मध्य प्रदेश को यूं ही “अजब है, सबसे गजब है” नहीं कहा जाता. यहां के घोटाले भी अजीबोगरीब होते हैं. हाल ही में चम्मच घोटाला और डामर घोटाला चर्चा में थे और अब जबलपुर नगर निगम का कचरा परिवहन घोटाला सामने आया है. आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) ने इस मामले में नगर निगम के दो पूर्व अधिकारियों समेत तीन लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के तहत प्राथमिकी (FIR) दर्ज की है.
वहीं इस पूरे मामले में रिटायर्ड अधिकारी विनोद श्रीवास्तव स्वास्थ्य अधिकारी, नगर निगम जबलपुर एवं अनिल जैन सहायक स्वास्थ्य अधिकारी, नगर निगम जबलपुर के साथ-साथ हेमंत करसा अध्यक्ष, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, सफाई कामगार सहकारी समिति रानीताल जबलपुर एवं दो अन्य कर्मचारियों को आरोपी बनाया गया है.
ईओडब्ल्यू की जांच में सामने आया है कि नगर निगम के वार्ड क्रमांक नंबर-8 में कचरा परिवहन के नाम पर लाखों रुपए का गबन किया गया. सफाई कार्य के लिए नगर निगम को 14 लाख 70 हजार 228 का बिल प्रस्तुत किया गया. सत्यापन के बाद वास्तविक भुगतान के लिए 6 लाख 4,495 की अनुशंसा की गई थी, लेकिन आरोपियों ने एक फर्जी टाइपशुदा नोटशीट तैयार कराकर 13 लाख 17,510 का भुगतान करा दिया. इस प्रकार नगर निगम को 8,20,233 का अतिरिक्त वित्तीय नुकसान हुआ.
इस मामले की जांच के दौरान राज्य परीक्षक, प्रश्नास्पद प्रलेख, पुलिस मुख्यालय भोपाल से दस्तावेजों की जांच कराई गई. इसमें पाया गया कि टाइपशुदा नोटशीट पर नगर निगम के एक अधिकारी के.के. दुबे के हस्ताक्षर कूटरचित (फर्जी) थे. इस मामले में EOW ने भारतीय दंड संहिता (BNS) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 संशोधित 2018 के तहत अपराध पंजीबद्ध किया है.
इस घोटाले की जांच मंजीत सिंह, उप पुलिस अधीक्षक, आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ जबलपुर कर रहे हैं. शुरुआती जांच में जो नाम सामने आए हैं, उनके अलावा अन्य नगर निगम अधिकारियों की भूमिका की भी जांच की जा रही है. साथ ही आरोपियों के खिलाफ धारा 420, 467, 468, 471, 120बी एवं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 सरकारी पद का दुरुपयोग करके आर्थिक लाभ प्राप्त करने की धाराओं में मामला दर्ज किया गया है.
यह पहली बार नहीं है, जब जबलपुर नगर निगम में भ्रष्टाचार का मामला सामने आया हो. इससे पहले चम्मच घोटाला (जिसमें सरकारी खरीद में महंगे चम्मच खरीदे गए) और डामर घोटाला (सड़क निर्माण में अनियमितताए) भी चर्चा में थे. अब कचरा परिवहन घोटाले ने यह साबित कर दिया है कि नगर निगम में आर्थिक अनियमितताएं बड़े पैमाने पर जारी हैं.
EOW जल्द ही और भी संबंधित अधिकारियों से पूछताछ कर सकती है. आरोपियों की संपत्तियों की जांच हो सकती है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि भ्रष्टाचार से अर्जित धन का उपयोग कहां किया गया.