मध्य प्रदेश के भोपाल में एक अजीब तरह का मामला सामने आया है. यहां काटजू अस्पताल में भर्ती एक महिला का ब्लड ग्रुप ही उसके बच्चे के लिए काल बन गया था. नौबत यहां तक आई कि 12 साल में इस महिला के 9 मिसकैरेज हो गए. आखिर में डॉक्टरों ने महिला को मातृत्व सुख देने के लिए नायाब तरीका निकाला. इसमें जब महिला 10वीं बार प्रेग्नेंट हुई तो उसकी बच्चेदानी का मुंह ही बंद कर दिया. वहीं महिला के ब्लडग्रुप से बन रही एंटीबॉडी को इंजेक्शन की मदद से रोका गया. इतना करने के बाद अब महिला की सुरक्षित डिलीवरी हुई है.
काटजू अस्पताल में स्टेट ऑफ सेंटर फॉर प्रिवेन्टिव गायनाकोलॉजी एंड इनफर्टिलिटी की टीम के मुताबिक महिला की प्रेग्नेंसी तो हो रही थी, लेकिन जैसे ही यह प्रेग्नेंसी तीन महीने की होती, महिला का अपना ब्लडग्रुप ही उसके बच्चे का काल बना जाता था. दरअसल इस महिला के ब्लड में एक ऐसी एंटीबॉडी (इम्यून सिस्टम) बन रही थी, जो उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण के रेड ब्लड सेल को खत्म कर देती थी. इसकी वजह से तीन महीने में ही महिला का मिसकैरेज हो जाता था.
मां का निगेटिव तो बच्चे का पॉजिटिव था ब्लड ग्रुप
टीम के डॉक्टरों ने बताया कि महिला का ब्लड ग्रुप आरएच निगेटिव था, जबकि उसके गर्भ में पल रहे बच्चे का ब्लड ग्रुप आरएच पॉजिटिव था. इस तरह के मामलों में महिला के शरीर में बनने वाला इम्यून सिस्टम उसके ही बच्चे के घातक साबित होता है. डॉक्टरों के मुताबिक महिला की सुरक्षित डिलीवरी में और भी कई तरह की बाधा थी. इसमें एक बाधा यह थी कि महिला की बच्चेदानी का मुंह काफी छोटा था. इससे भी मिसकैरेज होने का खतरा तो था ही डिलीवरी में भी दिक्कत आने की संभावना थी.
बंद करना पड़ा बच्चेदानी का मुंह
ऐसे में तीन महीने की प्रेग्नेंसी में ही डॉक्टरों ने टांका लगाकर बच्चेदानी का मुंह बंद कर दिया. वहीं महिला के शरीर में बनने वाले एंटी बॉडी को रोकने के लिए इंजेक्शन दिए गए. इतना करने के बाद भी डॉक्टरों की टीम ने पूरे नौ महीने महिला के पेट में पल रहे बच्चे की निगरानी की और अब सुरक्षित तरीके से डिलीवरी कराई है. इस अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रचना दुबे के मुताबिक लगातार निगरानी रखने और महिला के शरीर में बन रही परिस्थितियों का समाधान तत्काल निकालने की वजह से सुरक्षित डिलीवरी संभव हो सकी है. अब जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ हैं.