मध्यप्रदेश सरकार ने सितंबर माह में दूसरी बार कर्ज लिया है। इस बार वित्त विभाग ने दो किस्तों में कुल 3,000 करोड़ रुपये भारतीय रिजर्व बैंक के माध्यम से उधार लिए। पहला कर्ज 18 साल और दूसरा 21 साल की अवधि के लिए लिया गया। इससे पहले इसी माह नौ सितंबर को चार हजार करोड़ रुपये का कर्ज लिया गया था। इस प्रकार वित्तीय वर्ष 2025-26 में अब तक 34,900 करोड़ रुपये का कर्ज लिया जा चुका है।
मार्च 2025 की स्थिति के अनुसार प्रदेश पर पहले से ही चार लाख 21 हजार 540 करोड़ रुपये का कर्ज था। अब इसमें वर्तमान वित्तीय वर्ष की राशि जोड़ने के बाद प्रदेश का कुल कर्ज 4.56 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। वित्त विभाग का कहना है कि कर्ज लेने का उद्देश्य प्रदेश की आर्थिक गतिविधियों और विकास परियोजनाओं को सुचारू रूप से चलाना है।
विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार समय-समय पर भारतीय रिजर्व बैंक के माध्यम से वित्तीय संस्थाओं से कर्ज लेती रहती है, ताकि विकास योजनाओं और परियोजनाओं के लिए आवश्यक धनराशि उपलब्ध हो सके। हालांकि, लगातार कर्ज लेने से राज्य की वित्तीय स्थिति पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
राज्य में कर्ज की यह बढ़ती स्थिति विपक्षी नेताओं और अर्थशास्त्रियों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। पूर्व वित्त मंत्री जीतू पटवारी ने कहा कि कर्ज के इस दलदल में फंसने के कारण सरकार को ब्याज चुकाने के लिए भी अतिरिक्त कर्ज लेना पड़ रहा है। उन्होंने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि कर्ज का यह बढ़ता बोझ भविष्य में प्रदेश की आर्थिक स्थिरता के लिए खतरा बन सकता है।
राजकोषीय विशेषज्ञों का कहना है कि मध्यप्रदेश राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम के अनुसार, सरकार राज्य सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में तीन प्रतिशत तक कर्ज ले सकती है। इसके अतिरिक्त आधा प्रतिशत कर्ज ऊर्जा, नगरीय विकास और अन्य विशेष क्षेत्रों में सुधार के लिए लिया जा सकता है।
विश्लेषकों का कहना है कि प्रदेश पर यह बढ़ता कर्ज भविष्य में निवेश और विकास योजनाओं के लिए चुनौतियां खड़ी कर सकता है। कर्ज के बोझ से वित्तीय अनुशासन बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होगा। प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि नई योजनाओं और कर्ज के उपयोग में पारदर्शिता और प्रभावशीलता बनी रहे, ताकि आर्थिक विकास पर इसका नकारात्मक प्रभाव न पड़े।