पटवारी भर्ती में आरक्षण नीति के उल्लंघन पर एमपी हाई कोर्ट ने जताई नाराजगी, याचिकाकर्ता को नियुक्ति देने के आदेश

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वर्ष 2008 की पटवारी भर्ती प्रक्रिया में याचिकाकर्ता दतिया निवासी धर्मेंद्र सिंह सिकरवार को छह सप्ताह के भीतर नियुक्ति दी जाए। कोर्ट ने साफ कहा कि आरक्षण नीति का उल्लंघन करते हुए जिस अभ्यर्थी को जनरल मेरिट में चुने जाने के बावजूद आरक्षित वर्ग में समायोजित किया गया, वह पूरी तरह से अवैध था।

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यह मामला 2008 की पटवारी भर्ती से जुड़ा हुआ है, जिसमें याचिकाकर्ता ने ओबीसी (विकलांग) श्रेणी से आवेदन कर परीक्षा उत्तीर्ण की थी। याचिकाकर्ता ने प्रशिक्षण भी पूरा कर लिया था, लेकिन इसके बाद नियुक्ति नहीं दी गई।

इसके पीछे कारण बताया गया कि उस पद पर पहले से एक अन्य अभ्यर्थी की नियुक्ति की जा चुकी है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट में तर्क दिया कि याची के स्थान पर चुने व्यक्ति ने सामान्य (जनरल) श्रेणी में आवेदन किया था और सामान्य श्रेणी की मेरिट में चयनित हुआ था। इसके बावजूद उसे ओबीसी-विकलांग श्रेणी में समायोजित कर दिया गया, जिससे याचिकाकर्ता का हक छिन गया।

कोर्ट ने इस प्रक्रिया को आरक्षण अधिनियम 1994 के नियमों के विरुद्ध माना। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जब कोई उम्मीदवार सामान्य श्रेणी में मेरिट के आधार पर चयनित हो जाता है, तो उसे उसी श्रेणी में रखा जाना चाहिए। उसे आरक्षित कोटे में शिफ्ट करना न केवल अनुचित है, बल्कि आरक्षित वर्ग के अन्य पात्र उम्मीदवारों के अधिकारों का भी उल्लंघन है।

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