मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक जैन की एकलपीठ ने गांधी मेडिकल कॉलेज, भोपाल में हुई नितिन अग्रवाल सहित अन्य की अवैध नियुक्तियों को निरस्त कर दिया। इसके साथ ही पूर्व डीन सलिल भार्गव पर दो लाख का जुर्माना भी लगाया। मामला योग्य आवेदक को नौकरी से वंचित करने व फर्जी शपथ पत्र पेश करने से संबंधित है।
कोर्ट ने भार्गव की सेवानिवृत्ति की आयु के मद्देनजर रियायत देते हुए एफआईआर दर्ज करने के निर्देश जारी करने के स्थान पर महज जुर्माना लगाने का निर्णय लिया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि दोबारा मेरिट लिस्ट बनाई जाए। नए सिरे से इंटरव्यू लिए जाएं। यह प्रक्रिया तीन माह के भीतर पूरी कर ली जाए।
वहीं जुर्माना राशि दो लाख में से 80 हजार मप्र पुलिस कल्याण कोष में, 40 हजार राष्ट्रीय रक्षा कोष में, 20 हजार राज्य विधि सेवा प्राधिकरण में, 20 हजार हाई कोर्ट बार एसोसिएशन में जमा करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके लिए 90 दिन की मोहलत दी गई है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो भोपाल के पुलिस आयुक्त को कानूनी कार्रवाई के लिए स्वतंत्र कर दिया गया है।
हाईकोर्ट में दायर की याचिका
दरअसल, भोपाल निवासी मनोहर सिंह को गांधी मेडिकल कॉलेज में अस्पताल प्रबंधक, सहायक प्रबंधक व डिप्टी रजिस्ट्रार की नौकरी से अयोग्य करार देते हुए वंचित कर दिया गया। जिसके विरुद्ध पहले अभ्यावेदन दिया गया। जब कोई नतीजा नहीं निकला तो हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी गई। याचिका में कहा गया कि पहले डिप्टी रजिस्ट्रार के लिए पात्र माना गया, लेकिन बाद में अस्पताल प्रबंधक व सहायक प्रबंधक पद के लिए अयोग्य करार दे दिया गया।
यह विरोधाभासी स्थिति गड़बड़ी की ओर इशारा करने काफी है। पूर्व डीन भार्गव की ओर से प्रस्तुत शपथ पत्र में कहा गया था कि याचिकाकर्ता का ओबीसी प्रमाण पत्र डिजिटल नहीं था, जबकि कोर्ट ने रिकॉर्ड से पाया कि वह डिजिटल था। क्यूआर कोड के जरिए वेबसाइट से भी उसका वैरिफिकेशन हो गया।
फर्जी प्रक्रिया को पाया अवैध
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील के तर्क सुनने के बाद गांधी मेडिकल कॉलेज की भर्ती प्रक्रिया को अवैध पाया। साथ ही याचिकाकर्ता को नियुक्ति से वंचित किए जाने के रवैये को अवैधानिक निरूपित किया। कोर्ट ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को डिप्टी रजिस्ट्रार पद के लिए पात्र पाया गया, लेकिन इंटरव्यू काल नहीं किया गया।
इस पर कॉलेज की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता की डिग्री मास्टर ऑफ हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन के स्थान पर महज एबीए होने के कार दरकिनार किया गया है। इस पर याचिकाकर्ता की ओर से साफ किया गया कि उसने पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी, जालंधर से एमबीए-हास्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई की थी।