कोल्हापुर : कर्नाटक की सीमा के पास निपाणी के यमगर्णी गांव के ज्ञानेश्वर कुंभार पिछले 30 वर्षों से आषाढ़ी एकादशी पर महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में कागल तालुका के नानीबाई चिखली से पंढरपुर तक पैदल जाते हैं. उनके घर में एक पालतू कुत्ता भी है. कुंभार वारकरी समुदाय से आते हैं. इस साल पालतू कुत्ता भी उनके साथ पंढरपुर के विठ्ठल मंदिर में गया था. 6 जुलाई से 14 जुलाई के बीच गांव से एक जुलूस निकला था. इस कुत्ते ने वारकरियों के साथ करीब 200 किलोमीटर की दूरी पूरी की, लेकिन पंढरपुर में लाखों की भीड़ में ये कुत्ता गायब गया.
कुंभार परिवार ने पंढरपुर में पालतू कुत्ते को खोजने की कोशिश की, लेकिन उन्हें दो दिनों के बाद खाली हाथ घर लौटना पड़ा. कुंभार परिवार परेशान था क्योंकि उन्हें कुत्ता नहीं मिला. लेकिन दो दिन पहले ही महाराज कुत्ता अकेला गांव लौट आया. जिससे परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. ग्रामीणों ने इस कुत्ते का गांव में जुलूस भी निकाला. गांव लौटे कुत्ते का फूल-मालाओं से स्वागत करने की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गई हैं. ग्रामीणों का कहना है कि हर कोई पालतू कुत्ते का इंतजार कर रहा था.
कुत्ता कैसे वापस लौटा
इसका वैज्ञानिक विश्लेषण करते हुए पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. सैम लुड्रिक ने बताया कि पालतू जानवर अपने क्षेत्र के कुछ स्थानों पर मलमूत्र छोड़ते हैं. मलमूत्र की गंध से यात्रा की दिशा स्पष्ट होती है. अगर यह कुत्ता किसी वाहन से पंढरपुर गया होता तो वापस लौट नहीं पाता. उन्होंने कहा कि कुत्ते जो मलमूत्र छोड़ा था, उसके निशान उसे वापस उसी स्थान पर ले आए. अधिकांश जानवर ऐसा स्वाभाविक रूप से करते हैं.
यमगर्णी गांव में वारकरी संप्रदाय के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं. गांव में हर साल अखंड हरिनाम सप्ताह का आयोजन किया जाता है. कई धार्मिक आयोजनों में ज्ञानेश्वर कुंभार अपने पालतू कुत्ते के साथ शामिल होते थे. गांव वालों ने इस मूक जानवर की धार्मिक प्रवृत्ति को देखते हुए उसका नाम ‘महाराज’ रख दिया. जब गांव के लोग ‘महाराज’ पुकारते हैं तो कुत्ता कान हिलाकर उनके पास आ जाता है.