उत्तराखंड में लागू की गई समान नागरिक संहिता (UCC) को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है. यूसीसी के खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने उत्तराखंड हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. एआईएमपीएलबी का कहना है कि समान नागरिक संहिता कानून संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है और मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ है. याचिका को उत्तराखंड हाई कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है और 1 अप्रैल सुनवाई होगी.
इसी साल 27 जनवरी को समान नागरिक संहिता की अधिसूचना जारी की गई थी. इसके बाद अब ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने दस अलग-अलग लोगों के जरिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की है. इनमें से कई लोग मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से भी जुड़े हुए हैं.
एआईएमपीएलबी ने याचिका में क्या-क्या कहा?
याचिका में मौलिक अधिकारों, लोगों और संप्रदायों के अधिकारों के उल्लंघन सहित विभिन्न आधारों पर चुनौती दी गई है. इसमें कहा गया है कि भारत का संविधान और साथ ही शरीयत आवेदन अधिनियम-1937 मुसलमानों द्वारा पालन किए जाने वाले व्यक्तिगत कानून/इस्लामी कानून की रक्षा करता है.
उधर, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने गुरुवार को यूसीसी को लेकर कांग्रेस पर भ्रम फैलाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस को बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के संविधान में यकीन नहीं है. कांग्रेस महिलाओं पर अत्याचारों का समर्थन करती है. लिव-इन रिलेशन को लेकर रजिस्ट्रेशन के मुद्दे पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा सुरक्षा के लिए किया गया है.
यूसीसी के संबंध में एक और भ्रम फैलाया जा रहा है
इससे युवाओं के माता-पिता और प्रशासन को जानकारी रहेगी. अनेक मामलों में संबंध बिगड़ जाते हैं और हिंसक घटनाएं हो जाती हैं. बता दें कि लिव-इन रिलेशन में रजिस्ट्रेशन को लेकर कांग्रेस विरोध कर रही है. कांग्रेस का कहना है कि ये लोगों की निजता के अधिकार का उल्लंघन है.
सीएम धामी ने कहा कि यूसीसी के संबंध में एक और भ्रम फैलाया जा रहा है कि अगर उत्तराखंड के बाहर का कोई पुरुष यहां की लड़की से शादी करता है तो उसे राज्य का मूल निवासी होने का हक मिल जाएगा. रही बात यूसीसी के मसौदे की तो इसे जनता के सभी वर्गों से बातचीत और सुझाव लेने के बाद तैयार किया गया था.