दिल्ली उच्च न्यायालय ने नागा साधुओं के नाम संपत्ति करने के मामले में एक अहम टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने कहा कि नागा साधु सांसारिक दुनिया और मोह से दूर रहते हैं. नागा साधुओं का जीवन पूरी तरह वैरागी का होता है, इसलिए उनके नाम संपत्ति की मांग मान्याताओं के अनुसार सही नहीं है. कोर्ट ने एक अहम मामले में फैसला सुनाते हुए दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया है.
महंत श्री नागा बाबा भोला गिरि बनाम जिला मजिस्ट्रेट व अन्य के मामले में कोर्ट ने कहा कि देश के अलग-अलग हिस्सों में साधु-संत, फकीर और गुरु होते हैं. सभी के लिए सार्वजनिक भूमि पर समाधि स्थल और मंदिर बनाने के नाम पर कुछ समूह अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए इसका लाभ उठा रहे हैं, जो कि आने वाले समय में बड़ी मुश्किलें खड़ी कर सकता है.
महादेव के भक्त नागा साधु सांसारिक दुनिया से अलग
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस धर्मेश शर्मा ने कहा कि नागा साधु महादेव के भक्त होते हैं. वह सांसारिक मोह और दुनिया से पूरी तरह विरक्त होते हैं. कोर्ट ने कहा कि वह जितना हिंदू धर्म समझते हैं उसके मुताबिक, नागा साधु शिव भक्त होने के कारण संसार से जुड़ी किसी भी वस्तु से जुड़ाव नहीं बल्कि अलगाव रखते हैं, इसलिए उनके नाम पर संपत्ति मांगना हिंदू धर्म की मान्यताओं और प्रथाओं से अनुसार गलत है.
याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट में दलील दी गई कि त्रिवेणी घाट, निगमबोध घाट, जमुना बाजार की जमीन को उनके नाम करने के लिए स्थानीय प्रशासन को निर्देश देने की मांग भी की गई थी. याचिकाकर्ता ने कहा कि यह जमीनें उनके कब्जे में 1996 से हैं. याचिकाकर्ता ने कहा कि कोर्ट में विचाराधीन मामले में दिल्ली सरकार की ओर से बाढ़ नियंत्रण और सिंचाई विभाग के अधिकारियों की ओर से जमीन के आस-पास के क्षेत्रों में बसी झुग्गी-झोपड़ियों को हटा दिया और अब नागा साधुओं के इस्तेमाल में लाई जाने वाली जमीनों ध्वस्त कर सकते हैं.
कोर्ट ने विचार के बाद क्या दिया फैसला
जस्टिस धर्मेश शर्मा ने कहा कि याचिकाकर्ता ने सार्वजनिक जमीन पर कब्जा किया है, इसलिए वह अतिक्रमणकर्ता हैं, क्योंकि दिल्ली सरकार की ओर से हटाई गई झुग्गियां यमुना नदी के पुनरुद्धार के लिए थी, जो कि सभी के लिए लाभ में आनेवाला है. कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड में यह कहीं भी प्रदर्शित नहीं है कि विवादित स्थान बाबा की समाधि या जनता को पूजा करने के लिए दिया गया है.
कोर्ट ने साफ किया कि याचिकाकर्ता के पास किसी भी तरह का ऐसा सबूत नहीं है, जिससे यह साफ हो सके कि जमीन पर बनाई गई बाबा की समाधि एक ऐतिहासिक स्थान है. दिल्ली हाईकोर्ट ने पूरे मामले पर सुनवाई करते हुए याचिका को खारिज कर दिया.