MP Politics: ग्वालियर अंचल में भाजपा के सुर-ताल बिगड़ने से नेतृत्व की नाराजगी झलकी

ग्वालियर: ग्वालियर-चंबल अंचल में भाजपा के सुर और ताल दोनों बिगड़े हुए हैं। नाराजगी और असंतोष के बीच बड़े नेताओं के बीच मतभेद के साथ मनभेद भी साफ नजर आने लगे हैं। यह बात संगठन के मूल आधार रहे वरिष्ठ नेता भी अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार भी कर रहे हैं।

प्रदेश और जिलों की कार्यकारिणी गठन के साथ निगम मंडलों में नियुक्तियों से पहले नेताओं के बीच समन्वय और गठन के बाद कार्यकर्ताओं के बीच उपजने वाली असंतोष की भावनाओं को कंट्रोल करने के लिए नौ सदस्यीय छोटी टोली अस्तित्व में आई है। इस टोली में मालवा व विंध्य का तो प्रतिनिधित्व नजर आ रहा है, लेकिन ग्वालियर-चंबल अंचल को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है।

प्रदेश नेतृत्व ने ऐसा क्यों किया? यह सवाल हर छोटे-बड़े कार्यकर्ता के मन उठ रहा है। क्या प्रदेश नेतृत्व अंचल के नेताओं के संगठन की रीति नीति के विपरीत आचरण से नाराज है। वरिष्ठ नेताओं के पास कार्यकर्ताओं के सवाल का कोई स्पष्ट जवाब तो नहीं है, लेकिन उनका कहना है कि संगठनात्मक निर्णय के लिए कोर कमेटी पहले से गठित है। इसमें अंचल का समुचित प्रतिनिधित्व है।

इनको प्रतिनिधित्व दिया जा सकता था

नौ सदस्यीय छोटी टोली में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल, संगठन महामंत्री हितानंद, उप-मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला, जगदीश देवड़ा, प्रदेश के कैबिनेट मंत्री प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय और राकेश सिंह शामिल हैं।

स्थानीय भाजपा नेताओं का कहना है कि पूर्व सांसद विवेक नारायण शेजवलकर, पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा, लाल सिंह आर्य, वेदप्रकाश शर्मा सरीखे नेताओं को स्थान दिया जा सकता था। यह नेता संगठन की रीति-नीति से वाकिफ है और सरकार व संगठन में कई दायित्वों का निर्वहन भी कर चुके हैं।

नाराजगी का यह हो सकता है मूल कारण

अंचल की सड़कों को लेकर सिंधिया समर्थक मंत्रियों का मुख्यमंत्री के सामने मुखर होना। अंचल में प्रभुत्व को लेकर विधानसभाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच छिड़ी रार के साथ भिंड जिले के विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह का भिंड के कलेक्टर और जिलाध्यक्ष के विवाद प्रमुख कारण हो सकता है।

पहले से गठित है कोर कमेटी

अंचल के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि संगठन के संचालन की दृष्टि से फौरी तौर पर थिंक टैंक माने जाने वाले नेताओं को एक साथ बैठने के लिए कोई नाम दिया जा सकता है, लेकिन सरकार और संगठनात्मक मसलों को सुलझाने व निर्णय करने के लिए पहले से कोर कमेटी गठित है। इस कमेटी में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, विधानसभाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर व पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा पहले से शामिल हैं। नरेंद्र सिंह तोमर ने संवैधानिक पद पर होने के कारण कोर कमेटी से अवश्य दूरी बना ली है।

अनुशासनहीनता बढ़ने से यह हो सकता है नुकसान

अंचल में बड़े नेताओं के बीच छिड़े द्वंद और अनुशासनहीनता के बढ़ते मामलों से संगठन और सरकार में होने वाली नियुक्तियों में अंचल को नुकसान हो सकता है। संगठन का शीर्ष नेतृत्व विवाद और अंसतोष से बचने के लिए इन नियुक्तियों में दोनों अंचलों की नियुक्तियों को दरकिनार कर सकता है।

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