत्नी प्रताड़ित कमाल अहमद ने कहा लिंग पक्षपातपूर्ण कानूनः अधिकतर महिला-संरक्षण कानून एकतरफा बनाये गए हैं, जिनमें पुरुषों के लिए कोई सुरक्षात्मक प्रावधान नहीं है. घरेलू हिंसा कानून सिर्फ महिलाओं के लिए है, जबकि पुरुषों पर हो रही घरेलू हिंसा की सुनवाई का कोई प्रावधान नहीं है.

न्यायपालिका की लापरवाही

माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समय-समय पर दिये गये दिशा-निर्देश जैसे रजनीश बनाम नेहा (2020) का पालन निचली अदालतों द्वारा नहीं किया जा रहा है. इस कारण वर्षों तक निर्दोष पुरुष मुकदमों के दलदल में फंसे रहते हैं. कमाल अहमद ने अपने पत्र के साथ एक प्रमाणिक दस्तावेजी साक्ष्यके रूप में पेश करते हुए बताया कि माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवमानना करते हुए अंतरिम भरण पोषण के आवेदन पर आदेश पारित करने के संबंध में” उनके द्वारा आवेदन किया गया है.

उन्होंने विस्तार से बताया है कि किस प्रकार निचली अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के रजनीश बनाम नेहा (दिनांक 20.11.2020) के दिशानिर्देशों की अनदेखी करते हुए अंतरिम भरण-पोषण का आदेश पारित करने की प्रक्रिया चलाई, जबकि प्रतिवादिनी (पत्नी) द्वारा अपनी आय और संपत्ति का पूर्ण विवरणप्रस्तुत ही नहीं किया गया था। पुलिस और जांच प्रणाली का पक्षपातः झूठे मामलों की अधूरी या एकतरफा जाँच करने वाले पुलिस अधिकारियों पर कोई दंडात्मक कार्यवाही नहीं होती। इससे झूठी रिपोर्ट बेधड़क दर्ज की जाती हैं।
इसी प्रकार मानसिक स्वास्थ्य व आत्महत्याएं लगातार अपमान, झूठे आरोप, सामाजिक बहिष्कार और आर्थिक शोषण के कारण कई पुरुष आत्महत्या जैसा गंभीर कदम उठाने को मजबूर हो जाते हैं। यह समाज के लिए एक खतरनाक संकेत है.

इस दौरान पुरुष आयोग गठित किए जाने की पुरजोर मांग करते हुए प्रताड़ित पुरुषों ने बताया कि 24 अगस्त 2024 को सामाजिक संस्था संकल्प के माध्यम से सरकार को 10 बिंदुओं पर आधारित ज्ञापन सौंपा गया था, जिसमें महिलाओं द्वारा लगाए गए झूठे आरोपों में पुरुषों को निर्दोष पाए जाने पर क्षतिपूर्ति की मांग शामिल रही है। इसी तरह वह निरंतर पीड़ित पुरुषों को एकजुट करने से लेकर उनके हक अधिकार के लिए विधिपूर्वक आंदोलन करते हुए आएं हैं। इस दौरान कुल सात बिंदुओं पर शासन प्रशासन का ध्यानाकर्षण कराते हुए महिला कानूनों के दुरुपयोग पर रोक और दंडः झूठे मुकदमे दर्ज करने वाली महिलाओं और एकतरफा जांच करने वाले पुलिस अधिकारियों पर कठोर दंडात्मक कार्यवाही की जाए, झूठे मामलों में पुरुषों के लिए मुआवजा योजना लागू की जाए.

NRI पुरुषों के matrimonial मामलों के लिए विशेष न्यायालय (NRI Matrimonial Court) गठित किया जाए। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और ई-कोर्ट को सभी मामलों में लागू किया जाए, विशेषकर NRI और वरिष्ठ नागरिक आरोपियों के लिए. घरेलू हिंसा कानून को लिंग-निरपेक्ष बनाया जाए, जिससे पुरुष भी कानूनी सुरक्षा पा सकें. निचली अदालतों को उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों का अनिवार्य पालन सुनिश्चित करने के सख्त निर्देश दिये जाएं। NOC और पासपोर्ट संबंधी मामलों में न्यायालयों द्वारा अनावश्यक विलंब को रोका जाए की मांग की गई.

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