राहुल गांधी ने संसद का अपमान किया है। रायपुर के सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने ये बात कही है। दरअसल, राहुल गांधी ने सोमवार को संसद में कहा कि उन्हें बोलने नहीं दिया जाता। इसका भाजपा सांसदों ने पुरजोर विरोध किया। संसद के मानसून सत्र की शुरुआत सोमवार से हो गई। हालांकि, संसद के मानसून सत्र का पहला दिन हंगामे की भेंट चढ़ गया।
संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष ने पहलगाम आतंकी हमला, ऑपरेशन सिंदूर समेत कई मुद्दों को लेकर हंगामा किया। दरअसल, लोकसभा की कार्यवाही शुरू होते ही विपक्ष ने जोरदार हंमागा किया। इस बीच लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें सदन में नहीं बोलने दिया जाता है। राहुल गांधी के आरोपों को भाजपा सांसद जगदंबिका पाल ने खारिज किया। इसके साथ ही उन्होंने नेता विपक्ष पर निशाना भी साधा।
इस मामले में रायपुर के सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि आसंदी पर किसी भी तरह का आरोप लगाना सदन की अवमानना है। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को ये समझना चाहिए कि सदन में जानकारी देने के लिए कोई मंत्री खड़ा होता है तो उसे प्राथमिकता मिलती है। इसलिए अपनी बातों से राहुल गांधी ने सदन का अपमान किया है।
छत्तीसगढ़ के जंगलों का मुद्दा सदन में सांसद अग्रवाल ने संसद में छत्तीसगढ़ के जंगलों और पर्यावरण से जुड़े कई अहम सवाल उठाए। उन्होंने पूछा कि
– क्या पिछले 10 वर्षों में राज्य में 18 करोड़ पौधे लगाने का दावा किया गया है? अगर हां, तो इनमें से कितने पौधे अब भी जीवित हैं?
– क्या बस्तर, कोरबा और दंतेवाड़ा जैसे क्षेत्रों में खनन की वजह से जंगलों का क्षेत्र घटा है? क्या इन परियोजनाओं के लिए ग्राम सभाओं से अनुमति ली गई थी?
क्या कई विकास परियोजनाएं पर्यावरणीय स्वीकृति न मिलने के कारण वर्षों से रुकी हुई हैं?
– क्या खाली पड़ी जमीन पर पेड़ लगाने के लिए कोई ठोस योजना बनाई गई है?
– क्या इन योजनाओं की निगरानी सैटेलाइट मैपिंग, जियो टैगिंग और सामाजिक ऑडिट के जरिए की जा रही है?
18 करोड़ पौधे लगाए, 90% पौधों की उत्तरजीविता दर
रायपुर से सांसद बृजमोहन अग्रवाल के सवालों का जवाब देते हुए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने बताया कि वर्ष 2010-11 से 2019-20 के बीच छत्तीसगढ़ में लगभग 18 करोड़ पौधे लगाए गए हैं। इनमें से अधिकांश जगहों पर पौधे अच्छी तरह पनपे हैं और उनकी उत्तरजीविता दर करीब 90% है।
न्होंने कहा कि भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक 2013 से 2023 के बीच राज्य के वन क्षेत्र में कोई खास गिरावट नहीं आई है। बल्कि घने जंगलों का दायरा बढ़ा है।
105 दिन में पूरी होती है पर्यावरणीय स्वीकृति प्रक्रिया
खनन परियोजनाओं की अनुमति प्रक्रिया पूरी तरह से वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 और वन अधिकार अधिनियम, 2006 के नियमों के तहत होती है। इन परियोजनाओं के लिए ग्राम सभाओं से भी विधिवत सहमति ली जाती है। मंत्री ने यह भी बताया कि राज्य में किसी भी विकास परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी 105 दिनों की तय समयसीमा से ज्यादा समय तक लंबित नहीं है।
आधुनिक तकनीकों से हो रही निगरानी
पेड़ लगाने का काम उन जमीनों पर किया जा रहा है जिन्हें सरकार की ओर से मंजूरी मिली है। इन कार्यों की निगरानी आधुनिक तकनीकों जैसे ई-ग्रीन वॉच पोर्टल, जीआईएस मैपिंग, जियो-टैगिंग और थर्ड पार्टी वेरीफिकेशन के जरिए की जा रही है।
सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने इस जवाब पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, छत्तीसगढ़ में पर्यावरण संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है। वृक्षारोपण केवल कागजों पर नहीं, बल्कि जमीन पर दिखना चाहिए। खनन के कारण आदिवासी क्षेत्रों के जंगल और वहां के लोगों की ज़िंदगी प्रभावित न हो, यह सुनिश्चित करना हम सभी की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि वे आगे भी राज्य से जुड़े पर्यावरण और जनहित के मुद्देसंसद में मजबूती से उठाते रहेंगे।