Mirzapur: कभी घने कोहरे की वजह से तो कभी धुप्प अंधेरे के चलते सड़कों पर बेजुबान गौवंश वाहनों के चपेट में आकर दम तोड़ जाते हैं, कभी-कभी तो इन्हें देख न पाने की वज़ह से वाहनों को भी दुर्घटना का शिकार होना पड़ जाता है. ऐसे में उत्तर प्रदेश के मीरजापुर जिले के जयहिंद विद्या मंदिर इंटर कॉलेज अहरौरा के युवा जुगाड़ू वैज्ञानिकों ने एक देशी जुगाड़ का इजात करते हुए सड़कों पर घूमने वाले गौवंशो की जान बचाने के लिए कदम बढ़ाया है. जिसकी सर्वत्र सराहना हो रही है.
जयहिंद विद्या मंदिर इंटर कॉलेज अहरौरा के कक्षा 10 के छात्र नागेंद्र मौर्य जो जिला विज्ञान क्लब समर्थित कलाम इनोवेशन लैब अहरौरा के जुगाडू बाल वैज्ञानिक भी हैं, ने देखा कि लोग पशुओं को छुट्टा छोड़ देते है, यह छुट्टा पशु किसानों के खेतों में घुस कर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं तो लोग उन्हें मारते हैं, जिससे पशु भागकर सड़कों पर आ जाते हैं. जिससे वे अक्सर वाहनों की चपेट में आ जाते है जहां उनकी मौत भी हो जाती है, कभी कभी सड़कों पर इन पशुओं से बचने के प्रयास में दुर्घटना भी हो जाया करते हैं. इस समस्या से बचाने के लिए युवा वैज्ञानिक नागेंद्र एवं उनके सहपाठी चन्दन ने एक युक्ति सोची कि क्यों न इन पशुओं के गले में रेडियम का पट्टा बांध दिया जाए, जिससे जब रात में पशु सड़कों पर आएंगे तो रेडियम का पट्टा दूर से ही चमकने लगेगा जिससे वाहन चालक को जानवर दूर से ही दिखाई दे जाएंगे और वह दुर्घटना का शिकार होने से बच जाएंगे.
उनके इस मुहिम में सत्यनारायण प्रसाद सेवानिवृत उप प्रधानाचार्य नगर पालिका इंटर कॉलेज अहरौरा एवं प्रबंधक कलाम इन्नोवेशन लैब अहरौरा मदद कर रहे है, ताकि सड़कों पर घूमने वाले गौवंशो से होने वाले दुर्घटनाओं को रोकने के साथ ही इनको भी बचाया जा सके.
गौरतलब है कि गौवंशों की सड़कों पर बढ़ते झुंड को देख वाहन चालकों की परेशानियों में जहां इजाफा होता जा रहा है, वहीं बड़ी संख्या में गौ वंश भी असमय काल के गाल में समां जाया करते हैं, इस संदर्भ में जिला समन्यवक जिला विज्ञान क्लब मीरजापुर सुशील कुमार पाण्डेय ने बताया कि नागेंद्र एक अच्छे जुगाडू वैज्ञानिक भी हैं उन्होंने खेती के लिए महत्वपूर्ण यंत्र भी बनाये हैं, इनकी यह पहल पशुओं के जीवन को बचाने में बहुत उपयोगी है. वह बताते हैं कि नागेंद्र से प्रतिदिन इस संदर्भ में बात होती रहती है, उनके इस प्रयास के लिए हम सभी मदद के लिए हमेशा तैयार रहते है, इस पट्टे को कैसे मूर्तरूप दिया गया है के सवाल पर वह बताते हैं, “यह लोग मार्केट से समान खरीद कर लाते है फिर पट्टे को असेंबल कर बनाते है, फिर खाली समय में पशुओं को पट्टे बांधते है, इनके पशुओं के इस प्रेम को देखकर आस-पास के लोग काफी सराहना भी करते है.