बांसवाड़ा में 5 साल में 4000 से ज्यादा बच्चों की मौत, चौंकाने वाली है इसकी वजह !

राजस्थान के जनजाति जिले बांसवाड़ा में आजादी के 78 साल बाद भी अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं एक सपना बन कर रह गई हैं. कुपोषण तो मानों यहां के लोगों के लिए नियति बन चुका है. आप यह जानकर आश्चर्यचकित होंगे कि बांसवाड़ा में गर्भवती महिलाओं में 4 से 5 ग्राम हीमोग्लोबिन (खून) का स्तर पहुंच जाता है और कभी-कभी तो ऐसी महिलाएं डिलीवरी के लिए भर्ती होती हैं, जिनमें मात्र 2 से 3 ग्राम हीमोग्लोबिन (खून) ही पाया जाता है.

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महात्मा गांधी चिकित्सालय में दर्ज पिछले पांच सालों के दौरान गर्भस्थ शिशुओं की मौत की संख्या काफी डराने वाली है. जिले में साल 2020 से 2024 के दरमियान चार हजार से अधिक बच्चों की मौत मां के गर्भ में ही हो गई है. सरकार और स्वास्थ्य विभाग इन हालात को सुधारने का दावा करते हैं, लेकिन जनजाति अंचल बांसवाड़ा में स्थिति बेहद बुरी बनी हुई है. यहां पिछले पांच सालों में हजारों बच्चे मां के गर्भ में ही अपना दम तोड़ चुके हैं.

4 हजार से ज्यादा बच्चों की मौत

पिछले पांच सालों में 4 हजार से अधिक गर्भस्थ शिशुओं की मौत हकीकत बयां कर रही है. इसमें 70 फीसदी से अधिक जनजाति महिलाएं हैं. हेल्दी डाइट और गर्भ अवस्था के दौरान खुद पर ध्यान न रखने के कारण जनजाति महिलाओं का एनीमिया ग्रसित होना इसका बड़ा कारण माना जा रहा है. कई गर्भवती में तो 4-5 ग्राम या इससे भी कम हीमोग्लोबिन पहुंच जाता है. इसे दूर करने के लिए सरकार और विभाग की ओर से चलाई जा रही योजनाओं पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.

स्वास्थ्य विभाग में मचा हड़कंप

हर साल हो रही मौतों के आंकड़ों से सरकार और स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मचा हुआ है. सरकार अपने स्तर पर गर्भ में बच्चों की मौत को रोकने के लिए प्रयास कर रही है, लेकिन कोई समाधान निकलता हुआ नजर आ नहीं आ रही है. विभाग के साथ-साथ आम लोग भी हजारों बच्चों की मौत से काफी परेशान हैं.

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